फर्रूखाबाद की निरक्षरता और शिक्षा का सामाजिक विवेचन
डॉ.नीतू सिंह तोमर एम.ए., पी-एच.डी. समाजशास्त्र, पोस्ट डॉक्टोरल फेलो, यू.जी.सी.
प्रत्येक समाज अपनी मान्यताओं एवं आवश्यकताओं के अनुकूल ही अपनी शिक्षा व्यवस्था करता है। किसी समाज की मान्यता एवं आवश्यकता उसकी सामाजिक संरचना तथा भौगोलिक, धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति के अनुकूल होती है। समाज में होने वाले परितर्वन भी उसके स्वरूप एवं जरूरतों को बदलते है। इसके अनुसार उनकी शिक्षा का स्वरूप बदलता है। समाज की संरचना एवं भौगोलिक, धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक स्थितियां एवं संस्कृति, सामाजिक परिवर्तन से शिक्षा का स्वरूप बदलता रहता है। भौगोलिक स्थिति पर नियंत्रण एवं धर्मिक, राजनैतिक, आर्थिक स्थितियाँ तथा संस्कृति, सामाजिक परिवर्तन होते हैं। जिस समाज में जैसी शिक्षा की व्यवस्था की जाती है वैसी ही उस समाज की संरचना होने लगती है। सामाजिक परिवर्तन लाने में शिक्षा आधारभूत भूमिका अदा करती है।
समाज के प्रत्येक व्यक्ति और उसके प्रतिपाल्यों को शिक्षित करने के लिए देश-प्रदेश सहित फर्रूखाबाद जनपद में बहुत बड़ी संख्या में परिषदीय, केंद्रीय, नवोदय, कस्तूरबा, आश्रम पद्धति आदि विद्यालय सहित आगंनबाड़ी, सर्वशिक्षा केंद्र तथा एडिड विद्यालय संचालित हो रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या में शिक्षक, शिक्षामित्र, प्रेरक, कार्यकत्री, सहायिका, अनुदेशक, कोआर्डिनेटर, शिक्षाधिकारी सहित रसोइया, सेवक, स्वीपर, लिपिक आदि कार्यरत हैं। जिनके वेतन-भत्तों तथा छात्रों के लिए मिड-डे-मील, दूध, फल, बस्तों, ड्रेसों आदि पर राष्ट्रीय आय का बहुत बड़ा हिस्सा व्यय हो रहा है। इसके बावजूद उ.प्र. राज्य के फर्रूखाबाद जनपद के अधिकांश सरकारी स्कूलों में पढ़ाई न होने से कोई भी अपने प्रतिपाल्यों को इन स्कूलों में पढ़ाने हेतु तैयार नहीं है। सरकारी सुविधा प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों का पूर्णतया अभाव है। इनमें जो छात्र पंजीकृत हैं उनमें अधिकांश छात्र या तो फर्जी हैं अथवा पूर्णतया निरक्षर हैं। इनमें कार्यरत लगभग सभी रसोइयों एवं पंजीकृत छात्रों व अभिभावकों में अधिकांश की निरक्षरता और अशिक्षा फर्रूखाबाद की शिक्षा की वास्तविकता उजागर करती है।
शिक्षा की उपयोगिता एवं आवश्यकता की पूर्ति हेतु छात्र-छात्राओं को अध्ययन के लिए मानकपूर्ण विद्यालय, पाठ्यक्रम, गुणवŸापूर्ण शिक्षण, प्रयोगशाला एवं अर्ह शिक्षक, बुनियादी जरूरी है। हमारा लोकतांत्रिक संविधान जन-सामान्य के संरक्षण एवं उसकी आवश्यकता की पूर्ति व्यवस्था हेतु दृढ़ संकल्पित है। केंद्र एवं राज्य सरकारें अपनी यथाशक्ति से देश की शैक्षिक समस्याओं का समाधान कराने मे अपने दायित्वों का निर्वाहन कर रहीं हैं। परन्तु स्वार्थी-असामाजिक लोग सरकारी व्यवस्था में घुसपैंठ कर संवैधानिक शैक्षिक व्यवस्था को ध्वस्त कर अराजकता कर रहे हैं। जीवन की बुनियादी शिक्षा शिक्षक एवं शिक्षण विहीन, प्रयोगशाला-विहीन, नकलयुक्त और उ६ेश्यहीन हो गई है।
