हिंदुस्तानी मुसलमान ,शिक्षा, नौकरी और राजनीति
सय्यद आलम शजली ((फतेहपुरी)
हिंदुस्तान एक ऐसा देश है जिसे अनेकता में एकता वाला देश मन जाता है | सदियों मुग़ल ने साशन किया, अंग्रेजों ने राज किए , आज़ादी के ७० साल से कांग्रेस ने साशन किया और अब बीजेपी | अगर हम हिंदुस्तान के इतिहास को उठा कर देखें और मुग़ल से ले कर आज तक के शिक्षा प्रणाली पर ध्यान दें तो हम पाएंगे की जितना काम मुग़ल ने किया है शायद किसी और साशक या राजनितिक पार्टी ने नहीं किया |
मुग़ल के सबसे पहले साशक बाबर, शिक्षा को ले कर हमेशा चिंतित रहते थे और इसी रूचि के साथ उन्होंने पर्शियन, अरबिक और तुर्किश भाषा को हिंदुस्तान में फैलाया| बाबर ने बहुत सारे हिंदुस्तानी स्कूलों को फिर से मरम्मत कराया, और कुछ नए स्कूल भी स्थापित किया |
चूँकि बाबर ४ साल ही भारत पे साशन किये इसलिए उनको अधिक अवसर हिंदुस्तान में शिक्षा प्रणाली पर काम करने को नहीं मिल सका | अपने पिता की तरह हुमायु भी शिक्षा से बहुत लगाओ रखते थे और इसके लिए हुमायूँ ने कला और साहित्य के आदमी को संरक्षण प्रदान किया। कई राजनीतिक कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने शिक्षा के कारणों के लिए मूल्यवान सेवा की। उन्होंने दिल्ली में एक कॉलेज की स्थापना की और शेख हुसैन को अपने प्राचार्य के रूप में नियुक्त किया।
उन्हें विद्वानों और संतों का साथ पसंद था, और विद्वानों की गतिविधियों में बहुत समय बिताते थे। वह किताबों को इकट्ठा करने का भी शौक रखते थे इसीलिए एक सुंदर पुस्तकालय का भी गठन किया ।
शेर शाह सूरी, जिसने भारत पर शासन किया जबकि हुमायु वनवास पर थे , सूरी को भी शिक्षा में भी अत्यधिक रूचि थी । उन्होंने नारनौल पर एक मदरसा स्थापित किया जो शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बन गया। वह पहला मुस्लिम शासक था, जिसने साधारण मुसलमानों की शिक्षा के लिए भी प्रावधान किया था।
अकबर, महान मुगल शासक, शिक्षा में बहुत अधिक रुचि दिखाया। यह कहना गलत नहीं होगा कि उसके शासनकाल में भारत के मुसलमानों के लिए शिक्षा के इतिहास में एक नया अध्याय की शुरुआत हुई थी , हालांकि, अकबर खुद बहुत शिक्षित नहीं था, उन्होंने विद्वानों और शिक्षा के लिए बहुत प्यार और काम किया।अपने शासनकाल के दौरान, दर्शन, इतिहास, साहित्य और कला जैसे विषयों ने जबरदस्त प्रगति की। उन्होंने शैक्षिक संस्थानों में अध्ययन के मौजूदा पाठ्यक्रम में कुछ बदलावों को पेश किया, जैसे तर्क, अंकगणित, खगोल विज्ञान, लेखा और कृषि आदि विषयों को पढ़ाई में शामिल किया गया। यह स्वाभाविक रूप से शिक्षा प्रणाली के लिए एक धर्मनिरपेक्ष पूर्वाग्रह प्रदान करता है, अकबर ने बच्चों के प्राथमिक शिक्षा(जिसकी ज़रुरत आज हिन्दुतान के आने वाले भविष्य की बहुत ज़रुरत है ) पर बहुत ध्यान दिया।
अकबर के समय के दौरान शिक्षा को उदार बनाया गया था और यहां तक कि हिंदू भी मुस्लिम मकतब और मदरसा में एडमिशन ले कर शिक्षा ग्रहण करते थे , परिणामस्वरूप कुछ समय में कुछ हिंदू विद्वानों और इतिहासकारों ने फारसी की शिक्षा ली और शिक्षा के के मैदान में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उस समय के कुछ प्रमुख विद्वानों में माधो भट, श्री भट्ट, बिशन नाथ, राम कृष्ण, बलभद्र मिस्र, वासुदेव मिस्र, भान भट, विद्या निवास, गौरी नाथ, गोपी नाथ, किशन पंडित, भट्टाचार्यजी, भगीरथ, काशी नाथ, महादेव शामिल थे। अकबर के समय के दौरान मुसलमानों के लाभ के लिए कई संस्कृत कार्यों का अनुवाद फारसी में किया गया था। उन्होंने आगरा, फतेहपुर सीकरी और अन्य स्थानों पर कई मकतब और मदरसा स्थापित किए
