विरोध दबाने के लिए देशद्रोह कानून का इस्तेमाल करती है मोदी सरकार: एमनेस्टी इंटरनेशनल
नई दिल्ली: एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत के देशद्रोह कानून की कड़ी आलोचना की है। ब्रिटेन स्थित एनजीओ एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस कानून को भारत सरकार द्वारा विरोध या सरकार की आचोलना कुचलने की कोशिश करार दिया है। एनजीओ की सालाना होने वाली मीटिंग में एक रिपोर्ट को पेश किया गया जिसमें देशद्रोह कानून को लेकर भारत की केंद्र सरकार की आलोचना की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को काफी पेरशानियां और उससे भी बुरी स्थिति में कई तरह के हमलों का भी सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी जान हमेशा ही खतरें में बनी रहती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह खतरा गैर-प्रशासनिक ताकतों और प्रशासनिक ताकतों, दोनों से ही है।
साथ ही रिपोर्ट ने भारत में कई एनजीओ और सिविल सोसाइटी ऑर्गेनाईजेशन्स पर की गई कार्रवाई की भी आलोचना की। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि सिविल सोसायटीस को दबाने के लिए सरकार एफसीआरए ऐक्ट में दखल दे रही है कि ताकी वह इनकी फंडिंग को रोक सके। यह कोशिश सीधे तौर इन ग्रुप्स को कमजोर करने के लिए की जा रही है। वहीं संस्था ने गौ-रक्षा के नाम पर की जा रही गुंडागर्दी और हमलों को लेकर भी चिंता जताई है। रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात, मध्यप्रदेश, हरयाणा और कर्नाटक जैसे राज्यों में जाति के आधार पर और गौ-रक्षा के नाम पर की जाने वाली हिंसा को लेकर चिंता जताई गई है। गौरतलब है बीते दो सालों में ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनसे भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर काफी नुकसान पहुंचा है।
साल 2016 में गुजरात के गिर-सोमनाथ जिले के उना कस्बे में 4 दलितों को एक एसयूवी कार से बांधकर कई लोगों ने पीटा था। इस वारदात के बाद गुस्साए दलितों ने राज्य में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए थे। ऐसी ही एक वारदात उत्तर प्रदेश में भी हुई, जिसमें बिसाहड़ गांव के अखलाक को गौमास खाने के शक पर उसकी घर में घुस कर हत्या कर दी गई थी। इसके अलावा नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना कई एनजीओ के लाइसेंस रद्द करने और एफसीआरए कानून (इसके तहत विदेशी फंडिंग पर नजर रखी जाती है) में बदलाव करने को लेकर भी होती रही है।