UP CM पर सस्पेंस बरक़रार, मनोज सिन्हा ने भी किया इनकार
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री का नाम शनिवार को तय हो जाएगा. इस संबंध में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि 18 मार्च को शाम पांच बजे विधायक दल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान किया जाएगा. उसके बाद 19 तारीख को शाम पांच बजे से शपथ ग्रहण समारोह होगा. प्रदेश लखनऊ में शनिवार शाम को बीजेपी के नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक होगी, जिसमें राज्य के नए मुख्यमंत्री का नाम तय किया जाएगा. सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री पद की रेस में राजनाथ सिंह के अलावा मोदी सरकार में मंत्री मनोज सिन्हा और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के नाम आगे चल रहे हैं. हालांकि मनोज सिन्हा ने इस बारे में कहा है,''न ही मैं यूपी सीएम की रेस में हूं और न ही मुझे ऐसी किसी रेस के बारे में पता है.''
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शामिल चेहरों की रेस में अब सिर्फ दो नाम शामिल बताए जा रहे हैं. ये हैं – केंद्रीय दूरसंचार मंत्री मनोज सिन्हा और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य. सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके मनोज सिन्हा को बेहतर प्रशासक माना जाता है. उन्होंने प्रतिष्ठित बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी यानी बीएचयू से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी.
लेकिन मनोज सिन्हा का एक कमजोर पहलू यह है कि वह सवर्ण जाति से आते हैं. यूपी चुनावों में बीजेपी को दलितों और पिछड़ी जातियों का काफी समर्थन मिला, ऐसे में पार्टी उन्हें नाराज करने का जोखिम नहीं लेना चाहेगी. इस लिहाज से अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य का चयन बीजेपी की समस्या का समाधान कर सकता है. मौर्य को पिछले साल इसी आधार पर बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, जिसके बाद पार्टी ने दलितों और पिछड़ों के बीच पैठ बनाना शुरू किया. मौर्य के पक्ष में एक और बात जाती है और वह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उनका पुराना नाता.
हालांकि बीजेपी के लिए यह बात परेशानी की हो सकती है कि मौर्य के खिलाफ कई मामले दर्ज हैं और अगर उन्हें सीएम बनाया गया तो विपक्षी दल बीजेपी को निशाने पर लेगी. बीजेपी यूपी में चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी के खिलाफ बार-बार कानून-व्यवस्था का मुद्दा और कथित 'गुंडाराज' को ही उछालती रही थी.
विधानसभा चुनावों की जबर्दस्त जीत से आम जनता की उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं, जिन्हें पूरा करना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती होगी. 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश के मामले में पार्टी कोई भी ऐसा फैसला नहीं लेना चाहती, जिससे आगे चलकर नुकसान हो.