जीवन को समझने के लिए वैज्ञानिक सोच आवश्यक: पद्मश्री डाॅ. नित्यानन्द
लखनऊ: विज्ञान को जानने, समझने के लिए किसी वैज्ञानिक क्षेत्र से जुड़ा होना जरूरी नहीं है। विज्ञान का ज्ञान व्यक्ति को जीवन मंे ऐसी किसी भी परिस्थिति और घटना का सामना करने के लिए तैयार करता है जिसमें तर्कपूर्ण सोच, सिद्धांत आधारित विशलेषण और आंकलन कर सकने जैसे गुणों की आवश्यकता होती है।
यह विचार प्रसिद्ध वैज्ञानिक, पूर्व निदेशक सीडीआरआई पद्मश्री डाॅ. नित्यानन्द ने एमिटी स्कूल आॅफ एप्लाइड साइंस, एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर द्वारा ‘रसायन एवं पर्यावरण विज्ञान की वर्तमान धारणाएं और उनके अनुप्रयोग’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में व्यक्त किये।
डाॅ. नित्यानन्द सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने विज्ञान के साथ जीवन विषय पर बोलते हुए कहा कि छात्र को दिन-प्रतिदिन होने वाली घटनाओं को समझने और उसके अनुसार त्वरित निर्णय लेने के लिए वैज्ञानिक सोच और सिद्धांतों की समझ आवश्यक है। डाॅ. नित्यानन्द ने जीवन की उत्पत्ति और ब्रह्माण्ड में मानव की स्थिति पर भी चर्चा की और कहा कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बाद जैव विविधता का विकास करने में योग्यतम की उत्तरजीविता का सिद्धांत सर्वमान्य है और आज के आणविक जीव विज्ञान के द्वारा हम यह देख सकते हैं कि किस प्रकार आणविक स्तर पर जीवों में म्यूटेशन और जेनेटिक बदलाव हुए।
इससे पूर्व मुख्य अतिथि ने दीप प्रज्ज्वलित कर सम्मेलन का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर पर्यावरण विभाग उत्तर प्रदेश शासन के पूर्व निदेशक डाॅ. ओ.पी. वर्मा, यू.पी. बायोएनर्जी डेवलपमेंट बोर्ड के कोआर्डिनेटर डाॅ. पी.एस. ओझा, सीडीआरआई लखनऊ के वैज्ञानिक डाॅ. अतुल कुमार और डाॅ. ए.के. सक्सेना भी उपस्थित रहे।
प्रतिकुलपति एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर सेवानिवृत्त मेजर जनरल के.के. ओहरी (एवीएसएम) ने मुख्य अतिथि का स्वागत किया।
सम्मेलन में तीन तकनीकी सत्र भी आयोजित किये गये जिसमें बायोटेक पार्क के पूर्व सीईओ डाॅ. पी.के. सेठ ने ट्रैकिंग टूल्स-बायोमारकर्स् इन सेल कल्चर विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने पर्यावरण रसायन विज्ञान पर बात करते हुए कैंसर, ट्यूमर्स, न्यूरो बिहैवेरियल और लर्निंग डिसआडर्स् पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के बिगड़ते स्वरूप के कारण जीवों में प्रतिरोधक क्षमता की कमी, प्रजनन सम्बंधी परेशानियां और हार्मोन सम्बंधी विषमताएं देखी जा रही हैं।
इकोमैन लेबोरेटरीज प्रा. लि. लखनऊ के संस्थापक एवं सीएमडी डाॅ. आर.एन. भार्गव ने कहा कि आज जैविक अस्तित्व के सामने पर्यावरण प्रदूषण सबसे बड़े खतरे के रूप में सामने है। उन्होंने कहा कि इस विषय पर सोच-विचार और चर्चा करने का समय बीत चुका है। अब हमें त्वरित रूप में कार्यवाही करने की आवश्यकता है क्योंकि पर्यावरण प्रदूषण से जीवन को सुरक्षित करने के लिए किये जाने वाले प्रयासों के लिए बहुत ही कम समय बचा है। उन्होंने कहा कि पृथ्वी को बचाने के लिए वे विश्व के सभी देशों को पर्यावरण प्रदूषण के खात्मे हेतु सम्मिलित काम किये जाने की जरूरत है।
पर्यावरणीय बदलाव एक सच्चाई विषय पर बोलते हुए डाॅ. ओपी वर्मा ने कहा कि आज स्थिति बहुत गम्भीर हो चली है। पर्यावरण में बीते 267 सालों के उपलब्ध आंकड़ांे का विशलेषण किया जाय तो हम देखते हैं कि इस दौरान कार्बनडाई आक्साइड की मात्रा वातावरण में 280 पीपीएम से बढ़कर 369 पीपीएम हो चुकी है जोकि एक खतरनाक स्तर है। वहीं दूसरी ओर पिछले 100 सालों के दौरान सालाना तापमान 0.4 डिग्री सेल्सियस से लेकर 0.7 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में काम करने के लिए अब बहुत कम ही समय बचा है।
सम्मेलन के दौरान डिप्टी डीन रिसर्च विज्ञान एवं तकनीकी प्रो. सुनीला धनेश्वर, एएसईटी के निदेशक विंग कमांडर अनिल कुमार तिवारी सहित एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर के विद्यार्थी उपस्थित रहे।