शिक्षा का उ६ेश्य बालक में व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास तथा उसमें सामाजिक कुशलता के गुणों का विकास करना होता है। ज्ञान प्राप्त करने के लिए शिक्षा के विभिन्न पक्ष-अर्थ, उ६ेश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण पद्धति, अनुशासन, परीक्षा साधन, शिक्षक, बालक और स्कूल-कालेज हैं जिसकी आध्ुनिक धारणाएँ क्रमशः विकास, व्यक्तित्व का विकास एवं सामाजिक कुशलता, बाल के प्रति क्रिया प्रधान-सामाजिक अघ्ययन, खेल और योजना, आत्म अनुशासन, वस्तुनिष्ठा, प्रगतिपत्रा, वर्धन के लिए, लिखित विवरण, अनौपचारिक, निज-दार्शनिक-पथप्रदर्शन, सक्रिय और सामाजिक लघुरूप है।
केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा केंद्रीय, राजकीय एवं अनुदानित स्कूलों में 1-8 तक के विद्यार्थियों को निःशुल्क मानकीय शिक्षा, पुस्तकें, पोशाकें, मध्याह्न भोजन, दूध, फल, वेतनिक शिक्षक-कर्मचारी, किशोर-प्रौढ़ निरक्षरों को सारक्षरता तथा 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों को पौष्टिक भोजन, दूध, खिलौने, स्वास्थ्य जांच, स्कूल पूर्व की शिक्षा तथा महिलाओं के मातृत्व धारण करने के उपरांत पौष्टिक भोजन, दूध, फल, टीका, चिकित्सा, किश्तों में 6000 रूपए मुहैया कराए जा रहे हैं।
शिक्षा की पूर्ति हेतु शिक्षण के साधन, पाठ्यक्रम, प्रबंधन, वित्त के लिए जो मानक एवं विधान निर्धारित हैं उनकी उपेक्षा एवं दुरूपयोग से देश-समाज पर अच्छे-बुरे प्रभावों के आकलन की जरूरत महसूस करते हुए मैंने शिक्षण संस्थानों की शैक्षिक, प्रबंधकीय एवं मानकीय व्यवस्था के प्रदर्शित वर्तमान स्वरूपों पर विद्यालयों का अवलोकन आवश्यक समझा है। इसी आधार पर मैंने फर्रूखाबाद जिले में संचालित केंद्रीय एवं राजकीय तथा एडिड-अनएडिड विद्यालयों, महाविद्यालयों इंटर कालेजों, टेक्निकल विद्यालयों,पब्लिक स्कूलों, मान्यता-गैर मान्यता प्राप्त विद्यालयों, मदरसों, ईश्वरीय विश्वविद्यालयों का निरीक्षण-अवलोकन किया तथा संस्थानों के प्रमुखों, शिक्षकों, प्रबंधतंत्रों, छात्र-छात्राओ, शिक्षाधिकारियों, रसोइयों, कार्यकत्रियों, प्रेरकों, अभिभावकों एवं जनता से बातचीत की तथा औपचारिक-अनौपचारिक माघ्यम से शिक्षण संस्थानों से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त कर तथ्य संकलित किए। शिक्षा अधिनियम, ट्रस्ट-सोसाइटी अधिनियम, सोसाइटी एक्ट, सरकारी आदेश-संग्रहों, कर्मचारी आचरण संहिता एवं शिक्षा व्यवस्थाओं का अध्ययन एवं अवलोकन से प्राप्त जानकारी के आंकडों पर विचार करके मैंने यह जानने का प्रयास किया कि क्या विद्यालयों की शिक्षण व्यवस्था, छात्र पंजीयन, मिड-डे-मील, शिक्षण कक्ष, प्रबंध तंत्र, शिक्षकों की गतिविधियाँ, पाठ्यक्रम, शिक्षक, कर्मचारी, वेतन-भत्ते, शिक्षण, प्रशिक्षण, प्रयोगिक कार्य, शिक्षक-छात्र उपस्थित, परीक्षा, निरीक्षण, निगरानी एवं वित्तीय व्यवस्थाएँ आदि मानक युक्त हैं या नहीं।