इसी कड़ी में कुछ ऐसा ही काम अकबर के उत्तारधिकारी जहांगीर ने भी काम किया जो की खुद फ़ारसी का विद्वान और तुर्किश का भी एच ख़ासा जानकार था | ऐसा कहा जाता है की जो मदरसे पिछले ३० सालों से खाली पड़े थे जहाँ चरिन्द परिंद ने अपना घर बना लिया था उनहिऐं फिर से सजाया संवारा गया और वहां शिक्षा का काम शुरू किया गया | इसी प्रकार शाजहाँ और औरंगज़ेब के सेशन काल में शिक्षा पर ध्यान दिया गया|
ब्रिटिश-पूर्व दिनों में हिंदुओं और मुसलमान क्रमशः पाठशाला और मदरसा के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करते थे । अंग्रेजों ने भारत में अपने शासन के पहले चरण में शिक्षा की प्रगति में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। व्यक्तिगत प्रयासों और राजनीतिक लाभ के लिए कुछ अंग्रेजों ने शिक्षा के प्रसार में कुछ हद तक रुचि दिखाई। बंगाल के गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स ने प्राच्य शिक्षा के प्रसार में गहरी दिलचस्पी दिखाई दी, जिसमें जोनाथ डंकन, नाथानी हलहेड, सर विलियम जोन्स, हाथों में शामिल हुए। सर विलियम जोन्स, जस्टिस कलकत्ता उच्च न्यायालय, कलकत्ता (1784 एडी।) में एशियाटिक सोसायटी की स्थापना की। यहां उन्होंने प्राच्य शिक्षा और संस्कृति पर शोध शुरू किया। लॉर्ड वेलेस्ली फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना (1800 ए.डि.) में हुई थी। यहां ब्रिटिश नागरिकों को भारतीय भाषाओं, कानूनों, रीति-रिवाजों, धर्म, भूगोल आदि को सिखाया गया। विल्किन्स जोन्स, कोलब्रुक, विलियम कैरी के प्रयास से इस प्राच्य शिक्षा को एक पद प्राप्त हुआ।
कांग्रेस ने भी कुछ हद तक शिक्षा के मैदान में काम करने की कोशिश की , पंडित जवाहर लाल नेहरू ने स्वतंत्रता के बाद भारत में शिक्षा के विकास के पाठ्यक्रम का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके दूरदर्शी नेतृत्व के तहत, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार ने उच्च शिक्षा के कई संस्थानों की स्थापना की, जिसमें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, पांच भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (पांच वर्षीय योजना के दौरान स्थापित), भारतीय प्रबंधन संस्थान और भारत के विभिन्न हिस्सों में कृषि विश्वविद्यालयों तृतीय पंचवर्षीय योजना के दौरान, कई इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि विश्वविद्यालय और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास संस्थान स्थापित किए गए थे। उन्होंने इन संस्थानों को "आधुनिक मंदिरों" का नाम दिया |
200 9 में कांग्रेस के नेताओं ने घोषणा की कि कांग्रेस शासन हर किसी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करेगा इसे बार बार दोहराया जाता है कि राज्य 'डेमोग्राफिक डिविडेंड' को 'जनसांख्यिकीय आपदा' के रूप में नहीं लेना चाहता है डॉ. अमर्त्यकुमार सेन या नोलिर्बल स्कूल के 'ह्यूमन कैपिटल फॉर्मेशन स्कूल' की वकालत करने वाले बौद्धिक कौशल विकास गुणवत्ता शिक्षा में निवेश के लिए दृढ़ता से वकालत कर रहे हैं।
