भारत में ‘‘युवा माताओं की स्थिति’’
नई दिल्लीः हर साल मई का दूसरा रविवार दुनिया भर में मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है, वहीं दूसरी ओर भारत में 3 मिलियन युवतियंा समय से पहले मातृत्व की ज़िम्मेदारी को उठा रही हैं, जबकि उनका मन और शरीर इस ज़िम्मेदारी के लिए तैयार नहीं है। भारत में 19 साल से कम उम्र की 3.8 मिलियन किशोरियां हैं जो माँ बन चुकी है, इनमें से 1.4 मिलियन लड़कियां ऐसी हैं जो अपनी किशोरावस्था पूरी करने से पहले ही 2 या अधिक बच्चों को जन्म दे चुकी हैं।
चौंका देने वाले ये आंकड़े 2011 की जनगणना से लिए गए हैं, जिनमें सुधार के कोई संकेत दिखाई नहीं देते। हाल ही में जारी छथ्भ्ै 4 (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16) के आंकड़ें इस स्थिति की पुष्टि करते हैं, सर्वेक्षण के समय 15-19 आयुवर्ग की तकरीबन 4.5 मिलियन लड़कियां हैं जो या तो गर्भवती हैं या माँ बन चुकी हैं।
कम उम्र में ही शादी हो जाने और उसके तुरन्त बाद बच्चों को जन्म देने के कारण इन लड़कियों के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, जो अन्ततः इनके बच्चों को भी प्रभावित करता है। ठीक से देखभाल न होने और पर्याप्त पोषण की कमी के चलते, खास तौर पर इतनी कम उम्र में जबकि उनका शरीर बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार नहीं हैं, इनमें एनिमिया (खून की कमी), अन्य बीमारियांे की सम्भावना होती है, साथ ही इनके बच्चे भी कुपोषण का शिकार बन जाते हैं।
समय से पहले शादी होने से लड़कियां शिक्षा के अधिकार से वंचित रह जाती है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 39 फीसदी किशोर (10-19 साल) शादी-शुदा माताएं पढ़ी लिखी नहीं हैं।
अगर माँ पढ़ी-लिखी हो तो बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर होने की सम्भावना कई गुना बढ़ जाती है। छथ्भ्ै 4 के अनुसार वे माताएं जो पढ़ी-लिखी नहीं हैं उनके बच्चों की स्टंटिंग (विकास अवरुद्ध होना) के आंकड़े 51 फीसदी हैं जबकि जिन मामलों में माँ ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की है, वहाँ बच्चों की स्टंटिंग के आंकड़े 31 फीसदी हैं। इसी तरह के रुझान स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्य संकेतकों में भी सामने आए हैं जैसे बच्चों का वज़न सामान्य से कम होना, किसी संस्था में प्रसव और बच्चों का सम्पूर्ण टीकाकरण आदि।
क्राई-चाईल्ड राईट्स एण्ड यू में डायरेक्टर, पाॅलिसी, रिसर्च एण्ड एडवोकेसी कोमल गनोत्रा ने कहा, ‘‘लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए किफ़ायती माध्यमिक शिक्षा की उपलब्धता बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे न केवल बाल विवाह की सम्भावना कम होती है, बल्कि इसका असर माँ के अपने स्वास्थ्य के साथ-साथ बच्चे के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। यह सकारात्मक बदलाव का चक्र है क्योंकि शिक्षा लड़कियों को अपने अधिकार पाने में भी सक्षम बनाती है। हमारे अनुभवों से साफ है कि कैसे शिक्षा एक लड़की और उसके समुदाय के जीवन में बदलाव ला सकती है, जो अन्यथा बाल विवाह को चक्र में फंस जाती है।’’
कर्नाटक के बेलगाम जिले के जगनूर में क्राई की एक परियोजना इस बात की पुष्टि करती है कि कैसे शिक्षा के द्वारा लड़कियों के बाल विवाह की समस्या को हल किया जा सकता है और उन्हें समय से पहले माँ बनने से रोका जा सकता है। जगनूर बाल विवाह एवं माध्यमिक शिक्षा की कमी के चलते सुर्खियों में रहा है, जहाँ लड़कियां हमेशा से अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ती आई हैं और समय के साथ ये आंकड़े लगातार बढ़े हैं। क्राई प्रोजेक्ट पार्टनर महिला अभिवृद्धि मत्तू समरक्षण समस्त के साथ स्थानीय अधिकारियों, ज़िला शिक्षा अधिकारियों के 3 साल के प्रयासों के बाद राज्य के मुख्यमंत्री ने एक गवर्नमेन्ट हाई स्कूल के लिए अनुमोदन दिया। क्राई पार्टनर के अध्ययन के अनुसार 2012-14 में बाल विवाह के मामलों की संख्या 64 थी। हाई स्कूल का संचालन शुरू होने के बाद 2015 में यह आंकड़ा गिर कर मात्र 6 पर आ गया, और 49 लड़कियों की शादी टल गई। इस सुधार के अलावा स्कूल छोड़ने की दर भी नाममात्र हो गई है।