आसिफ मिर्जा

सुलतानपुर। विधानसभा इसौली के इतिहास में आजादी के बाद से अब तक भाजपा का कोई नेता प्रतिनिधित्व नहीं कर सका है। पहला चुनाव आजादी के बाद वर्ष 1952 में हुआ था। उस समय मतदान करने की जागरूकता मतदाताओं में बहुत ही कम थी। पूरे देश में कांग्रेस का वर्चस्व था। जब पहला चुनाव इसौली के मतदाताओं ने ऑखों देखा तो मानों उनकी खोई हुई तकदीर वापस मिल गई। जहां अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में लोग जीवन यापन कर रहे थे वहीं क्षेत्र के पहले चुनाव में मतदान करने से उन्हें अपना एक जनप्रतिनधित्व मिल गया था।

इसौली विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 1952 में पहला चुनाव हुआ तो मतदाताओं ने इटकौली के नाजिम अली को विधायक चुना। इसौली के नागरिकों ने पहले ही चुनाव में जांति-पांति धर्म को दर किनार कर आपसी एकता को जो सबूत दिया था। वह वास्तव में काबिले तारीफ था। पॉच वर्ष तक नाजिम अली ने क्षेत्र की जनता का प्रतिनिधित्व संभाला। इसके बाद वर्ष 1957 में पुनः विधानसभा का चुनाव हुआ तो मतदाताओं ने कांग्रेस की यह सीट जनसंघ के पाले में डाल दी। इस बार जनसंघ के झण्डे तले चुनाव लड़े जिले की पश्चिमी सीमा में भाले सुलतान क्षत्रियों का वर्चस्व कायम रखने वाले गया बक्स सिंह विधायक बने। वर्ष 1962 में मायंग निवासी रामबली मिश्र ने कांग्रेस से टिकट लेकर यह सीट पुनः कांग्रेस के खाते में डाल दी। यही नहीं उस समय प्रदेश सरकार में बजट की कमी जरूर थी लेकिन विकास में रूचि रखने के साथ-साथ श्री मिश्र इसौली की जनता में पूरा विश्वास बनाये रखा और यहां की जनता ने वर्ष 1967 के चुनाव में रामबली मिश्र को पुनः विधायक बनाकर विधानसभा भेजा। वर्ष 1969 में फिर चुनाव हुआ तो इस बार भारतीय क्रान्ति दल के बैनर तले चुनाव लड़े इसौली विधानसभा क्षेत्र के अशरफपुर निवासी रामजियावन दूबे ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली। पॉच वर्ष तक क्षेत्र के कांग्रेसी गोटे बिछाते रहे और वर्ष 1974 में चुनाव में अम्बिका सिंह ने कांग्रेस से चुनाव लड़कर सीट पर कब्जा कर लिया। एक वर्ष बाद क्षेत्रवासियों को पुनः चुनाव का दंश झेलना पड़ा। वर्ष 1975 में हुए चुनाव में प्रदेश की चर्चित पार्टी रही जनता पार्टी के झण्डे तले रामबरन वर्मा ने चुनाव लड़ा। पहले ही प्रयास में क्षेत्र की जनता ने वर्मा पर भरोसा जताकर उन्हें प्रतिनधित्व करने का मौका दिया। वर्ष 1980 के चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्रीपति मिश्र ने चुनाव लड़ा तो इसौली की जनता ने कांग्रेस पर स्वतः ही विश्वास कायम रखते हुए यह सीट पॉचवी बार कांग्रेस को सौंप दी। जनता ने इस बार विधायक नहीं प्रदेश का मुख्यमंत्री चुनकर भेजा था। चुनाव जीतने के बाद श्रीपति मिश्र सत्ता में रहते हुए वर्ष 1982 में प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गये। अपने मुख्यमंत्री काल में श्रीपति मिश्रा ने विधानसभा क्षेत्र इसौली की सड़को का निर्माण कार्य करवाने के साथ इसौली की घाट पर एक पुल का निर्माण कार्य करवाया। साथ ही बल्दीराय में एक महिला अस्पताल की आधारशिला रखी। यह आज भी मौजूद है लेकिन क्षेत्र के नागरिकों का दुर्भाग्य रहा कि उक्त अस्पताल के निर्माण हो जाने के बाद भी अभी तक स्वास्थ्य विभाग के शीर्ष अधिकारियों ने गैर जिम्मेदाराना रूख अख्तियार करके किसी डाक्टर व कर्मचारी की नियुक्ति नहीं की। मुख्यमंत्री द्वारा क्षेत्रवासियों को दी गई इस सुविधा का लाभ जनता को नसीब नहीं हो सका। वर्ष 1985 में चुनाव हुआ इस बार भी कांग्रेस ने बाजी मारी और कांग्रेस के टिकट पर जय नारायन तिवारी ने चुनाव जीतकर जनता की आवाज बुलन्द की। वर्ष 1989 में फिर चुनाव हुआ तो मायंग निवासी इन्द्रभद्र सिंह ने जनता दल के निशान पर विजय हासिल की और जब 1993 में चुनाव हुआ तो श्री सिंह ने निर्दल चुनाव लड़कर मतदाताओं का विश्वास कायम रखा। वर्ष 1996 में चुनाव का बिगुल बजा तो कांग्रेस के कद्दावर नेता कहे जाने वाले जय नारायन तिवारी पार्टी से बागी हो गये और बसपा के झण्डे तले चुनाव लड़कर इन्द्रभद्र सिंह को हरा दिया। इस सीट पर बसपा का कब्जा हो गया। आगामी चुनाव की रूप रेखा तैयार करते-करते पूर्व विधायक इन्द्रभद्र सिंह की हत्या वर्ष 2000 में कर दी गई। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में स्व. इन्द्रभद्र सिंह के बड़े पुत्र चन्द्रभद्र सिंह सोनू ने अपने पिता की खोई हुई वरासत को पाने के लिए सपा के बैनर तले चुनाव लड़ा और विजय हासिल की। बसपा की सरकार होने के बाद भी श्री सिंह मतदाताओं में उतने ही चर्चित हो गये थे जितने उनके पिता इन्द्रभद्र सिंह थे। लोगों की सहानुभूति उन्हें बराबर मिल रही थी। वर्ष 2007 के चुनाव में चन्द्रभद्र सिंह सोनू ने बसपा से टिकट पाकर अपने इस स्थानीय सीट पर कब्जा बरकरार रखा। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में जहां सुलतानपुर की पॉचों विधानसभा सीटों पर सपा का कब्जा था वहीं सपा की लहर में जनपद के अझुई निवासी अबरार अहमद ने साईकिल पर सवारी करने के पश्चात् विधानसभा तक पथ साफकर दिया। साईकिल की रेस में वे सदन तक पहुंच गये। आजादी के बाद से विधानसभा इसौली में हुए चुनावों में भाजपा का पत्ता साफ था।