लखनऊ: मदरसा हनफिया हफिज़िया नूरूल उलूम में जश्न-ए-सरकारे दोआलम व मोहद्दीस-ए-आज़म कान्फ्रेस का आयोजन किया गया जिसकी सरपरस्ती आॅल इण्डिया मुहम्मदी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद अयुब अशरफ ने की जलसे की शुरूआत कारी मोहम्मद आरिफ रज़ा रिज़वी ने तिलावत-ए-र्कुआन-ए-पाक से की। निज़ामत के फराएज़ मौलाना मसूद रहमानी ने अंजाम दिया। नात व मनकबत का नज़राना इमरान निज़ामी, कारी मुईनुद्दीन व कारी अनवर ने पेश किया।

जलसे को हज़रत मौलाना सैयद तलहा अशरफ किछौछवी, हज़रत मौलाना सैयद अनसार बापू, और हज़रत मौलाना मुन्नवर हुसैन बस्तवी ने खिताब किया।
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जलसे को खिताब करते हुए औलादे गौसे आज़म जानशिन-ए-मख्दूम-ए-सिमना हज़रत मौलाना सैयद तलहा अशरफ किछौछवी ने कहा कि मोमिनों में इत्तेहाद का पैगाम हमें रब की जानिब से मिला है यही वजह है कि अगर नमाज़ घर पर पढ़ी जाए तो कम सवाब है और अगर मस्जिद में पढी जाए तो ज़्यादा सवाब है क्योकि मस्जिद में मोमिनांे को मुत्तहीद होने का अवसर प्राप्त होता है। इसी लिए मोहद्दीस-ए-आज़म ने फरमाया था

कि कुर्फ से कुर्फ बगलगीर नज़र आता है ।।

क्यो नही होते मुस्लमा मुस्लमा के करीब ।।

उन्होेने कहा कि एहले सुन्नत वल जमात का तरिका सहाबा और एहले बैत का है। आमदे मुस्तफा पर फतवा लगाने वालो सुनों हम मोमिन आमद-ए-मुस्तफा सिर्फ बाराहरबी अव्वल को नही मनाते है बल्कि हर रोज़ पाॅचों वक्त मनाते है क्या तुम नही जानते ये फर्ज़ नमाज़ से पहले अज़ान क्या है यह अमाद-ए-मुस्तफा ही तो है जिसे हज़रते बेलाल सरकार के आने से पहले जल्दी जल्दी एकामत कहते थे वरन् एक दावते नमाज के बाद दुसरी दावते नमाज़ की क्या ज़रूरत थी। गोया अज़ान दावते नमाज़ है, नमाज़ इबादत-ए-खुदा है और एकामत आमदे मुस्तफा है|

मदरसा हफीज़िया हनफिया नूरूल उलूम के मोहतमीम मौलाना मोहम्मद आज़म अली कादरी ने मदसे की जानिब से मोहद्दीस-ए-आज़म हिन्द एवर्ड आॅल इण्डिया मुहम्मदी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद अयुब अशरफ व सदाए सुफिया-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद बाबर अशरफ के हाथों से अन्सार बापू दिनी खितमात, डाॅ मोहम्म्द इरफान समाजिक सेवा, जनाब मोहम्मद रिज़वान को बेहतरिन सहाफी खितमत व सैयद मोहम्म्द अहमद मियाॅं किछौछवी को एहले सुन्नत वल जमात में बहतरीन कायदाना सलाहियत के लिए दिया गया