जनगणना-2011 के अनुसार, फर्रूखाबाद जिले का कुल क्षेत्रफल 2181 वर्ग कि.मी. जनसंख्या घनत्व 865 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी., लिंगानुपात 1000 पुरूषों पर 874 स्त्रियाँ हैं। कुल जनसंख्या 1887577 जिसमें 1007479 पुरूष एवं 880098 स्त्रियाँ है। शहरी जनसंख्या 429990, ग्रामीण जनसंख्या 1457587 है। कुल साक्षर जनसंख्या 1125457(70.57ः), जिनमें 676067(79.34ः) पुरूष, 449390 (60.51ः) स्त्रियाँ हैं। कुल जनसंख्या में 0-6 वर्ष की जनसंख्या का कुल अनुपात 15.51 जिनमें बालक 15.43, बालिकाएँ 15.61 हैं। जिले में 1799 प्राथमिक स्कूल, 872 उच्च प्राथमिक स्कूल, 200 माध्यमिक विद्यालय, 56 महाविद्यालय, 9 परास्नातक महाविद्यालय, 3 मेडिकल कालेज, 3 आई.टी.आई, 1 पोलिटेक्निक हैं।
केंद्र एवं उत्तर प्रदेश सरकारों द्वारा संचालित जनसामान्य के कल्याण के लिए शैक्षिक योजनाओं के अध्ययन उपरान्त मैंने उत्तर प्रदेश के जनपद फर्रूखाबाद के दरिद्र व्यक्तियों की शैक्षिक समस्याओं के निरीक्षण हेतु 6 नगरों के 116 वार्ड एवं 7 ब्लाकों की 513 ग्रामसभाओं में 314 ग्रामसभाओं का भ्रमण कर जिले के केंद्रीय, राजकीय, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, कस्तूरबा, मूकबधिर, आश्रम पद्धति, निजी, एडिड, अनएडिड विद्यालयों तथा प्रौढ़शिक्षा-आंगनबाड़ी केंद्रों, डिग्री कालेजोंं, पालीटेक्निक, आई.टी.आई.पब्लिक स्कूलों मान्यता व गैर मान्यता प्राप्त विद्यालयों, मदरसों, ईश्वरीय विश्वविद्यालयों में जाकर अध्ययनरत विद्यार्थियों तथा बस्तियों के शिक्षित-अशिक्षित बच्चों, किशोरों, युवा, प्रौढ़ वृद्धों के घर जाकर उनकी शिक्षा और निरक्षरता की वास्तविक स्थिति का अवलोकन कर उनसे वार्ता की एवं शैक्षिक समस्याओं का मूल्यांकन किया। जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्र की लगभग 85-95ः महिलाएं, 80-90ः पुरूष, शहरी क्षेत्र में लगभग 80-90ः महिलाएं, 70-80ः पुरूष अशिक्षित और निरक्षर मिले। दरिद्र बस्तियों में यह स्थिति और भी भयावह मिली जहाँ की अशिक्षा और निरक्षता 95-100ः बनी हुई है। अध्ययनरत छात्र-छात्रा, किशोर-किशोरी, प्रशिक्षु एवं शिक्षा डिग्री-डिप्लोमा धारियों की शैक्षिक स्थिति में अज्ञानता एवं निरक्षरता की झलक दिखाई दी। निम्न से उच्च शिक्षित बच्चों, किशोरों, युवाओं को सूर्योदय एवं सूर्यास्त की दिशाओं का ज्ञान तक नहीं। अधिकांश नहीं जानते हैं कि वे किस जनपद-प्रदेश के निवासी हैं। लिखना-पढ़ना उनके वश की बात नहीं। निरक्षरता और अज्ञानता उनके पतन की नियत बन चुकी है।
जनपद के राजकीय एवं परिषदीय प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, उच्चतर, माध्यमिक एवं एडिड विद्यालयों में बड़ी संख्या में शिक्षक, सेवक, रसोइया, स्वीपर, अनुदेशक, कोआर्डिनेटर कार्यरत हैं। शैक्षिक व्यवस्था हेतु स्कूल प्रबंध समितियां एवं पी.टी.ए.बनी हैं। समितियों का सदस्यता एवं गठन में प्रतिपाल्य का छात्र होना आवश्यक है। जिनकी निगरानी एवं देखरेख का जबाबदेह उत्तरदायित्व है। इनके प्रस्ताव-अनुमोदन बिना कोई भी व्यवस्था एवं भुगतान पूर्णतया प्रतिबंधित है। छात्रों को दूध, फल, भोजन, वस्त्र, पुस्तकें, बस्ते, तौलिया, साबुन जरूरी सभी वस्तुओं सहित मानकीय शिक्षा-पाठ्यक्रम एवं शिक्षण उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान है। जिसका लेखा प्रत्येक शिक्षक की डायरी पर प्रति दिन दर्ज होना जरूरी है जिसके आधार पर ही शिक्षकों का वेतन भुगतान होता है और औचक निरीक्षण में किसी प्रकार की कमी पाए जाने पर समिति के अध्यक्ष के विरूद्ध दंडनीय कार्यवाही किए जाने का प्रावधान है।
