हिन्दी में नहीं लगती लचक: रामनाईक
राज्यपाल ने कविता संग्रह ‘प्रवासी पुत्र’ का लोकार्पण किया
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल विनोदपूर्ण ढंग से गंभीर बात कहने के माहिर है। राजभवन में एक फिर यह देखने को मिला। अवसर था एक काव्य ग्रन्थ के विमोचन का। रामनाईक ने कहा कि वह सहित्य नहीं कामर्स के विद्यार्थी रहे है। लेकिन अपने भाषण में उन्होंने साहित्य में शब्दो का बड़ा महत्व होता है। लेकिन अपनी भाषा जब अभ्यास में नहीं रहती तो शब्द कम पड़ने लगते है। रामनाईक ने मजेदार ढंग से यह बात रखी। उन्होंने अपनी विद्यार्थी जीवन का उदाहरण देते हुए बताया कि पुणे में उनके साथ्ज्ञ एक हिंदीभाषी छात्र था। एक बार खेल में उसे मोच लगी। मोच को मराठी में लचक कहते है। यह भी पूछा की लचक को हिन्दी में क्या कहते हैं। हिन्दीभाषी छात्र नहीं बता सका उसने कहा हिन्दी में लचक लगती ही नहीं है। इसलिए शब्द की जरूरत नहीं पड़ती। अवसर था प्रवासी पुत्र पुस्तक के विमोचन का। प्रवासी कवि पद्मेश गुप्ता विदेश में रहते है। अपनी, भाषा, संस्कार से जुड़े रहे इसलिए ऐसा लिख सके। उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने इसे संस्कार से जोड़ा कहा कि संस्कार है तो प्रवासी भी अपनी मातृभूमि, माता, पिता, मित्रों से जुड़ा रहता है। संस्कार नहीं है तो एक शहर में रह कर माता-पिता को छोड़ देता है या उनकी सेवा नहीं करता