मोदी का भाषण नीरस और उबाऊ: मायावती
लखनऊ : बसपा सुप्रीमो मायावती ने नववर्ष की पूर्व संध्या पर कलरात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के देश के नाम सम्बोधन को बहुत मायूस व निराश करने वाला बताते हुये कहा कि पिछले 50 दिनों से नोटबन्दी की जबर्दस्त जनपीड़ा झेल रहे मुल्क की 90 प्रतिशत आमजनता को नववर्ष में कोई राहत देने की बहु-प्रतीक्षित खबर नहीं मिलने से अनिश्चितता का माहौल अभी काफी दिनों तक जारी रहने वाला है, जो कि देशहित में एक सुखद स्थिति नहीं हैं।
मायावती ने आज यहाँ जारी अपने बयान में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सम्बोधन हमेशा की तरह ’’उपदेशात्मक’’ ज़्यादा था और उस लम्बे भाषण में ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे देश को नये वर्ष में उम्मीद की नई किरण जगे और देश को नीरसता व अविश्वसनीयता एवं अनिश्चितता के माहौल से उभर सके। निश्चित तौर पर नोटबन्दी के जबर्दस्त जंजाल के बाद नया वर्ष सन् 2017 देश के लिये नई उम्मीद लेकर नहीं आया है, जिसके लिये केवल केन्द्र की भाजपा सरकार की अपरिपक्वता व उसकी अहंकारी प्रवृत्ति ज़िम्मेदार है।
कुल मिलाकर सवाल यही उठता है कि ’’नोटबन्दी’’ के अपरिपक्व फैसले के कारण देश की 90 प्रतिशत गरीबों, मजदूरों, व्यापारियों व अन्य मेहनतकश आमजनता ने, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के शब्दों में जिस ’’शुद्धि यज्ञ’’ में भाग लिया और अप्रत्याशित व अभूतपूर्व जंजालों को काफी लम्बे समय तक झेला, उन्हें अन्ततः क्या मिला? आखिर उनका क्या भला हुआ? प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 50 दिनों के लम्बे इंतजार के बाद अन्त में केवल लोगों का ध्यान बाँटने के लिये कुछ ब्याज रियायतें देने की घोषणा की गई है, परन्तु क्या ऐसी बातों के लिये ’राष्ट्र के नाम सम्बोधन’ जरूरी था?
वैसे तो प्रधानमंत्री का भाषण तथ्यात्मक व सारगर्भित व लोगों के जीवन में काम आने वाला कम और उपदेश देने वाला ज्यादा होता है अर्थात काम कम और बातें अधिक की श्रेणी वाला होता है, परन्तु फिर भी वह अपनी किसी भी नसीहत व उपदेश को सबसे पहले अपने ऊपर अपनाने की सर्वमान्य नीति को नहीं मानते। यही कारण है कि उनकी बातें केवल सरकारी ढिंढोरा बनकर रह जाती हैं।
आखिर क्या कारण है कि वह भाजपा व आर.एस.एस. को डिजिटल लेन-देन के लिये बाध्य नहीं कर पा रहे हैं? देश के सवा सौ करोड़ आमजनता को नगद के बजाय, डिजिटल लेन-देन की सूखी नसीहत देतें रहते हैं, परन्तु भाजपा व आर.एस.एस. का आस्तित्व तो कैश अर्थात नगदी लेन-देन पर ही ज्यादातर टिका हुआ है? इसका वह क्या करने वाले हैं, वे यह देश की आमजनता को कुछ नहीं बताते हैं। देश के लिये नोटबन्दी की अग्नि परीक्षा व डिजिटल लेन-देन से पहले प्रधानमंत्री को अपना पक्ष मजबूत करना चाहिये ताकि उनकी कथनी और करनी में ज़मीन-आसमान का अन्तर नहीं रहे।