जनपद के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के लगभग सभी मजरों-वार्डां में बड़े-बड़े स्कूल भवन बने हैं। इन भवनों में पढ़ाई के अतिरिक्त सब कुछ देखने को मिल रहा है। यथा दावत के भंडारे, पौणालिक स्थलों एवं पार्कों की भांति बच्चों की उछल-कूद, शिक्षकों के झुंड-रसोइयों की गपशप, फेरी व्यापारियों से खरीदारी, मोबाइल पर गेम्स एवं लम्बी बातचीत आदि के नजारे दिखते हैं। कार्यरत अधिकांश शिक्षक ड््यूटी साइन करने के लिए यदा-कदा आते हैं और बच्चों को पढ़ाए बिना चले जाते हैं। अनेक शिक्षक घर बैठे बिना शिक्षण कार्य वेतन लेकर राजनीति-व्यापार में सक्रिय हैं। अनेक शिक्षक अपनी जगह बेरोजगारों को अपने वेतन से पैसा देकर पढ़वा रहे हैं। मिड-डे-मील के रंगीन-चावल छात्रों को एवं मानकीय भोजन-दूध-फल शिक्षक, रसोइया, कार्यकत्री, प्रेरक, आशा द्वारा चट कर लिया जाता है। बाद में छात्रों की फर्जी उपस्थित मनमाने ढंग से दर्ज कर लिया जाता है। मिड-डे-मील का बचा राशन बंदरबांट कर घर ले जाया जाता है। जिससे प्रमाणित होता है कि मिड-डे-मील व्यवस्था समाप्त होने पर प्रधान-शिक्षक एवं उनके परिजन भूखे रह जाएंगे।
रसोइया पदों पर कार्यरत अधिकांश के बच्चे स्कूल के छात्र नहीं हैं। इनमें लगभग सभी अपने परिजनों सहित समाजवादी-विधवा-वृद्ध पेंशन धारी होने के बावजूद रहीस-प्रधानों एवं शिक्षकों की कृपा से पदासीन हैं। अनेक रसोइया ऐसी भी हैं जो स्कूल में खाना न बनाकर शिक्षकों, प्रधानों, कोटेदारों, अध्यक्षों के घर पर काम करती हैं। रसोइयों की पदासीनता में दलितों का पूर्णतया अभाव है और जो दलित रसोइया बनी हैं उनसे स्कूलों में खाना न बनवाकर स्वीपर का काम लिया जा रहा है। स्कूलों में बना भोजन की बहुत बड़ी मात्रा रसोइया अपने घर ले जाती हैं और परिजनों सहित पशुओं को खिलाती हैं। अधिकांश रसोइयों-आंगनबाडियों के पति, बेटे-बहुएं आदि सहित प्रधान-कोटेदारों-शिक्षकों के नौकर प्रबंध समितियों के अध्यक्ष बने हुए हैं जो बिना बैठक-प्रस्तावों के फर्जी अनुमोदनों से गंभीर वित्तीय अनियमितताएं करने में लगे हुए हैं। प्रबंध समितियों के रैकेट्स से शिक्षकों के फर्जीबाड़ों गतिशील हैं। सरकारी स्कूलों में सबसे आश्चर्य जनक बात यह है कि इनमें कार्यरत लगभग सभी रसोइया एवं उनके परिजन उनके सभी प्रतिपाल्य निरक्षर हैं। बड़ी संख्या में निरक्षरता फर्जी साक्षरता का प्रमाण है। इसके बावजूद प्रेरकों, शिक्षामित्रों, शिक्षकों, आंगनबाड़ियो की पदासीनता एवं वेतन-भत्ते जारी हैं जबकि जिलें के अधिकांश व्यक्ति निरक्षरता के शिकार हैं।
आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन परिषदीय विद्यालयों में हो रहा है। इन केंदों पर कार्यरत अधिकांश कार्यकत्रियां एवं पर्वेक्षक कोटेदारों, अधिकारियों, कर्मचारियों व रहीस परिवारों से हैं जिनका निवास संबंधित गांवों में न होकर अन्य गांव-नगर में हैं और वे ड्यूटी से पर नहीं जातीं हैं। उनकी जगह सहायिका या अन्य लोग उपस्थित खानापूर्ति करते हैं। फर्जी छात्रों का पंजीकरण, बच्चों-महिलाओं को आहार-पुष्टाहार वितरण पूर्णतया फर्जी हो रहा है। पंजीरी ब्लैक होकर भैंस खा रही हैं। आंगनबाड़ी के पंजीकृत बच्चे पब्लिक स्कूलों के छात्र होने के साथ ही परिषदीय स्कूलों में भी नामांकित हैं।
सर्वशिक्षा अभियान के अन्तर्गत पौढ़ शिक्षा के सभी केंद परिषदीय विद्यालयों में संचालित हो रहे हैं। इन सभी केंद्रों पर महिला-पुरूष दो प्रेरक कार्यरत हैं। जिनमें अधिकांश रहीस परिवारों के व्यक्ति हैं जो निरक्षरों को नहीं पढ़ाते हैं और न ही निरक्षरों को साक्षर बना रहे हैं। साक्षरता परीक्षा फर्जी कराते हैं।
मोहम्मदाबाद में संचालित आश्रम पद्धति विद्यालय अनुसूचित एवं जनजाति के दरिद्र बच्चों के लिए है तथा कुछ सीटों पर दरिद्रों के बच्चों को भी प्रवेश दिए जाने का प्रावधान है। इस विद्यालय में अध्ययनरत छात्रों को आवासीय सुविधा सहित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है। जिसका लाभ पात्र दरिद्रो के स्थान पर फर्जी दरिद्रों-अपात्रों का दिया जा रहा है। वास्तविक पात्र दरिद्र वंचित-निरक्षर हैं। इसी प्रकार जिले के सभी ब्लाकों में कस्तूरबा विद्यालय निरक्षर किशोरियों के लिए संचालित हो रहे हैं। इन विद्यालयों में आवासीय शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक विद्यालय में 100 छात्राओं को पंजीकृत कर शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रावधान है। छात्रों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा, मानकीय शिक्षा तथा पंजीकरण की संदिग्धता इस आधार पर अति प्रबल है क्योंकि लगभग सभी शिक्षक अपने निवास से ही रोज आते जाते हैं।
फतेहगढ़ में संचालित मूक-बधिर केंद्र पर कार्यरत अधिकांश शिक्षक-कर्मचारी स्थानीय होने के कारण शिक्षण कार्य में रूचि न लेकर अन्य व्यवसायों एवं राजनीति में सक्रिय बने हैं तथा अपंग छात्रों की शिक्षा व व्यवस्था रामभरोसे है।
जिले के गैर पंजीकृत ईश्वरीय विश्वविद्यालयों का संचालन अवैध हैं। नरक, भूत-प्रेतों का भय एवं अपराध जगत में सक्रिय व्यक्ति को ईश्वर बताकर उनसे युवतियों का शोषण-संसर्ग उपरांत विधवा जीवन व्यतीत करने हेतु बाद्ध करना, आत्मा-जीवन उद्धार का लालच देकर किशोर-किशोरियों एवं प्रौढ़ों को फंसाकर लाया जाता है। जहाँ किशोर-किशोरियों को चिड़ियाघर की भांति रखा है। पूजा-पाठ के कर्मकांडों से जन-समर्थन प्राप्त किया जाता है एवं फंसे लोगों को रात्रि के अंधेरे में इधर-उधर करके न जाने कहाँ ले जाया जाता है। इनकी गतिविधियां व्यक्ति-समाज के लिए अत्यंत घातक हैं। धार्मिक स्थलों एवं अल्पसंख्यकों के नाम पर संचालित विद्यालयां में धर्म एवं शिक्षा का दुरूपयोग होकर छात्र-छात्राओं को अंधविश्वासों का अंधानुकरण करने हेतु बाद्ध किया जाता है। दान-अनुदान एवं छात्रवृत्तियों को हड़पकर मठाधीश व्यक्तिगत लाभ कमाने में जुटे हैं। फर्जीबाड़े पर आधारित अधिकांश मदरसों की शिक्षा अति संदिग्ध एवं समाज विरोधी है।
