भारत की पहली अरबी कैलीग्राफ़ी प्रतियोगिता का आयोजन

नई दिल्ली। भारत के पहले अरबी कैलीग्राफ़ी (सुलेख कला) प्रतियोगिता में प्रतिभागियों ने अपनी क़लम से पूरे ब्रह्माण्ड को अपनी पंक्तियों में समेट लिया। क़ुरआन की आयतों में हर विषय पर अल्लाह के निर्देशों और हिदायत को जब ख़त्तातों (सुलेखियों) ने अपने फ़न से काग़ज़ पर उकेरा तो लगा गागर में सागर समा गया है। दरगाह आसार शरीफ़ और मलेशिया के रेत्सु फ़ाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस ख़त्तात्ती महामेले में भारत के हर कोने से सुलेखी भाग लेने के लिए पहुँचे। मुग़लों और सल्तनत के ज़माने में भारत अरबी ख़त्ताती में अव्वल रहा है। फ़ारस और अरब के इस फ़न को फिर से निखारने की ज़िम्मेदारी दिल्ली की जामा मस्जिद में स्थित दरगाह आसार शरीफ़ के प्रमुख सैयद फ़राज़ आमिरी और सैयद एहराज़ आमिरी ने ली है।
कार्यक्रम के आयोजक सैयद फ़राज़ आमिरी ने यहाँ पत्रकारों को बताया कि आज की प्रतियोगिता भारत के इतिहास में पहली अरबी कैलीग्राफ़ी प्रतियोगिता है। चूँकि भारत में दस लाख से अधिक हाफ़िज़ (क़ुरान कंठस्थ मौलवी) और करोड़ों लोग अरबी भाषा और संस्कृति से परिचित हैं। आज़ादी तक भारत के हर शहर में ख़त्तात्ती की प्रतियोगिताएँ होना आम बात थी लेकिन समय के साथ लोग इस हुनर को भूलने लगे। फ़राज़ ने कहाकि यूनेस्को की विश्व धरोहर क़ुतुब मीनार पर हर तरफ़ जो आयतें आप देखते हैं दरअसल वह पच्चीकारी में अरबी कैलीग्राफ़ी का ही फ़न है। भारत में इस कला को पुन विकसित करने के लिए दरगाह आसार शरीफ़ ने फ़ाउंडेशन मलेशिया के साथ मिलकर मुहिम शुरू की है जिसके तहत दिल्ली के माता सुन्दरी रोड स्थित ऐवाने ग़ालिब में देश के अरबी ख़त्तात्ती के प्रतियोगियों को बुलाया गया है। इसमें दो तरह के पुरस्कार रखे गए हैं। पुरुष और महिला वर्ग में तीन तीन सर्वश्रेष्ठ प्रतिभागियों को पुरस्कार स्वरूप अरबी भाषा की पढ़ाई के लिए मलेशिया भेजा जाएगा। आज की प्रतियोगिता में महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। हैदराबाद से बाक़ायदा महिलाओं का पूरा प्रतिनिधिमंडल इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए पहुँचा।

