डरावने थे ये दिन, न जाने कब पुलिस उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लेती
लखनऊ: रिहाई मंच ने आतंकवाद के झूठे आरोप में 8 साल सात महीने बाद रिहा हुए पश्चिम बंगाल के तीन मुस्लिम नौजवानों के खिलाफ सरकार द्वारा अपील किए जाने के नतीजे में हाईकोर्ट के निर्देशानुसार चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की कोर्ट में जमानतें दाखिल किए जाने को सरकार के लिए शर्मसार करने वाला बताया है।
रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब ने कहा कि अखिलेश सरकार ने अपने 2012 के चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि सरकार बनने के बाद आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुस्लिम युवकों को रिहा करेगी। लेकिन सरकार न सिर्फ वादे से मुकर गई बल्कि अदालत से 9 साल बाद बरी हुए बंगाल के मुस्लिम युवकों शेख मुख्तार, अजीजुर्रहमान, मोहम्मद अली अकबर हुसैन, नौशाद, जलालुद्दीन, नूर इस्लाम के खिलाफ अपील में चली गई। जबकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने खुद उनसे व्यक्तिगत तौर पर कहा था कि सरकार बरी हुए लोगों के खिलाफ ‘लीव-टू-अपील’ वापस ले लेगी लेकिन सरकार ने यू-टर्न लेते हुए अपील स्वीकार करवाई और बरी हुए लोगों के खिलाफ वारंट जारी करवा लिया। जिसके चलते इन तीनों को पश्चिम बंगाल से यहां आकर जमानत लेनी पड़ी।
रिहाई मंच कार्यालय पर लोगों से बातचीत करते हुए शेख मुख्तार, अजीजुर्रहमान और मोहम्मद अली अकबर हुसैन ने कहा कि दिसंबर 2016 में वारंट जारी होने या उनके खिलाफ अपील की उन्हें कोई सूचना अब तक नहीं मिली है। उनके साथ बरी हुए नौशाद को जब बिजनौर से पुलिस ने उठा लिया तो एडवोकेट शुऐब ने जब उन्हें बताया तो वे लखनऊ आए। उन्होंने कहा कि कानूनी प्रक्रिया में यह पूरा महीना उनका जिस तरह से निकला वह उनके लिए काफी भयावह था। जब उन्हें जून 2007 में उठाया गया था और उन्होंने जैसे पुलिस की ज्यादतियां झेली उससे कहीं डरावने यह दिन थे कि न जाने कब उन्हें पुलिस नौशाद की तरह फिर से गिरफ्तार करके जेल में डाल दे। ऐसी स्थिति में जिस तरह से रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने उनके रहने की व्यवस्था की और उनका सहयोग किया उसे वे शब्दों में बयान नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि जिस तरह से अखिलेश यादव की सरकार उनके खिलाफ कोर्ट चली गई अगर वह नहीं गई होती तो हम अपने जीवन को पटरी पर लाने की जो कोशिश कर रहे थे उसको करते हुए अपने परिवार के साथ गुजर-बसर कर पाते। पर अखिलेश यादव वादा करके भी जिस तरह से उनके खिलाफ हो गए उससे एक बार फिर से वे लंबी न्यायिक प्रक्रिया में उलझ गए हैं।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि होना तो यह चाहिए था कि सरकार अपना चुनावी वादा निभाते हुए बरी हुए इन गरीबों को पुर्नवास और मुआवजा देती लेकिन सरकार ने अपनी साम्प्रदायिक रणनीति के तहत इन तीनों को फिर जेल भेजने की साजिश रची थी। राजीव यादव ने बताया कि इनमें से अजीजुर्रहमान ईट भट्ठे पर मजदूरी करते हैं, शेख मुख्तार दर्जी का काम करते हैं, तो वहीं मोहम्मद अली अकबर हुसैन बेरोजगार हैं।