वैश्विक साइबर हमले से हिली दुनिया, भारत भी चपेट में
कीव: भारत समेत करीब 150 देशों को प्रभावित करने वाले ‘वानाक्राई-रेनसमवेयर’ के करीब डेढ़ महीने बाद पूरी दुनिया एक बार फिर से वैश्विक साइबर हमले से हिल गई है। मंगलवार को रूस और यूक्रेन से शुरू हुए इस हमले ने देखते ही देखते पूरे यूरोप, अमेरिका और यहां तक कि भारत के सर्वरों को भी अपनी चपेट में ले लिया।
जानकारी के मुताबिक यूक्रेन के सरकारी बैंकों, पावर ग्रिड समेत कई कार्यालयों के सर्वर ठप हो गए हैं। रूस की रोसनेफिट पेट्रोलियम कंपनी ने भी साइबर हमले की शिकायत की है। इसके अलावा डेनमार्क की समुद्री यातायात कंपनी माएस्क, ब्रिटेन की दिग्गज विज्ञापन कंपनी डब्ल्यूपीपी और फ्रांसीसी कंपनी सेंट-गॉबेन के सर्वरों पर भी हमला किया गया है। साइबर हमलावरों ने अमेरिका और भारत के सर्वरों को भी अपना निशाना बनाया है।
यूक्रेन के प्रधानमंत्री वोलोदमिर ग्रोएसमैन ने फेसबुक के जरिए साइबर हमले की जानकारी दी, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उनके अहम सिस्टम इस हमले से प्रभावित नहीं हुए हैं। साइबर हमले की सबसे पहले शिकायत यूक्रेन के बैंकों से आई। पिछले महीने भी कीव का मुख्य एयरपोर्ट और रूसी पेट्रोलियम कंपनी वानाक्राई वायरस से प्रभावित हुई थी। इस हमले ने पिछले महीने मई में हुए ‘वानाक्राई रेनसमवेयर’ साइबर हमले की याद ताजा कर दी है। इस वायरस ने 150 से ज्यादा देशों के 2 लाख से ज्यादा लोगों को प्रभावित किया था।
आईटी विशेषज्ञों ने इस वायरस की पहचान ‘पेटव्रैप’ के रूप में की है और माना जा रहा है कि यह वायरस पिछले साल सामने आए पेट्या रेनसमवेयर वायरस का ही उन्नत संस्करण है। इस वायरस के जरिए हमलावर कंप्यूटरों को ठप कर फाइलों को लॉक कर देते हैं और वापस उसे अनलॉक करने के बदले में पैसों की मांग करते हैं।
आमतौर पर वायरस कंप्यूटर में गलत तरीके से घुस जाते हैं। इनका उद्देश्य या तो कंप्यूटर का डाटा चुराना या फिर उसे मिटाना होता है। मगर रैनसमवेयर सिस्टम में घुसकर डाटा को ‘इनक्रिप्ट’ यानी लॉक कर देता है। इस कारण उपयोगकर्ता तब तक डाटा तक नहीं पहुंच पाता, जब तक वह रैनसम यानी फिरौती नहीं देता है। यह वायरस ईमेल के जरिए फैलता है।
माना जा रहा है कि यह हमला अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) से चोरी किए गए ‘साइबर हथियारों’ की मदद से अंजाम दिया गया है। व्हिसलब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन खुलकर इस संबंध में अमेरिका को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने भी कंप्यूटर सिस्टम में सुरक्षा से जुड़ी जानकारी रखने के सरकारों के तरीके की आलोचना की थी।