मौलाना आजाद के आपसी सहयोग के सिद्धांत की आज सख्त जरूरत है: वसीम रायनी
मौलाना अबुल कलाम आजाद पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन
लखनऊ: भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित मौलाना अबुल कलाम आजाद के निकट स्वराज और स्वतंत्रता से अधिक कीमती पूँजी हिंदू मुस्लिम एकता थी। वह मुसलमानों को मजहब पर कायम रहते हुए स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते थे। उनका क्षेत्र साहित्य, राजनीति, धर्म, इतिहास और दर्शन के क्षेत्र तक फैला हुआ था। आज मौलाना आजाद के आपसी सहयोग के सिद्धांत की आज सख्त जरूरत है। मौलाना आजाद उर्दू भाषा के प्रेमी भी थे, उर्दू के खिलाफ चलाई जाने वाले अभियान के दौरान मौलाना आजाद ने भारतीय भाषा को सरकारी कामकाज की भाषा बनाने का समर्थन किया था। लेकिन देश के बंटवारे के बाद मौलाना आजाद का दावा कमजोर पड़ गया। यह विचार अवध वेलफेयर फाउण्डेशन और राष्ट्रीय कौंसिल बराए फरोगे उर्दू जबान के सहयोग से मौलाना अबुल कलाम आजाद पर आयोजित एक दिवसीय सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए यश कार बाजार के प्रोप्राईटर मोहम्मद वसीम राईनी ने व्यक्त किये।
सेमिनार की शुरुआत में अवध वेलफेयर फाउंडेशन की अध्यक्षा और संयोजक कार्यक्रम सबीहा सुल्ताना ने मेहमानों का स्वागत करते हुए उन्हें गुलदस्ता प्रदान किया और आपने स्वागत भाषण में सबीहा सुल्ताना ने मेहमानों के स्वागत किया और संस्था के कार्यो और उददेश्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला और अपने शुभ चिंतकों और मुहिब्बान उर्दू को भी धन्यवाद दिया। इस अवसर पर स्वागत समिति अध्यक्ष शहकतमा सुल्ताना और को आर्डीटर रजिया परवीन, जियाउल्लाह सिद्दीकी ने भी मेहमानों का स्वागत गुलदस्ता पेश करके किया। सेमिनार में बोलते हुए मुख्य अतिथि पूर्व राज्य मंत्री अनीस मंसूरी व डाक्टर तसनीम कौसर, असिसटेंट प्रोफेसर करामत हुसैन गर्ल्स कॉलेज ने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद के रूप में दुनिया में पहचान बनाने वाले मोहिउद्दीन अहमद की धार्मिक जानकारी अभूतपूर्व थी। अखबार अल हिलाल में उनके लेख दैवीय आवाज की तरह मुस्लिम समुदाय को प्रभावित करते थे। उन्होंने कहा कि मौलाना आजाद मुसलमानों को धर्म के मार्ग से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ने के लिए आमंत्रित करते थे। मौलाना की मातृभाषा अरबी थी लेकिन उनकी उर्दू तहरीरें भी लाजवाब थीं। उनके शब्दों का एक मंत्र होता था। आजाद का दायरा साहित्य, राजनीति, धर्म, इतिहास और दर्शन के क्षेत्र तक फैला था। उन्होने ने कहा कि राष्ट्रीय एकता को लेकर मौलाना आजाद प्रयासों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि उनमें इसे लेकर कितनी तड़प थी। मौलाना ने रामगढ़ में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कहा था कि अगर आज एक दूत स्वर्ग से उतर आए और दिल्ली के कुतुब मीनार से यह घोषणा करे कि स्वराज 24 घंटे के अंदर प्राप्त कर सकता हंै, बशर्ते हिंदू मुस्लिम एकता खत्म हो जाए तो मैं स्वराज के बजाय राष्ट्रीय एकता का चयन करूंगा।
विशिष्ट अतिथि मौलाना अब्दुल्ला चतुर्वेदी (वेदाचारया) और कुदरत अल्लाह (संस्थापक लाल बहादुर शास्त्री इन्टर कालेज) ने कहा कि आज जो लोग मुसलमानों को राष्ट्रीयता का सबक पढ़ा रहे हैं, वे नहीं जानते कि मौलाना आजाद का सबक पढ़ कर वे अपने विश्वास को ताजा कर सकते हैं। मौलाना आजाद हमारे बीच नहीं हैं लेकिन दिल्ली की जामा मस्जिद के दर व दीवार भारत के मुसलमानों को जागते रहने की हिदायत दे रहे हैं। मौलाना का कहना था कि यदि आप जागने के लिए तैयार नहीं तो कोई शक्ति आप जगा नहीं सकता, मौलाना अब्दुल्ला चतुर्वेदी ने कहा कि कि मौलाना आजाद के व्यक्तित्व के सैकड़ों पहलू थे मौलाना अबुल कलाम आजाद के सिद्धांत पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि मौलाना आजाद की धार्मिक, सामाजिक और शैक्षिक प्रदर्शन इस बात का गवाह है कि वे सामाजिक एकता के पैरोकार थे।
पत्रकार जियाउल्लाह सिद्दीकी व निसार अहमद महासचिव, न्यूक्लियस सोसायटी ने मौलाना अबुल कलाम आजाद और आधुनिक उर्दू पत्रकारिता के बारे में कहा कि केवल 12 साल की उम्र में मिस्बाह अखबार के संपादक मौलाना आजाद आधुनिक उर्दू पत्रकारिता में आत्मा डालने वाले थे। वे राजनीति और समाज में पूर्ण बदलाव चाहते थे। पत्र लेखक व पत्रकार गुफरान नसीम और लेखक व शायर सोहेल काकोरवी ने कहा कि मौलाना ने अल हिलाल अखबार सुंदर बनाने के लिए चित्र पर भी जोर दिया। वह पहला उर्दू अखबार था जिसमें चित्रों का इस्तेमाल किया गया। संगोष्ठी का संचालन करते डॉक्टर शबाना आजमी ने कहा कि वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। मौलाना आजाद के व्यक्तित्व के तीन पहलू हैं। सबसे पहले, वह एक शिक्षा विशेषज्ञ थे। दूसरे, वे एक बहुत अच्छे लेखकों थे और तीसरे, राजनीतिक दृष्टि से आदर्श व्यक्ति थी। मौलाना आजाद ने भारत के बंटवारे के समय देश से जाने वाले मुसलमानों को ऐतिहासिक भाषण करके रोका था। संगोष्ठी के अन्य वक्ताओं में मास्टर कमरूल हुदा, शहरयार जलालपुरी, डा0 अब्दुल कुददूस हाशमी, अरजुन पंडित, डा0 शोभा त्रिपाठी, रमजान सीतापुरी आदि ने अपने विचार व्यक्त किये। अन्त में अवध वेलफेयर फाउण्डेशन की अध्यक्षा सबीहा सुल्ताना ने आगन्तुको को धन्यवाद दिया।