दो दशक में 60% बढ़ीं पुरुष आत्महत्यायें
लखनऊ: "पति-परिवार" कल्याण समिति द्वारा "क़ानूनी आतंकवाद" के शिकार स्व. पुष्कर सिंह की 10वीं पुण्यतिथि पर "64000 विवाहित पुरुषों की आत्महत्या का जिम्मेदार कौन , हम रहेंगे कब तक मौन" विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन शनिवार को प्रेस क्लब मे किया गया।
ओम पुरी जी की मौत एक ताजातरीन उदाहरण है कि "मर्द को भी दर्द होता है", एक पुरुष भी अपने परिवार के लिये तड़पता है, टूटता है, बिखरता है और थक हार कर अपनी जान तक गवां देता है.
NCRB की ताजा रिपोर्ट 2015 से चौकाने वाले सच का खुलासा हुआ है. विगत वर्ष 2014 की तुलना में पुरुष आत्महत्या में 2% का इजाफा हुआ है और अगर पतियों की बात की जाये तो ये आंकड़ा 8% तक पहुँच जाता है. 2015 में कुल 64534 पतियों द्वारा की गयी आत्महत्या इतिहास में दर्ज अब तक की सबसे बड़ी संख्या है.
हर 8 मिनट में एक यानी कि हर दिन 180 पति आत्महत्या कर रहे हैं जबकि इनकी तुलना में पत्नियों की संख्या मात्र 78 है. फिर भी महिला सुरक्षा और कल्याण के लिये इस वर्ष बजट में 178 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है और पुरुषों के लिये शून्य, जबकि टैक्स का 90% पुरुषों द्वारा जमा होता है. सरकार, समाज और यहाँ तक कि पूरी न्याय व्यवस्था भी सिर्फ और सिर्फ महिला सुरक्षा, सम्मान और उत्थान की बात करते हैं. यहाँ तक कि चुनाव में भी जाति और धर्म के नाम पर वोट माँगने पर तो कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 14 के आधार पर प्रतिबन्ध लगा दिया परंतु इसी अनुच्छेद में धर्म, जाति के साथ साथ लिंग के आधार पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया और सारे राजनैतिक दल खुलेआम धड़ल्ले से महिलाओं के नाम पर आधी आबादी की राजनीति कर रहे हैं. चुनाव आयोग तक अपनी आँखें मूँद लेता हैं.
ऐसी मान्यता बना दी गयी है कि "पुरुष-कल्याण" की बात करने का मतलब "स्त्री-विरोधी" होता है. ये लोग अपनी जगह पर गलत भी नहीं हैं क्योंकि इन्होंने हमेशा महिलाओं के कल्याण के नाम पर समाज में पुरुष विरोधी मानसिकता का पनपाकर पुरुषों का शोषण ही किया है और पद, पैसा और पब्लिसिटी आदि.. पाने के माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया है.