जनपद में संचालित पब्लिक स्कूलों में अध्ययनरत छात्रों में अधिकांश ऐसे छात्र हैं जो परिषदीय स्कूलों में पंजीकृत हैं या रहे हैं और उनके माता-पिता सरकारी योजनाओं का लाभ यथा समाजवादी, विधवा, बिकलांग पेंशन सहित दरिद्र कल्याण हेतु बनी योजनाओं का लाभ लेकर सरकारी विद्यालयों में नौकरी-अध्यक्षता कर रहे हैं। निजी स्कूलों के छात्रों से सम्बन्धित विचारणीय तथ्य यह है कि परिषदीय स्कूलों की शिक्षा पूर्ण करने के बावजूद जब छात्रों को निरक्षर होना पड़ता है तो उन्हें पुनः पब्लिक स्कूलों में पढ़ना पड़ रहा है और बड़ी उम्र में भी वह निम्न शिक्षा पूरी नहीं कर पा रहे हैं।
फर्रूखाबाद जनपद में संचालित छत्रपति शाहूजी महाराज वि.वि. कानपुर से सम्बद्ध तथा मान्यता प्राप्त एडिड एवं स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों की अधिकांश प्र्रबंध समितियों कें पदाधिकारी एवं सदस्य स्थानीय समुदायों के जन-साधारण, शिक्षाविद्, समाजसेवी, अभिभावक नहीं हैं और न ही निर्धारित प्रशासन योजना के मानकानुरूप है। शैक्षिक मानक प्रतिकूल प्रबंधतंत्रों के पदाधिकारी-अध्यक्ष-सचिव-सदस्य परिजन भाई-बहिन, पुत्र-पुत्री, पिता-माता, पति-पत्नी, सास-ससुर, बहू, भतीजे, साले-बहनोई, स्वजातीय, नौकर, मित्र, किराएदार, साझेदार, गैर-जनपदीय आपसी हितबद्व हैं। इन कालेजों के लोग अपने निजी लाभ के लिए व्यापार की भाँति सार्वजनिक शिक्षा को दूषित कर रहे हैं। सोसाइटी एक्ट-1856, उ.प्र.विश्वविद्यालय एक्ट-1973, शिक्षा अधिनियमों की उपेक्षा कर स्वःलाभ हेतु परिजनो, भाई-बहिन, पुत्र-पुत्री, पिता-माता, पति-पत्नी, बहू, भतीजे, साले-बहनोई, नौकर, स्वःजातीय, साझेदार आपसी हितबद्वों को प्राचार्य, प्राध्यापकों, कर्मचारियों के पदों पर आसीन कर तथा कालेजों में शिक्षण कार्य कराए बिना छात्र-छात्राओंं को मनचाही डिग्री का लालच देकर अवैध वसूली व धन उगाही एवं व्यक्तिगत लाभ कमाने में जुटे हैं। स्ववित्तपोषी कालेज ‘नकल-ठेकों’ एवं डिग्री बिक्री के आधार पर संचालित हो रहे हैं। इनकी शिक्षा व्यवस्था एवं प्राचार्य, शिक्षक, शिक्षण, कर्मचारी, लैब, लाइब्रेरी आदि अमानक हैं तथा छात्र-छात्राओं एवं बेरोजगारों से मनमाना धन वसूलने के बावजूद शिक्षण नहीं होता है। स्ववित्तपोषी कालेजों की मान्यता संबंधी पत्रावलियों में औपचारिकतावश जो प्राचार्य, शिक्षक अनुमोदित होते हैं वह कभी विद्यालय नहीं आते हैं। उनमे अधिकांश अन्य कहीं वेतनभोगी एवं अन्य दूर-दराज क्षेत्र-प्रदेशों में सरकारी नौकरी करने वाले या वेतन-पेंशन भोगी या सेवानिवृत्ति लोगों को वि.वि.