भारत का गौरव लौटाएंगे- एहराज़ आमिरी

कार्यक्रम के सह संयोजक और दरगाह आसार शरीफ़ के सज्जादानशीन सैयद एहराज़ आमिरी ने कहाकि यह वाक़ई भारत के लिए गौरव की बात है कि वह पहली बार इस प्रतियोगिता के आयोजक बन रहे हैं। वह कहते हैं कि दुनिया में पत्थर की सबसे ऊँची इमारत दिल्ली की क़ुतुब मीनार को आप देखिए। इस पर वर्टिकली आप जो अरबी लिखी हुई देख रहे हैं, वह क़ुरआन की आयतों को ख़त्तात्ती शैली में लिखा गया है। यह कितने गौरव की बात है कि भारत ने अरबी की ख़त्तात्ती में पच्चीकारी का दुनिया को बेहतरीन नमूना दिया। इसी प्रकार आप ताज महल में मुमताज़ महल की क़ब्र के पास गुम्बद के ऊपर चारों तरफ़ अरबी में जौ शैली देख रहे हैं वह भी क़ुरआन की ख़त्तात्ती शैली है। हमारी कोशिश है कि भारत ने क़ुरआन की ख़त्तात्ती शैली को जो योगदान दिया है, उस कला को हम और आगे ले जा पाएँ और भारत के गौरव को हम लौटाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
मलेशिया की सक्रिय भागीदारी कार्यक्रम के सहप्रयोजक मलेशिया के रेत्सु फ़ाउंडेशन के प्रमुख अब्दुल लतीफ़ ने कहाकि भारत प्रतिभाओं का देश है और हमें लगता है कि भारत के युवाओं के बीच ख़त्तात्ती को लोकप्रिय बनाने से इस हुनर को नई दिशा मिलेगी। उन्होंने भारत में कैलीग्राफ़ी प्रधान कलात्मक वस्तुओं का ज़िक्र करते हुए कहाकि भारत में कैलीग्राफ़ी की कला का लम्बा इतिहास है और यदि इस कला को आम कर दिया जाए तो युवाओं को काफ़ी प्रोत्साहन मिलेगा। अब्दुल लतीफ़ के साथ ७० मलेशिया के नागरिक भी इस कार्यक्रम को देखने-सुनने के लिए आए हैं। उन्होंने कहाकि ख़त्तात्ती संग्रहालय की नहीं, समाज की निशानी है।

भारत में ख़त्तात्ती की बहुत संभावना- अब्दुल रशीद अंसारी मगध यूनिवर्सिटी से १९८९ में कैलीग्राफ़ी में पहले एमए और फिर पीएचडी की डिग्री लेने वाले अब्दुल रशीद अंसारी आज की प्रतियोगिता को देखने के लिए पहुँचे। अख़बार के माध्यम से उन्हें आज के कार्यक्रम की जानकारी मिली थी। अंसारी ने कहाकि पीएडी में कैलीग्राफ़ी की कला और इसके विकास पर उन्होंने शोध किया है। वह बताते हैं कि कम्प्यूटर के आने के बाद किताबत की पूछ समाप्त हो गई है लेकिन कैलीग्राफ़ी को बहुत बल मिला है। अंसारी को कैलीग्राफ़ी में कम्प्यूटर और साइबर के असर और योगदान की भी पूरी जानकारी है। वह बताते हैं कि इनपेज सॉफ्टवेयर के आने से कातिब की क़द्र नहीं रही लेकिन सॉफ्टवेयर ने ख़त्त्तात्ती को बहुत सम्मान दिया है। साइबर की दुनिया से जु़ड़ने के बाद लोगों ने ख़त्तात्ती के वैश्विक नमूनों को देखा। मिस्र और पाकिस्तान में इस कला पर बहुत कार्य हुआ है। अंसारी ने बताया कि इब्ने कलीम ने पाकिस्तान में ख़ते राअना की खोज कर खत्तात्ती में महान् कार्य का योगदान दिया है। भारत में भी इस प्रकार के शोध की आवश्यकता है क्योंकि भारत आईटी का सिरमौर है। वह ख़त्तात्ती में फ़ॉन्ट डिजा़इन और सॉफ्टवेयर पर बहुत योगदान दे सकता है। वह भारत के महान् ख़त्तात ख़लील टौंकी का ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि उन्होंने भारत की ख़त्ताती के विकास में बहुत योगदान दिया, हम इस मौक़े पर उनके योगदान को नहीं भूलना चाहिए।

मीलाद और क़व्वाली के कार्यक्रम से समां बँधा

प्रतियोगिता बाद शाम को ऐवाने ग़ालिब के ही ऑडिटोरियम में ही मीलाद (पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद के यश गीत) का भी कार्यक्रम रखा गया जिसमें देश के प्रख्यात क़व्वालों ने नातिया कलाम पेश किया। चेन्नई से आए उलेमा ने इस्लाम में सूफ़ीवाद और शांति के संदेश को प्रमुखता से रखा।