भारत आज दुनिया में सबसे बड़ा शैक्षिक ऋण कार्यक्रमों में से एक है। पिछले पांच वर्षों में, पंद्रह लाख से अधिक छात्रों को 26,000 करोड़ रुपये से अधिक का ऋण मिला है और विभिन्न व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का काम कर रहे हैं।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अब अपने चुनाव घोषणापत्र में वचन दिया है कि सभी छात्रों को किसी भी मान्यता प्राप्त कॉलेज / विश्वविद्यालय में किसी भी मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रम में भर्ती कराया जाएगा, आवश्यकता आधार पर, या तो एक छात्रवृत्ति या शैक्षिक ऋण बिना किसी संपार्श्विक के लौटने के बाद बहुत लंबे अवधि। सभी बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्कूल शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए, हम देश के प्रत्येक ब्लॉक में एक मॉडल स्कूल की स्थापना के लिए पहले से ही एक शुरुआत कर चुके हैं।
मुसलमानों के सरकारी विभाग में नौकरी की बात करें तो भागीदारी बहुत ही काम है २०१४-१५ के आंकड़े बताते है की ८.७ प्रतिशत मुसलमान सरकारी नौकरी कर रहा है जबकि हिंदुतसान में मुसलमानों की तादाद कुल जनसँख्या की १३.५ प्रतिशत है | वहीँ हिन्दू कम्युनिटी के जनसँख्या ८०.५ प्रतिशत है और सरकारी नौकरी में ४१ प्रतिशत उनकी भागीदारी है |
अज़्ज़ादी के बाद कांग्रेस साशन करती चली आ रही है और उसका ब्रेक फ़ैल हुआ २०१४ में |
प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा ब्रेक लगाया की कांग्रेस को ऐसा महसूस होने लगा जैसे उसका भविष्य खतरे में आ गया है क्योंकि सोनिया गाँधी यह बेहतर जानती है की राहुल गांधी राजनीती के क़ाबिल नहीं है | जो सपना राजीव ने देखा था उसे पूरा करने के लिए राहुल दूर दूर तक कहीं भी छुते हुए भी नहीं दिखाई दे रहे है उसकी वजह यह है की न तो राहुल के अंदर क़ाबलियत है और न ही समझदारी वह दोनों से परे है , बस विरासत मिल गई है तो उसे चलाने की कोशिश कर रहे है |
२०१७ के चुनावों को मद्दे नज़र बात की जाये तो कोई भी मुसलमान नेता उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में नहीं है , उसकी वजह सिर्फ यह है की न तो मुसलमानों में एकता है और ण वह करना चाहते है | इसकी वजह है मुसलमानों के नेता जो सिर्फ अपने फायदे के लिए राजनीती में आते है अपना दर्द दिखाते है और चुनाव के बात जनता को भूल जाते है |
अगर मुस्लिम्स नेता जनता के साथ ऐसा व्यवहार न करें तो जनता एक हो कर उनको सपोर्ट करेगी और मुसलमानों की ताकत भी विधानसभा और राज्यसभा में बढ़ेगी | इस प्रकार से मुसलमान केंद्र और राज्य दोनों सभाओं में उपस्थित हो कर ईमानदारी के साथ मुसलमानों की मदद कर सकते है इतना ही नहीं मुसलमान की शिक्षा, रोज़गार और दूसरी परहसनियां भी दूर होंगी | हम लोकतंत्र देश में रहते है और हमारा तरीका भी लोकतान्त्रिक होना चाहिए |
हमें हिन्दुतान के उन सारे विभागों में पहुचना होगा जहाँ जहाँ मुसलमानिं की भागीदारी शुन्य है यदि ऐसा होता है तो हिन्दुतान के मुसलमानों की हालात फिर से सुधर सकती है और वह अशिक्षा और बेरोज़गारी जैसी दुश्वारियों से दूर हो सकता है |