द्वारा अनुमोदित किया गया है जो अपने प्रमाणपत्रों को मान्यता-अनुमोदन हेतु किराए पर देकर शिक्षक-प्राचार्य पद पर कार्यरत दिखाने हेतु रू.20,000 से 25000 वार्षिक देकर उनकी कालेज अध्यापन उपस्थित मुक्त रहती है तथा इनका वेतन भुगतान के बैंक खातों में गंभीर वित्तीय अनियमितताएं जारी हैं। जिसके कारण पात्र व्यक्ति रोजगार से वंचित हो रहे हैं। स्ववित्तपोषी कालेजों में अर्ह शिक्षक को मानकीय वेतन नहीं दिया जाता है। प्रबंधतंत्रों के लोग अर्ह शिक्षकों को वेतन-भत्ते देने की कागजी खानापूर्ति तो करते है परन्तु मानकयुक्त वेतन-भत्ते नहीं देते हैं। शिक्षक ‘ट्यूशनबाजी’ में संलिप्त हैं। शैक्षिक उ६ेश्य की पूर्ति की जगह परिजनो, सगे-संबंध्ांं आपसी हितबद्धों के स्वलाभ उ६ेश्यों से मानक विरूद्व निर्मित समितियाँं एवं उनकी प्रबंध समितियों की संबद्वताएं पूर्णतया अवैध है। अशासकीय मान्यता प्राप्त कालेजों के संचालन की जरूरी प्रशासन योजना आदेश जी.ओ.संख्या-643(1) दि.15.8.11 एवं अधिनियम 1921 तथा सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 का अध्नियम संख्या-21 शैक्षिक-संस्थानों द्वारा अभी तक उपेक्षित है।
जनपद का डायट केंद्र रजलामई में संचालित हो रहा है। केंद्र के प्राचार्य एवं शिक्षकों तथा प्रशिक्षणार्थी यदाकदा विद्यालय आते हैं। प्राचार्य के विद्यालय आने की सूचना मोबाइल पर सर्कुलेट होती है और स्टाफ-शिक्षक विद्यालय आते हैं।
शिक्षा बोर्ड, उच्चशिक्षा, टेक्नीकल एव चिकित्सीय, विधि कालेज तथा शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा-माफियाओं द्वारा प्रबंधन के नाम पर फर्जीबाड़ा किया जा रहा है और कागजी खानापूर्ति कर शिक्षा के उद्देश्यों को समाप्त कर स्वलाभ कमाया जा रहा है तथा मानक विहीन सोसाइटियाँ धन के प्रभाव में विद्यालय संचालन की मान्यता प्राप्त कर अवैध वसूली कर भावी पीढी का भविष्य बर्वाद कर रहीं है। विद्यालयों के प्रबंधतंत्रों एवं शिक्षण व्यवस्था के अवलोकन, सम्पर्क के आधार पर प्राप्त तथ्यों पर विचार करने से पता चलता है कि, फर्रूखाबाद जिले में संचालित एडिड एवं स्ववित्तपोषी शिक्षण संस्थानों के प्रबंधक कालेज सम्बद्धता-मान्यता पत्रावली में फर्जी, अवैध, अमानक भ्रामक तथ्यों-प्रपत्रों एवं शपथ-पत्रों को जोड-तोड कर और स्वयं मनमाने ढंग से प्रमाणित कर शामिल कर फर्जीबाडा कर रहे हैं तथा शिक्षाविभाग एवं विश्वविद्यालय के लोगो से सांठगांठ एवं धन-लालच के प्रभाव से मनचाही बैठकें जांच-साक्षात्कार-नियुक्ति-जांच के फर्जी प्रपत्र बनाकर विश्ववि़द्यालय-बोर्ड की पत्रावलियों में शामिल करा रहे हैं। जिसके माध्यम से शिक्षा के विकास की सरकारी योजनाओं की निधियों के घन को हडप कर कालेज भूमि, भवन, चरागाहों पर जबरदस्त कब्जा कर प्रबंधतंत्रों के लोगों व उनके परिवारीजनों द्वारा शिक्षा-छात्र-बेरोजगार-समाज का हित बुरी तरह से प्रभावित किया जा रहा है।
‘जनसामान्य’ के लिए बनी राष्ट्रीय विकास की योजनाओं एवं उनके क्रियान्वयन के अवलोकन-निरीक्षण के परिणाम स्वरूप कहा जा सकता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत सामान्य जन के लिए बनी राष्ट्रीय विकास की योजनाएं एवं साधन स्वार्थी, विध्ववंशक, नाशक, धनी, ठगों और संगठित अपराधियों की सुख-सुविधाओं तथा आय के साधन बन गए हैं। इस संबंध में निरीक्षण तथ्य यह बताते हैं कि दरिद्र, असहाय, निरीह, पीड़ित, दुःखी, वृद्ध, बीमारी ग्रसित लोगों की पुकार सुनने वाला कोई नहीं हैं और यदि कोई ऐसे लोगों की सहायता करने की चेष्टा भी करता है तो संगठित अपराधी उसे समूल नष्ट करने में कोई कसर बांकी नहीं रखते हैं।
