जेएनयू: विधानसभा के सामने फूंका गया मोदी, भागवत का पुतला
लखनऊ ।। जेएनयू में उठी छात्र आंदोलन की आग पूरे देश में फैलने लगी है। लखनऊ में शुक्रवार को विधानसभा के सामने जेएनयू से 12 छात्रों के निलंबन और निष्कासन को लेकर विभिन्न विश्वविद्यालय के छात्र संगठन ने मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और जेएनयू प्रतिकुलपति प्रो. एम जगदीश कुमार का पुतला फूंका।
प्रधानमंत्री का पुतला फूंक रहे छात्र नेताओं और छात्रों की मांग है कि जेएनयू में एमए, पीएचडी और एमफिल में प्रवेश के लिए जो गड़बड़ियां की जा रही हैं, वह बंद हों। इसके साथ ही साथ उचित मांग को लेकर जिन छात्रों पर निष्कासन की कार्रवाई की गई है। यह सबकुछ आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के इशारे पर करवाया जा रहा है। देश के प्रधानमंत्री जेएनयू को संघ का अड्डा बनाना चाहते हैं और प्रतिकुलपति इसमें उनका सहयोग कर रहे हैं। देश की प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में दलित और पिछड़े वर्ग के छात्रों के साथ जातिवादी भेदभाव को लेकर दलित और पिछड़ी जाति के कई संगठन एक मंच पर आ गए हैं।
कैसे होता है भेदभाव
दरअसल, जेएनयू में एमए, पीएचडी और एमफिल में प्रवेश के लिए कुल 100 अंक की परीक्षा होती है। इसमें 70 अंक लिखित परीक्षा के होते हैं और बाकी 30 अंक का साक्षात्कार होता है। दलित पिछड़े वर्ग के छात्रों का आरोप है कि जेएनयू में प्रवेश परीक्षा के इंटरव्यू में जातिवादी भेदभाव के चलते उन्हें बहुत कम अंक दिए जाते हैं, जिससे उनका चयन न हो पाए और पिछड़ी-दलित वर्ग की सीटें सामान्य वर्ग से भरे जाने का विश्वविद्यालय प्रशासन को अवसर मिल जाए।
सूत्रों के मुताबिक जेएनयू में पिछले पांच सालों में साक्षात्कार के दौरान दलित वर्ग के छात्रों को औसतन 30 अंकों में से सात अंक मिले, जबकि ओबीसी का औसत तो दलितों से भी खराब रहा। ओबीसी के छात्रों को पिछले पांच सालों में औसतन छह अंक ही दिए गए, वहीं पर सवर्ण वर्ग के छात्रों को औसतन 20 अंक दिए गए हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि जेएनयू में साक्षात्कार के दौरान जाति के नाम पर भेदभाव किया जाता है और इसी भेदभाव को समाप्त करने के लिए जेएनयू के दलित, पिछड़े, आदिवासी और पसमांदा मुसलमान छात्र बड़ी संख्या में एकत्रित होकर जेएनयू प्रशासन से साक्षात्कार को समाप्त करने या साक्षात्कार को बिना अंक का बनाने की मांग कर रहे हैं।
क्यों हुई कार्रवाई
जेएनयू प्रशासन ने दलितों पिछड़ों की जायज मांग को दबाने के लिए 12 दलित और ओबीसी छात्रों को निलंबित कर दिया। निलंबित छात्रों को विश्वविद्यालय में घुसने पर भी पाबंदी लगा दी गई है। यह भी फरमान जारी किया गया है कि इन निलंबित छात्रों को जो शरण देगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।