बिहार में केर-बेर के सार्थक मेल को केन्द्रीय नजीर बनाने को लालायित ‘‘गैरभाजपा दल’!
पीएम के दावेदारों की फौज से नेताजी घबराये?
देवेश शास्त्री इटावा
बिहार विधानसभा में केर-बेर के सार्थक संग से तात्पर्य नीतीश-लालू व कांग्रेस के महा गठबंधन की सफलता है, शायद इसी को नजीर मानकर यूपी विधानसभा चुनाव में काफी जद्दोजहद के बाद गृह कलह से जूझ रही समाजवादी पार्टी को प्राचीनतम पार्टी यानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से गठजोड़ करना पड़ा था। नतीजा सामने है गठबंधन रसातल में चला गया, समीक्षा के नाम पर सपा ने आंतरिक कलह को ‘‘भितरघात कहकर नेताजी-ग्रुप को आरोपित कर दिया।
बिल्ली के भाग्य से छीका टूटने के रूप में मायावती ने ईवीएम में गड़बड़ी होने का आरोप लगाकर अनोखा मुद्दा उछाल दिया तो दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल भी ईवीएम में गड़बड़ी का रोना रोने लगे। कांग्रेसियों ने हां में हां मिलाने का प्रयास किया तो पंजाव के निर्वाचित कांग्रेसी सीएम ने यह कहकर मुंह बंद कर दिया-‘‘यदि गड़बड़ी की गुंजाइस होती तो अकाली-भाजपा गठबंधन से सत्ता नहीं छीन पाते।’’ वहीं निर्वाचनन आयोग ने समूचे देश को ईवीएम में गड़बड़ी की गुंजाइश खोजने की चुनौती दे डाली।
इसके वावजूद मायावती ने ईवीएम में गड़बड़ी पर हठयोग का परिचय देते हुए 2019 के आमचुनाव के लिए गैर-भाजपा दलों के महागठबंधन का प्रस्ताव कर दिया, फौरी तौर पर यूपी के अपदस्थ सीएम अखिलेश यादव ने बुआ जी की हां में हां मिलाकर साथ देने का संकेत दिया ही था कि हासिये पर बैठे नेताजी ने तत्काल नकारते हुए बुआ-बबुआ के मंसूबों पर पानी फेर दिया- ‘‘भाजपा का मुकाबले करने में हम अकेले सक्षम हैं, गठबंधन की कोई जरूरत नहीं है।’’
यूपी विधानसभा चुनाव में सपा -कांग्रेस गठजोड़ को नकारने वाले और चुनाव प्रसार से देन रहकर सिर्फ जसवन्तनगर में अनुज शिवपाल और लखनऊ में छोटी पुत्रवधू अपर्णा के पक्ष में प्रचार करने वाले नेताजी को माया-अखिलेश के ख्वावी-पुलाब पर यह बयान क्यों देना पड़ा?
बिहार में लालू-नितीश के साथ आ सकते हैं और कामयाब हो सकते हैं, और यूपी में कांग्रेस से गठजोड़ कर सपा सत्ता से वेदखल हो सकती है, तो आसन्न लोकसभा चुनाव में ‘‘महागठबंधन’’ क्या इमरजेंसी के बाद गैरकांग्रेसी दलों के ‘‘समग्र क्रान्ति’’ की तरह मोदी लहर को छिन्न-भिन्न क्यों नहीं कर सकता?
शायद नेताजी अपने अनुभव और केन्द्रीय नेतृत्व के नाम पर महागठबन्धन के वाबजूद प्रत्येक दल के नेताओं में प्रतिस्पर्धा प्रत्यक्ष दिखाई दे रही है। वे स्वयं नेतृत्व की महत्वाकांक्षा रखते हैं, जो पहले भी टूट चुकी है। महागठबंधन बनाने की प्रस्तावक मायावती भी ‘‘दलित प्रधानमंत्री, बनने का सपना कांशीराम ने देखा था।’’ अब पूरा होगा। महागठबंधन में बिहार के सीएम नीतीश कुमार बहुत पहले से ही पीएम बनने का सपाना देखते रहे हैं। गैरभाजपा दलों में एक-दो नहीं, बल्कि हर कोई पीएम बनने ही महत्वाकांक्षा रखता है।
नेताजी को पुराने अनुभव इस तरह अपनी महत्वाकांक्षा पर ग्रहण की संभावना भांपकर महागठबंधन की बजाय खुद की सक्षमता प्रकट कर रहे हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)