मोदी की रैली में भाड़े की भीड़
प्रधानमंत्री का भाषण घिसा पिटा और निराशाजनक: मायावती
लखनऊ : बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, सांसद (राज्यसभा) व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सुश्री मायावती जी ने भाजपा व प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की आज यहाँ आयोजित हुई ’परिवर्तन रैली’ को फ्लॉप बताते हुये यह कहा कि भाड़े की भीड़ के साथ-साथ टिकटार्थियों द्वारा जुटाये गये जमावड़े व भाजपा द्वारा अपनी पूरी ताक़त लगाने के बावजूद भी यह रैली ’’कुर्सियों वाली रैली’’ ही साबित हुई जिसमें आमजनता की भागीदारी काफी कम रही तथा रैली की लगभग 40 हजार कुर्सियों में काफी बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों के ही लोग डटे रहे।
मायावती ने आज यहाँ जारी एक बयान में कहा कि वैसे तो नोटबन्दी के प्रभाव के कारण भाजपा की ’परिवर्तन यात्रायें’ पूरे प्रदेश में काफी फीकी रहीं हैं व इनमें जन भागीदारी काफी कम रही है, परन्तु नोटबन्दी का खास असर व लोगों की उस सम्बन्ध में नाराजगी भाजपा की यात्राओं की समाप्ति पर आज हुई ’परिवर्तन रैली’ में देखने को भी मिली। भाजपा ने इसे भाँपते हुये केवल लगभग 40 हजार कुसियों का ही इंतजाम किया था और इन कुर्सियों को भी काफी दूरी-दूरी पर बिछाया गया था ताकि पूरा ’’रमाबाई अम्बेडकर मैदान ’’ भरा-भरा लगे।
भाजपा की इस रैली में केवल भाड़े की भीड़ के साथ-साथ ज्यादातर टिकटार्थियो की ही भीड़ नजर आयी जो काफी बड़ी संख्या में कुर्सीधारी थे। इसके अलावा काफी बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को भी तैनात किया गया था।
इस प्रकार खासकर भाजपा व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की लोकसभा चुनावी वादाखिलाफी व नोटबन्दी के जानलेवा जंजाल को लोगों पर जबर्दस्ती थोपने से नाराज आमजनता की बहुत कम भागीदारी होने के कारण भाजपा की यह बहु-प्रचारित परिवर्तन रैली फ्लॉप साबित हुई है, जबकि भाजपा ने इसके बारे में काफी लम्बे-चौड़े दावे कर रखे थे और उसी के हिसाब से ताम-झाम भी करने की कोशिश की थी।
इतना ही नहीं बल्कि रैली की तरह ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण भी ज्यादातर मामलों में भी वही पुराना व घिसा-पिटा ही था। उनका भाषण आमजनता की उम्मीद पर खरा नहीं उतर पाया और नववर्ष में उनका पहला राजनीतिक सम्बोधन भी 31 दिसम्बर के देश के नाम सम्बोधन की तरह ही निराश करने वाला था।
नववर्ष में भी नोटबन्दी से देशवासियों को कुछ राहत देने वाली बात उन्होंने की ही नहीं जबकि यह ज्वलन्त समस्या है। इसके विपरीत जले पर नमक छिड़कते हुये पेट्रोल, डीजल व रसोईगैस जैसे आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ाकर नववर्ष 2017 में आमजनता की कमर तोड़ने वाला कड़वा ’तोहफा’ जरूर उनकी सरकार ने लोगों को दे दिया है, जिसकी बी.एस.पी. कड़े शब्दों में निन्दा करती है।
साथ ही प्रधानमंत्री के पिछले दो सम्बोधनों के बाद अब देश की आमजनता में यह सवाल उठने लगें हैं कि देश में कालाधन, भ्रष्टाचार व नकली नोट समाप्ति की आड़ में ’नोटबन्दी’ के 50 दिनों के लम्बे अभियान की समाप्ति के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भाजपा इसके सम्बन्ध में केवल हवा-हवाई व खोखली बातें ही क्यों कर रहे हैं? वे लोग जनता को उस लाभ के बारे में क्यों नहीं बता रहे हैं जिसका वायदा उन्होंने नोटबन्दी के समय बार-बार किया था।
इसके अलावा, भाजपा अपना हिसाब-किताब देश की जनता को क्यों नहीं दे रही है कि उसने 08 नवम्बर की नोटबन्दी से पहले अपने अकूत धन का कहाँ-कहाँ जुगाड़ की मार्फत कैसे बन्दोबस्त किया, कितनी सम्पत्तियाँ खरीदीं और नोटबन्दी के बाद कितना धन ठिकाने लगाया और बैंकों में कितना जमा कराया।
मायावती ने कहा कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा मोदी से पहले अपने भाषण में झकझोरने के बावजूद भी रैली की भीड़ यह मानने को तैयार नहीं दिखी कि श्री मोदी यू.पी. वाले हैं। उनके बार-बार पूछने के बावजूद लोगों की प्रतिक्रिया लगभग शान्त ही रही कि मोदीजी यू.पी. वाले है।
मोबाइल एप ’’भारत इण्टरफेस फार मनी’’ के अंग्रेजी नाम से लाँच किया गया और उसको ’’भीम’’ का उपनाम से प्रचारित कर दलित समाज के लोगों को इसके नाम पर वरग़लाने के प्रयास की आलोचना पर नरेन्द्र मोदी की टिप्पणी पर मायावती ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री के नीयत साफ होती तो इसका नाम ही फिर बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के नाम पर सीधा कर दिया गया होता।