मायावती के ‘हाथी’ को भी पड़ गयी सोशल मीडिया की ज़रुरत
लखनऊ: मायावती के 'हाथी' को भी सोशल मीडिया की ज़रुरत पड़ गयी है । एक वक्त था, जब उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती सोशल मीडिया से कुछ दूरी बनाकर रखा करती थीं, क्योंकि उनका कहना था कि उनकी बहुजन समाज पार्टी (बसपा या बीएसपी) का मुख्य वोटर तबका ऑनलाइन रहने वाले लोगों का नहीं है, लेकिन अब फरवरी-मार्च, 2017 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव से पहले वह डिजिटल जगत का जमकर इस्तेमाल करने के लिए तैयार दिखाई दे रही हैं.
बसपा की नेता के 15 जनवरी को आ रहे जन्मदिन के रूप में पार्टी के पास सटीक मौका है, जब वह अपने प्रतिद्वंद्वियों – यूपी में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा या एसपी) के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तथा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) – के खिलाफ प्रचार के लिए सोशल मीडिया का ज़ोरदार इस्तेमाल करे|
बीएसपी अगले कुछ दिनों में माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक के अलावा अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर बहुत-से वीडियो और पोस्टर जारी करने जा रही है, जिनका स्लोगन या नारा होगा – 'बहनजी को आने दो|'
इसके अलावा आने वाले कुछ हफ्तों में मायावती की योजना 50 से भी ज़्यादा रैलियों को संबोधित करने की भी है, लेकिन उनकी पार्टी के नेताओं का कहना है कि आमतौर पर परंपरागत तरीकों से अपने समर्थकों तक पहुंच बनाने की पक्षधर रहीं मायावती के लिए फेसबुक, ट्विटर, व्हॉट्सऐप और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म अतिरिक्त प्रचार का मौका दिलवाएंगे.
'हाथी' चुनाव चिह्न के साथ चुनाव लड़ती रही बीएसपी के ट्विटर और फेसबुक पर एकाउंट पहले से मौजूद हैं, लेकिन वे ज़्यादा लोकप्रिय नहीं हैं. पार्टी के ट्विटर हैंडल पर लगभग 10,000 फॉलोअर हैं, जबकि उनके मुकाबले यूपी के सीएम अखिलेश यादव के ट्विटर एकाउंट पर 31 लाख फॉलोअर हैं.
इस अंतर को पाटने में मायवती को कुछ वक्त लग सकता है, क्योंकि इस मामले में समाजवादी पार्टी के साथ-साथ बीजेपी भी बीएसपी की तुलना काफी आगे है. बीजेपी ने अपने लखनऊ कार्यालय में पूरा वॉररूम बना रखा है, जिसमें कॉल सेंटर, सोशल मीडिया रूम और सभी ज़रूरी उपकरण मौजूद हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी फेसबुक और ट्विटर पर काफी लोकप्रिय हैं, और उनके प्रचार अभियान का थीम है – 'काम बोलता है|'
दिसंबर में हुई एक पार्टी बैठक के दौरान मायावती ने राज्यभर में बांटने के लिए बुकलेट और सीडी सभी कार्यकर्ताओं को दी थीं, जो पहले कभी उनकी कार्यप्रणाली का हिस्सा नहीं रहा था. दरअसल, चार बार राज्य की मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुकीं मायावती सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर पहले कई बार सवाल खड़े कर चुकी थीं, क्योंकि उनका कहना था कि उनके समर्थक – सर्वाधिक पिछड़े वर्ग – उस किस्म के नहीं हैं, जिन्हें ऑनलाइन प्रचार अभियानों से प्रभावित किया जा सके, लेकिन अब इस चुनाव में सोच बदलती दिखाई दे रही है.