करोड़ों खर्च फ़िर भी डूब रही जिंदगियां
सत्यप्रकाश (पत्रकार)
लखनऊ । उत्तर प्रदेश मे जिस तरफ डालो नजर सैलाब का संत्रास है, बाढ़ में डूबे शजर हैं नीलगूं आकाश है. सामने की झाड़ियों से जो उलझ कर रह गई वह किसी डूबे हुए इंसान की इक लाश है. मशहूर शायर और कवि आदम गोंडवी की ये पंक्तियां गोंडा जिले में घाघरा और सरयू नदी से होने वाले तांडव को बयां करने के लिये काफी हैं.
हर साल की तरह इस बार भी बाढ़ ने पूर्वांचल के कई जिलों में तबाही फैलाई है. यूं तो ये नदियां मोक्षदायिनी और प्राणदायिनी ही कही जाती हैं, लेकिन जब बाढ़ के दौरान यह अपना रौद्र रूप धारण करती हैं तो तबाही ही इनकी प्रकृति बन जाती है. हर साल की तरह इस बार भी बैराजों से पानी छोड़े जाने के बाद नदियों का जलस्तर बढ़ा तो अचानक लोगों की मुश्किलें भी बढ़ गई.
प्रशासनिक और सिंचाई विभाग की लापरवाही से करोड़ों की लागत से बनकर पहाड़ की तरह खड़ा एल्गिन-चरसड़ी बांध तो पहले ही धराशायी हो गया था. गांव में बाढ़ का पानी घुसते ही लोगों के सामने खाने-पीने, रहने, मवेशियों की सुरक्षा, पशुओं के चारें और पलायन का संकट मुंह बाए खड़ा हो गया है. अब तक सैकड़ों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया और घाघरा से सटे इलाके के लोग बंधे पर गुजर करने को मजबूर हो गए हैं. फिलहाल बाढ़ का संकट जारी हैं और गांव टापू में तब्दील है.
इस बार भी लोग अपनी किस्मत को ही कोस रहे हैं. इतना ही नहीं ग्रामीण प्रशासन के नाकाफी इंतजाम से असन्तुष्ट हैं और एल्गिन बंधे को धंधा बता रहे हैं. दरअसल अगर पिछले दो दशकों से ज्यादा समय की बात करें तो एल्गिन चरसड़ी से बाढ़ की समस्या तो खत्म नहीं हुई, लेकिन जनता के पासिओं की बर्बादी लूट-खसोट जमकर हुई. या यूं कहा जाए कि यूपी में बाढ़ का भ्रष्टाचार कनेक्शन है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.
14 करोड़ की लगत से बने बांध पर 100 करोड़ से ज्यादा मरम्मत पर खर्च
एक अरसे से कटान और फैलाव ही घाघरा नदी का शगल रहा है और इसी फैलाव को रोकने के लिए सन 2005 में तत्कालीन बसपा सरकार ने घाघरा नदी पर एल्गिन-चरसड़ी तटबंध बनाया था. सरकार का दावा था कि इस बांध से जिले के 175 गांव के लाखों लोगों की सुरक्षा होगी. यही नहीं इससे लाखों हेक्टेयर फसल को भी बर्बाद होने से बचाया जा सकेगा. अब तो यह तटबंध हर साल कमाने खाने का जरिया बन गया है. क्योंकि बनने के बाद से ये बांध आज तक 5 बार टूट चुका है और 14 करोड़ की लागत से बनने वाले इस बांध पर अब तक लगभग 100 करोड़ रुपये सिर्फ मरम्म्त में खर्च हुआ है.
फिलहाल निरीक्षण करने आये सिचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने 300 करोड़ रूपये की घोटाले की बात कही थी और इस बांध में हुए करोड़ों के घोटाले पर जांच के आदेश दिए हैं.
2009 से अब तक एल्गिन-चरसड़ी तटबंध की मरम्मत पर खर्च का विवरण:
1 – 2009 में 8 करोड़ 58 लाख रुपए
2 – 2010 में 9 करोड़ 23 लाख रुपए
3 – 2011 में 12 करोड़ 68 लाख रुपए
4 – 2012 में ही 9 करोड़ 46 लाख रुपए
5 – 2013 में 9 करोड़ 92 लाख रुपए
6 – 2014 में 11 करोड़ 40 लाख रुपए
7 – 2015 में 10 करोड़ 84 लाख रुपए
8 – 2016 में 5 करोड़ 83 लाख रुपए
9 – 2017 – इस बार फिर बांध की मरमम्त के लिए 58 करोड़ का टेंडर डाला जाना था जो यहां के नेताओं की वर्चस्व की लड़ाई की वजह से खटाई में पड़ा हुआ है.
काश! बांध बना ही न होता
वहीं यहां के किसान और गांव के लोग मानते हैं कि अगर ये बांध न बना होता तो उनकी जिंदगी खुशहाल रहती. बांध न रहने पर पानी फैलता और निकल जाता, लेकिन अब इसके कटने पर पानी बहाव के साथ आता है और उनका सब कुछ बहा कर ले जाता है.
जिले के मुखिया जेबी सिंह से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि बाढ़ अभी नियंत्रण में हैं और लोगों को राहत पहुंचाई जा रही है. किसी को भी कोई परेशानी नहीं होने दी जाएगी. वहीं वे तटबंध पर भ्रष्टाचार की बात पर चुप्पी साध गए.
अब तक 25 लोगों की मौत हो चुकी है
एल्गिन-चरसड़ी बांध बनने के बाद से अब तक 25 लोगों की मौत हो चुकी है. 2012 और 13 में इस बांध के टूटने से 13 और 12 लोग बह गए थे. जिससे उनकी मौत हो गई थी.
घाघरा की तबाही और उसकी आड़ में नौकरशाहों और सफेदपोशों की कमाई के लिए अदम गोंडवी की ये दो लाइन ही काफी है-
"घूसखोरी, कालाबाज़ारी है या व्यभिचार है, कौन है जो कह रहा भारत में भ्रष्टाचार है,
घाघरा की बाढ़ में जब गांव सारे बह गए, बस यहां उस दिन से इनके बंगलों में त्योहार है!!!"