मानक विहीन शिक्षा ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। शिक्षक, शिक्षण, प्रक्टीकल्स, पुस्तकालय, प्राचार्य और कर्मचारियों का अभाव एवं अमानकता से शिक्षा व उसके उ६ेश्य नष्ट हो रहे हैं। नकल,ं ट्यूशन, बिना पाठन डिग्री-उपाधि वितरण व्यवसायों से शिक्षा प्रदूषित हो रही है। शिक्षण संस्थाओं में दिखावा ज्यादा होता है तथा विद्यार्थियों एवं अभिभावकों का आर्थिक शोषण होता है। शिक्षण संस्थाओं का संचालन भारी वित्तीय लाभ एवं अनियमितताओं का व्यवसाय बन गया है। अतः ऐसी प्रवृत्ति पर नियंत्रण अति आवश्यक है। शिक्षा नवीन प्रवृत्तियों सहित व्यवसाय की ओर उन्मुख हो एवं शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए तथा राज्य और शिक्षा के निजीकरण पर नियंत्रण आवश्यक हो। ट्रस्ट, सोसाइटी, वाणिज्य, सरकारी-आदेश एव शैक्षिक व्यवस्था के वैधानिक प्रवधानों का अनुपालन होना चाहिए। प्रबंधतंत्र में अभिभावकों, शिक्षाविद्ों, समाजसेवियों, स्थानीय साधारण-जनता को ही सदस्य-अध्यक्ष-प्रबंधक बनाया जाना चाहिए। प्रबंधतंत्र में परिवारवादी, जातिवादी, धर्मवादी, राजनीतिज्ञ, वेतनभोगियों को पदाधिकारी नहीं बनाया जाना चाहिए। प्रबंधतंत्र का शैक्षिक हस्तक्षेत्र एवं कालेज संम्पति का दुरूपयोग पर अंकुश लगना चाहिए। शैक्षिक संस्थानों में मात्र मानकपूर्ण शिक्षक, शिक्षण, वेतन भुतान, नकल विहीन परीक्षा होनी चाहिए। प्रबंधतंत्र को चन्दे, दान, अनुदान, आय, शुल्क धन सरकारी कोषागार में जमा जमा होना चाहिए। शिक्षक-कर्मचारियों को वेतन-भत्ते का भुगतान कोषागार चैक से वितरित होना चाहिए। कालेज आडिट नियमित एवं जबाबदेह होना चाहिए। छात्रविहीन स्कूल बंद होने चाहिए। राजनीति करने वाले एवं शिक्षण कार्य न करने वाले शिक्षकों का बर्खास्त किया जाना चाहिए। ट्यूशन, नकल एवं अवैध वसूली तत्काल बंद होनी चाहिए। मान्यता, पाठ्क्रम, शिक्षक, कर्मचारी, प्रबंधतंत्र, बजट विवरण सार्वजनिक होना चाहिए। जिला प्रशासन-शिक्षा प्रशासन की जबाबदेही होनी चाहिए। जनसाधारण के हितों के संरक्षण एवं सुरक्षा हेतु शिक्षा के मानक एवं प्रावधानों का अनुपालन आवश्यक है।
संदर्भ सूची
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जिला एवं सांख्यकीय पत्रिका, अर्थ एवं लेखा प्रभाग, फर्रूखाबाद, वर्ष 2014-15, तालिका-1
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डॉ. देवाशी मुकर्जी, पर्यटन उद्योग के विकास की संभावनाएं, आईआरजेएमएसएच, इसरा प्रकाशन, दिल्ली, 2015 पेज-118
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डॉ.एम.के.मित्तल, साधना प्रकाशन, रस्तोगी स्ट्रीट, सुभाष बाजार, मेरठ-250002, पेज-183
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आर्थिक समीक्षा 2014-15, यंग ग्लोबल पब्लिकेशन, टोलस्टोय मार्ग, नई-दिल्ली-110092, पेज-34,
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रमेश सिंह, भारतीय अर्थव्यवस्था, एमसीग्रेहिल एजूकेशन पब्लिकेशन, ग्रीनपार्क, नईदिल्ली-110016, पेज-18