नोटबंदी: घर का चिराग़, घर को आग
राकेश सिंह
कहा जाता है कि सूचना और ज्ञान में अन्तर होता है। अकसर सूचनाप्रद व्यक्ति स्वंय को ज्ञानी समझने की भूल कर लेता है, उसी प्रकार नोटबंदी में जिन लोगों में देसी काले धन को सफ़ेद करने में मदद की है, असल में उन्होंने देश का नुक़सान किया है। नोटबंदी की मियाद में जब कुछ घंटे ही बच गए हैं और इस बात की कोई संभावना नहीं बची कि देसी काले धन को सिस्टम में लाया जा सके, फिर भी कुछ लोगों ने इस महायज्ञ को निर्मूल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि क़ानूनन नक़दी के लेन देन और हिसाब के लिए अधिकृत लोगों ने यदि नोटबंदी के पावन कर्म को धूमिल किया है तो यह निजी नहीं, सार्वजनिक सामाजिक पाप की श्रेणी में आएगा। श्रीलंका गार्जियन में छपे एक आलेख ने भारत के चार्टर्ड अकाउंटेंट पर जो आपत्तियाँ उठाई हैं, नोटबंदी की समाप्ति के अवसर पर उन पर ग़ौर करने की आवश्यकता है। लेखक एन एस वेंकटरमण ने इंस्टीच्यूट ऑफ़ चार्टर्ड अकांटेंट में गुणवत्ता की गिरावट की मिसाल देते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं। वेंकटरमण का दावा है कि भारत में चार्टर्ड अकांटेंट की प्रकाशित रिपोर्टों के आधार पर अब सीए कर चोरों, काले धन रखने वालों और यहाँ तक कि अपराधियों को टैक्स दिए बिना काले धन को खपाने में मदद करने लगे हैं। उनका कहना है कि सीए की सारी आस्था अपने फरीक को बचाना है, ना कि देश के क़ानून का सम्मान करना। वेंकटरमण का यह भी दावा है कि दुर्भाग्य से भारत के अधिकांश सीए क़ानून को तोड़ मरोड़ कर अपने फरीक का कर बचाते हैं या क़ानून की ग़लत व्याख्या करते हैं। यही नहीं यह सीए अकाउंट बुक में फर्ज़ी एंट्री को सब कुछ मान बैठे हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि इंस्टीच्यूट ऑफ़ चार्टर्ड अकांटेंट में गुणवत्ता की गिरावट कैसे हो रही है, इसकी मिसाल तो हमने तभी देख ली थी जब प्राइस वाटर हाउस ने सत्यम् कम्प्यूटर की टैक्स चोरी में मदद की थी। वेंकटरमण सभी सीए को दोषी नहीं मानते लेकिन कहते हैं कि बड़ा तबक़ा इस तरह के कामों में व्यस्त है। वह ‘कोड ऑफ़ एथिक्स’ का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि इंस्टीच्यूट ऑफ़ चार्टर्ड अकांटेंट ने ही इस गरिमा के क्षरण को नहीं रोका। काले धन को बचाने और भ्रष्ट लोगों के सन्दर्भ में वेंकटरमण इस बात की आशंका जताते हैं कि वह दिन दूर नहीं जब इन्कम टैक्स के अधिकारी चार्टर्ड अकाउंटेंट के घरों और दफ़्तरों में छापे मारेंगे।
जजों, वकीलों, प्रोफ़ेसर और डॉक्टरों के समझौतों पर लेखक दुखी हैं। कर से बचने के लिए डॉक्टरों की कैश फ़ीस लेने के पीछे वजह यह है कि वह टैक्स नहीं देना चाहते। यही हाल वकीलों का है। वेंकटरमण कहते हैं कि यही हाल शैक्षणिक संस्थाओं का है और न्यायपालिका में भ्रष्टाचार से भी लेखक दुखी नज़र आता है। मगर भ्रष्टाचार की इस गंगा में वेंकटरमण का मानना है कि चार्टर्ड अकांटेंट को यह हक़ नहीं कि वह भ्रष्ट हो जाए क्योंकि उससे कर निर्धारण और उचित अंकेक्षण की ‘कोड ऑफ़ एथिक्स’ के संदर्भ में ईमानदारी की उम्मीद की जाती है। वह कहते हैं कि बाक़ी लोगों के लिए कर चोरी की गुंजाइश नहीं बचेगी यदि चार्टर्ड अकांटेंट अपने काम को ईमानदारी से निभाएँ क्योंकि यह प्राणी सभी के करों के निर्धारण का कार्य करता है।
इंस्टीच्यूट ऑफ़ चार्टर्ड अकांटेंट ने हालिया नोटबंदी नहीं करने की सीए को जो चेतावनी जारी की थी, चार्टर्ड अकांटेंट के विरोध के बाद उसे वापस लेना पड़ा। मगर क्या इंस्टीच्यूट ऑफ़ चार्टर्ड अकांटेंट को लगता है कि उसके सभी सदस्य उस ‘कोड ऑफ़ एथिक्स’ की पालना करते हैं, जिसकी वह शपथ लेते हैं? यदि इस कोड को सीए पूरा नहीं करते हैं तो इंस्टीच्यूट की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि इंस्टीच्यूट ऑफ़ चार्टर्ड अकांटेंट अपने फ़र्ज़ को पूरा करने में नाकाम हो रही है। नोटबंदी के बाद सीए ने देश के लिए अधिक फ़र्ज़ निभाया या अपने फरीक के लिए?
