दफ्तर ताला ठोंक मुलायम गए दिल्ली
लखनऊ: समाजवादी पार्टी की कलह अब और बढ़ती नजर आ रही है। मैराथन बैठकों के बाद भी पार्टी टूटना लगभग तय हो गया है। मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव को आज दिल्ली पहुंचना है, लेकिन उससे पहले मुलायम, शिवपाल को लेकर लखनऊ में पार्टी दफ्तर पहुंचे। यहां मुलायम को किसी ने नहीं रोका। मुलायम दफ्तर में राष्ट्रीय अध्यक्ष के कमरे में बैठे और मीटिंग की।
यह पहला मौका है जब अखिलेश के मुलायम को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाने के बाद मुलायम पार्टी दफ्तर पहुंचे। यहां मुलायम ने कमरों का ताला लगवाया। अपने और शिवपाल की नेम प्लेट लगवाई। इस नेम प्लेट में उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष और शिवपाल को सिंचाई-सहकारिता मंत्री दिखाया गया है। उन्होंने सिक्योरिटी गार्ड को भी दफ्तर से बाहर कर दिया। यहां कुछ देर रुकने के बाद चाबियां लेकर मुलायम शिवपाल संग दिल्ली के लिए रवाना हो गए।
इस दफ्तर पर कुछ दिन पहले ही अखिलेश समर्थकों ने धावा बोलकर कब्जा जमा लिया था। अखिलेश की ओर से नामित प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम की अगुवाई में भीड़ यहां पहुंची थी। इसके बाद से वही इस दफ्तर में बैठ रहे थे। लेकिन आज मुलायम पहली बार दफ्तर पहुंच गए और अपना दावा ठोक दिया।
इधर, शनिवार रात रामगोपाल यादव ने अखिलेश के समर्थन में विधायकों, सांसदों पार्टी प्रतिनिधियों के डेढ़ लाख पन्नों के हलफनामे चुनाव आयोग को सौंपे और चुनाव चिह्न साइकिल पर दावा पेश किया। रामगोपाल यादव की इस पूरी कवायद से तय होगा कि असली समाजवादी पार्टी किसकी है और चुनाव चिह्न साइकिल की सवारी कौन करेगा?
रामगोपाल के चुनाव आयोग को सौंपे दस्तावेजो में 205 विधायकों ने अखिलेश को समर्थन किया है। 56 विधान पार्षद भी अखिलेश के साथ हैं। समाजवादी पार्टी के 15 सांसद भी अखिलेश को समर्थन कर रहे हैं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 30 सदस्य भी अखिलेश के साथ खड़े हैं। साथ ही 4400 पार्टी प्रतिनिधि भी अखिलेश को समर्थन कर रहे हैं। रामगोपाल का दावा है कि 90 फीसदी विधायक और एमएलसी अखिलेश के साथ हैं। इस पूरी कवायद को देखकर कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी में मुलायम और अखिलेश खेमे में सुलह की तमाम कोशिशें नाकाम हो गई हैं।
सूत्रों के मुताबिक पार्टी में टूट अब तय है और आज कोई बड़ा ऐलान हो सकता है। इससे पहले शनिवार को दिन भर सुलह का रास्ता निकालने के लिए बैठकें होती रहीं, मगर कोई नतीजा नहीं निकला। आजम खान और शिवपाल मुलायम सिंह से मिलने पहुंचे, लेकिन कोई नजीता निकलता नजर नहीं आया। कहा जा रहा है कि अखिलेश किसी भी कीमत पर राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने को राजी नहीं और अब वो अपनी शर्तों पर समाजवादी पार्टी को चलाना चाहते हैं।