अल्पसंख्यकों और लड़कियों की शिक्षा पर निवेश के आंकड़े निराशाजनक
लखनऊ: उत्तरप्रदेश हर बच्चे की शिक्षा पर मात्र 7613 रु व्यय करता है जबकि महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ हर बच्चे की शिक्षा पर क्रमशः 28,630 रु और 19,190 रु खर्च करते हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि राज्य सरकारी एवं सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों में नामांकित बच्चों की शिक्षा को कम प्राथमिकता देता है। कुल मिलाकर राज्य अपने बजट का मात्र 17.2 फीसदी हिस्सा ही स्कूली शिक्षा पर खर्च करता है।
ये आंकड़े क्राई-चाईल्ड राईट्स एण्ड यू तथा सेंटर फाॅर बजट्स, गवर्नेन्स एण्ड अकाउन्टेबिलिटी द्वारा किए गए बजट विश्लेषण में सामने आए हैं, जो स्कूली शिक्षा (कक्षा 1 से 12) पर बजट में किए जाने वाले व्यय (केन्द्र एवं राज्य कोष सहित) पर रोशनी डालते हैं। अध्ययन के तहत दस राज्यों के स्कूली बजट की जांच विस्तार से की गई है। इन राज्यों में बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, उत्तप्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडू और महाराष्ट्र शामिल हैं।
जहां एक ओर उत्तप्रदेश अध्यापकों के वेतन के लिए आवंटन लगातार बढ़ा रहा है- साल 2015-16 में शिक्षा के बजट का कुल 74.5 फीसदी हिस्सा अध्यापकों के वेतन पर ही खर्च किया गया, लेकिन उनके प्रशिक्षण पर किया जाने वाला निवेश आज भी अपने उचित स्तर पर नहीं है। अध्यापकों के प्रशिक्षण पर मात्र 0.3 फीसदी निवेश इस दृष्टि से अपेक्षित परिणामों में बाधक बना हुआ है। एएसईआर 2016 के अनुसार, सरकारी स्कूलों में पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले केवल 24 फीसदी बच्चे ही दूसरी कक्षा के स्तर का पाठ्य पढ़ सकते हैं, जबकि आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले केवल 25 फीसदी विद्यार्थी भाग के सवाल हल कर सकते हैं।
पिछले सालों के दौरान अध्यापकों की कमी के चलते स्थिति और भी बदतर हो गई है। अध्ययन किए गए राज्यों में से उत्तरप्रदेश में अध्यापकों के सबसे ज़्यादा पद खाली प्ड़े हैं। राज्य में एक ही अध्यापक वाले स्कूलों की संख्या भी अधिकतम है; (17602 प्राइमरी एवं सैकण्डरी स्कूल- डभ्त्क् 2016) बच्चों को स्कूल छोड़ने से रोकने और राज्य में पढ़ाई के स्तर में सुधार लाने के लिए इन खामियों को दूर करना बेहद ज़रूरी है।
स्कूल में नहीं पढ़ने वाले बच्चों को मुख्यधारा में शामिल करना भी एक मुद्दा है। राज्य में ऐसे बच्चों की संख्या 23.2 फीसदी है जो अध्ययन किए गए राज्यों में दूसरे स्थान पर है। हालांकि सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) बजट (2014-15) का केवल 0.03 फीसदी हिस्सा ही इस प्रयोजन के लिए आवंटित किया गया है। (2011 की जनगणना)
इसके अलावा, उत्तरप्रदेश जहाँ स्कूल जाने वाले 33 फीसदी बच्चे सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर वर्गों ;ैब्ध्ैज्द्ध से हैं, सीमांत समुदायों के लिए योजनाओं पर स्कूली शिक्षा बजट का मात्र 13.4 फीसदी हिस्सा खर्च करता है। पिछले 4 सालों में इस आंकड़े में लगातार गिरावट आई है।
2015-16 के दौरान स्कूलों में लड़कियों का नामांकन अनुपात प्राइमरी स्तर पर 85 फीसदी, सैकण्डरी स्तर पर 42 फीसदी और हायर सैकण्डरी स्तर पर 33 फीसदी था। स्कूलों में लड़कियों के कम अनुपात के बावजूद राज्य लड़कियों की शिक्षा पर स्कूली शिक्षा बजट का मात्र 0.5 फीसदी हिस्सा ही खर्च करता है। 2012-13 में यह आंकड़ा 2.6 फीसदी था, जिसके बाद इसमें गिरावट आई है। वहीं उड़ीसा लड़कियों की शिक्षा पर अधिकतम 5.9 फीसदी और मध्यप्रदेश 5.8 फीसदी हिस्सा खर्च करता है।
क्राई (चाईल्ड राईट्स एण्ड यू) में नोर्थ की रीजनल डायरेक्टर सोहा मोइत्रा ने कहा, ‘‘हमें उन क्षेत्रों का विश्लेषण करना होगा जहां वित्तपोषण की कमी है। क्राई अपने अनुभव के आधार पर शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने और बच्चों के प्रदर्शन में सुधार लाने के लिए पेशेवर अध्यापकों की भूमिका पर ज़ोर देता रहा है। राज्य को अध्यापकों के भर्ती, अध्यापकों के प्रशिक्षण तथा सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से वंचित बच्चों तक पहुंच बनाने पर ध्यान देना चाहिए।’’
‘‘भारत में शिक्षा पर आवंटित बजट उपयुक्त नहीं है क्योंकि जहां एक ओर यह दशकों पहले कोठारी कमीशन द्वारा अनुशंसित मानदण्डों से कहीं कम है, वहीं दूसरी ओर स्कूली शिक्षा से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर कम आवंटन करता है- फिर चाहे अध्यापकों की उपलब्धता हो, उनका प्रशिक्षण, स्कूल की निगरानी या सीमान्त समुदायों के बच्चों के लिए हस्तक्षेप- जो ज़्यादातर गरीब राज्यों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।’’ सीबीजीए के डायरेक्टर सुब्रत दास ने कहा।