अमेठी में एक बार फिर दांव पर राहुल गांधी की प्रतिष्ठा
आसिफ मिर्जा
अमेठी। कांग्रेस का अभेद्य दुर्ग अब पहले जैसा अभेद्य नही रहा। पहले इसकी बानगी 2012 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिली जब अमेठी संसदीय क्षेत्र की 5 विधानसभा सीटों में 3 पर सपा ने झंडा गाड़ा। कांग्रेस को केवल 2 सीट से संतोष करना पड़ा था। इसके बाद कांग्रेस की ढीली होती पकड़ का मुज़ाहिरा एक बार तब हुआ जब 2014 में राहुल गांधी को बीजेपी की स्मृति ईरानी ने महज 20 दिनों में ही कड़े मुकाबले में ला दिया। जिस अमेठी में गांधी परिवार 4 लाख के अंतर से जीत दर्ज़ करता रहा था वही इस बार 80 हजार के मामूली अंतर से राहुल स्मृति के मुकाबले जीत दर्ज़ कर सके। अब इसके बाद आता है 2015 का पंचायत चुनाव। जिले के 13 ब्लाक प्रमुख पदों में मात्र एक ब्लॉक बहादुरपुर में कांग्रेस को जीत हासिल हुई। सात ब्लॉकों में तो राहुल के सेनापति एक अदद उम्मीदवार तक नही ढूंढ सके। और तो और जिला पंचायत अध्यक्ष पद के उम्मीदवार ने ऐन वक़्त अपना नामांकन वापस लेकर राहुल जी की भदद ही पिटा दी।
अब एक बार फिर विधानसभा चुनाव सामने है और पार्टी की गुटबाज़ी है कि थमने का नाम नही ले रही। अमेठी के ज्यादातर कांग्रेस नेता सपा की बी टीम की तरह समाज के सामने पेश आये। कांग्रेस कार्यकर्ता बुरी तरह निराश और हताश हैं। उनके सामने भविष्य का संकट खड़ा है। सांसद राहुल गांधी का अमेठी की जनता से कोई सम्वाद नही है इसके चलते उनसे अमेठी का कोई भावनात्मक सम्बन्ध भी नही बन पाया। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में अमेठी के एक जागरूक नागरिक की टिप्पणी सामयिक है कि राहुल जी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को नौकर और अमेठी के लोगो को आदिवासी समझते हैं।
अमेठी के लोगों के लिए ये समझना भी एक बड़ा तिलिस्म है कि आखिर राहुल गांधी जी लगातार 10 साल सांसद रहे और केंद्र में उनकी सरकार रही तो फिर अमेठी शाहगंज ऊंचाहार रेल परियोजना क्यों नही आरम्भ की गयी। आखिर उतरेटिया और अमेठी के बीच रेल लाइन का दोहरीकरण क्यों नही हुआ। रोज़गार के कोई उपाय क्यों नही किये गए। सैनिक स्कूल या केंद्रीय विद्यालय क्यों नही खोले गए।
कांग्रेस की दुर्गति तब से और हो गयी जबसे कुशल रणनीतिकार और कांग्रेसजन से सीधा सम्पर्क रखने वाले किशोरीलाल शर्मा को अमेठी से हटाकर केवल रायबरेली तक ही सीमित कर दिया गया।
ऐसे में देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस के युवराज आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी की इज़्ज़त किस तरीके से बचाएंगे। और हाँ यह भी बता दें कि 2012 में अमेठी और रायबरेली में प्रियंका वढेरा ने जमकर प्रचार किया था तो रायबरेली में कांग्रेस का 5 सीटों पर खाता नही खुला और अमेठी में केवल 2 सीट पर जीत मिली।
"शुकुलबाजार के महोना में हुए 11 लोगों की हत्याकांड मामला भी राहुल के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। राहुल को बीते लोकसभा चुनाव में जगदीशपुर और शुकुलबाजार से ही लीड मिली थी। स्मृति इन्हें हर बूथ पे करारी टक्कर दे रही थी। महोना में दिल दहला देने वाली घटना पर राहुल नही पहुंचे। जिसको लेकर मुस्लिम समुदाय बेहद नाराज है।"