राज्यों के कीर्तिमान को भी अपना बता रहे हैं मोदी: मायावती
लखनऊ: बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर राज्यों की कीर्तिमान को भी अपनी उपलब्धि बताकर सस्ती वाहवाही लूटने का प्रयास करने की प्रवृत्ति की तीखी आलोचना करते हुये कहा कि ऐसा करके वे देश की ज्वलन्त समस्याओं जैसे जानलेवा महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी, अशिक्षा के साथ-साथ चुनावी वादाख़िलाफ़ी की अपनी सरकार की कमियों व घोर विफलताओं पर से लोगों का ध्यान बाँटने की कोशिश कर रही है।
संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के सम्बंध में धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा में चर्चा के दौरान आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये मायावती ने कहा कि ’राजधर्म’ की घोर अवहेलना करते रहने वाले व्यक्ति से धर्म व अधर्म का उपदेश शोभा नहीं देता है।
साथ ही, भ्रष्टाचार-विरोधी संस्था ’लोकपाल’ का अब तक भी गठन नहीं करने तथा विजय माल्या व ललित मोदी जैसे बड़े आर्थिक अपराधी व भगोड़े व्यक्तियों को अब तक भी देश के कानून के कठघरे में खड़ा नहीं कर पाने वाले प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी केवल लोगों को गुमराह करने के लिये ही भ्रष्टाचार व कालेधन की बात करते रहते हैं और इसी की आड़ में ही ’’नोटबन्दी’’ का अत्यन्त ही जनपीड़ादायी साबित होने वाला फैसला भी काफी अपरिपक्व तरीके से बिना पूरी तैयारी के ही ले लिया, परन्तु नोटबन्दी के फैसले के पहले अपनी पार्टी की लाखो करोडों़ रूपये का बन्दोबस्त कर लिया, जिसके बारे में कोई भी हिसाब-किताब देश की जनता को देने से बीजेपी व मोदी सरकार हमेशा कतराती रहती है।
इतना ही नहीं बल्कि मोदी सरकार द्वारा 500 व 1,000 रूपये की नोटबन्दी के फैसले जहाँ देश की 90 प्रतिशत ग़रीब, मज़दूर, छोटे व्यापारी व अन्य ईमानदार मेहनतकश आमजनता के लिये दुःखदायी फैसला साबित हुआ है, वहीं यह खासकर महिला-विरोधी भी रहा है।
ताज़ा अध्ययन के आँकड़े बताते हैं कि नोटबन्दी के दुष्प्रभाव के कारण देशभर में ’घरेलू हिंसा’ काफी बढ़ी है। इस प्रकार घर की मेहनतकश महिलाओं पर इस नोटबन्दी के कारण जुल्म-ज्यादती व हिंया की वारदातें काफी बढ़ी है, परन्तु मोदी सरकार इन सभी चिन्ताओं से मुक्त होकर केवल अपना ही राग अलापने में लगी रहती है, जबकि इस नोटबन्दी ने सैकड़ों निर्दोष लोगों की जाने लीं व देश की अर्थव्यवस्था को बूरी तरह से प्रभावित करने के साथ-साथ बेरोजगारी तथा मजबूरी के पलायन को बढ़ाया है। इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद भी मोदी सरकार देश की जनता को इस नोटबन्दी के फैसले के बारे में कुछ भी ठोस व विश्वसनीय बात नहीं बता पा रही है, जिससे भी यह साबित होता है कि ’’नोटबन्दी’’ का उत्पीड़नदायी फैसला केवल अपरिपक्व ही नहीं बल्कि राजनीतिक व चुनावी स्वार्थ में लिया गया।
संसद के भीतर भी देश के प्रधानमंत्री की तरह नहीं बल्कि चुनावी जनसभाओं की तरह ही पूर्ण रूप से राजनीतिक व आरोप-प्रत्यारोप वाला ही भाषण देने की प्रवृत्ति की आलोचना करते हुये सुश्री मायावती जी ने कहा कि यही कारण है कि पी.एम. श्री नरेन्द्र मोदी को आज सदन में कहना पड़ा कि ’सदन में मैं ज़िम्मेदारी से बोलता हूँ’। तो क्या इसका मतलब यह है कि चुनावी रैलियों व जनसभाओं में वे गै़र-जिम्मेदारी से बोलते रहते हैं?
मायावती ने कहा कि वास्तव में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी सरकार की गलत नीतियों व गलत कार्यकलापों से ऐसा साफ लगता है कि यह सरकार पिछले लगभग तीन वर्षों के दौरान देश की सबसे बड़ी समस्या अर्थात जबर्दस्त महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी व अशिक्षा आदि से लड़ने के बजाय विरोधी पार्टियों व लोकतांत्रिक संस्थाओं एवं परम्पराओं से ही लड़ते रहने को प्राथमिकता देती है जबकि देश की जनता ने तो ख़ासकर कांग्रेस पार्टी को उसके किये की कड़ी सजा देकर केन्द्र व ज्यादातर राज्यों की सत्ता से बाहर कर रखा है।
परन्तु प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी सरकार के बारे में अब तक का अनुभव तो यही बताता है कि बीजेपी का अपना चाल, चरित्र व चेहरा भी कांग्रेस पार्टी के जैसा ही दाग व धब्बे वाला बनता जा रहा है। उन्होंने कहा कि वैसे भी बीजेपी का ग़रीब, मज़दूर व किसान-विरोधी एवं बड़े-बड़े पूंजीपतियों व धन्नासेठों का अंध-समर्थक होने के साथ-साथ दलितों, पिछड़ों व अल्पसंख्यकों की विरोधी होने का चाल, चरित्र व चेहरा पहले से ही जग-ज़ाहिर है।