मेरा मानना है कि लेखक एन एस वेंकटरमण ने चार्टर्ड अकांटेंट के लिए जो आपत्तियाँ और आशंकाएँ जताई हैं, क्या वह कॉस्ट अकांउटेंट के लिए भी लागू होती हैं। कॉस्ट अकांउटेंट की शिकायत की स्थिति में भी उसके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए उसी संस्था की एक समिति निर्णय कर देती है जबकि होना यह चाहिए कि यदि कॉस्ट अकांउटेंट भी अपनी ज़िम्मेदारियों से समझौता करता है तो द इंस्टीच्यूट ऑफ़ कॉस्ट अकाउंटेंट को घटना विशेष को वित्र मंत्रालय को सौंपकर अपनी साख को बचाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। लेखक वेंकटरमण इंस्टीच्यूट ऑफ़ चार्टर्ड अकांटेंट पर भ्रष्टाचार के बीच गिरती साख को मुद्दा बता रहे हैं, मेरी नज़र में द इंस्टीच्यूट ऑफ़ कॉस्ट अकाउंटेंट ने भी अपनी साख की बजाय अपने लोगों को बचाने की जो प्रक्रिया विकसित की है, वह भी साख गिराने वाली है।
द इंस्टीच्यूट ऑफ़ कॉस्ट अकाउंटेंट ने कॉर्पोरेट मंत्रालय से भ्रष्टाचार मिटाने की जो प्रतिज्ञा ली है, वह कहता है कि नैतिक कारोबारी अभ्यास और ईमानदारी का माहौल बनाने में मदद करेगा। संस्था यह भी कहती है कि वह पारदर्शिता और निष्पक्ष जवाबदेही के लिए भी कार्य करेगी। क़ानून और नियमों का पालन करते हुए कारोबार के तंत्र के मुताबिक़ कार्य करेगा। रिश्वत पर चोट करेंगे, शिकायत पर जवाबदेही तय करेंगे, कार्य करने के नियमों का पालन करेंगे, हितधारकों के हितों का ख़याल रखेंगे और एक ‘कोड ऑफ़ एथिक्स’ बनाएंगे। क्या इस कोड के बावजूद कॉस्ट अकांटेंट यह गारंटी दे सकते हैं कि वह इस नीति का पालन कर रहे हैं?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हो सकता है नोटबंदी के बाद भ्रष्टाचार और काले धन पर चोट के लिए बेनामी सम्पत्ति पर कड़ा अध्यादेश या क़ानून ला सकते हैं, जीएसटी का इन्तज़ार है और विदेशी काले धन के लिए भी कार्य किया जा सकता है। एक बेहद भ्रष्ट सिस्टम को सिरे से ठीक करने के लिए बहुत कार्य बाक़ी है लेकिन कर निर्धारण और काले धन को सूंघने वाले चार्टर्ड अकांटेंट और कॉस्ट अकाउंटेंट इसमें मदद नहीं करके उल्टे काले धन के माफ़िया को बचाने में लग जाएंगे तो कोशिशें निर्मूल हो जाएंगीं। चिराग़ इसलिए जलाया जाता है ताकि घर रौशन हो, इसलिए नहीं कि इससे ही घर जल जाए।
लेखक राकेश सिंह एसोचैम उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष और इंस्टिच्यूट ऑफ़ कॉस्ट अकाउंटेंट संस्थान के पूर्व अध्यक्ष हैं।
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