कैशलेस अर्थव्यवस्था की कल्पना भी बेकार : नीतीश कुमार
पटना: काला धन और नोटबंदी के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी सरकार का समर्थन करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दो टूक शब्दों में कहा है कि कैशलेस अर्थव्यवस्था की कल्पना करना भी बेकार है.
नीतीश कुमार ने सोमवार को पटना में एक संवाददाता सम्मलेन में कहा कि कुछ भी कर लीजिए यह नहीं चल सकता."इंडिया का जो सामाजिक परिवेश है, सामाजिक पृष्ठभूमि है और जो लोगों की आदत हैं उसके मद्देनजर नगद से लोग खरीद-बिक्री करते रहेंगे. इसलिए यह कल्पना या विचार हो सकता है. मैं नहीं समझता कि कैशेलस इकॉनामी हो जाएगी" नीतीश कुमार ने यह कहकर कैशलेस की मुहिम पर अपना विचार पहली बार सार्वजनिक रूप से साफ कर दिया.
नोटबंदी पर केंद्र का समर्थन करते हुए नीतीश ने हाल ही में केंद्र को आगाह किया था कि पचास दिनों के बाद उन्हें स्पष्ट करना होगा कि कितने काले धन वालों के पैसे जब्त हुए, क्योंकि आज बैंक की लाइन में घंटों खड़ा रहने वाला व्यक्ति इस उम्मीद से नाराज नहीं हो रहा है कि दो नंबरिया लोगों पर गज गिरने वाली है. लेकिन इस मुद्दे पर मोदी सरकार को जवाब देना होगा. हालांकि नीतीश ने मोदी सरकार को एक बार फिर सलाह दी कि समानांतर अर्थव्यवस्था में काला धन एक छोटा हिस्सा है और नोटबंदी अकेला कुछ नतीजा नहीं देगा. इसलिए बेनामी सम्पत्ति रखने वालों पर कार्रवाई करने में विलम्ब नहीं करना चाहिए. लेकिन नोटबंदी पर लोगों को हो रही दिक्कतों से नीतीश ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि इसके विभिन्न पहलुओं से निबटने की जिम्मेदारी केंद्र पर है.
बीजेपी द्वारा बिहार के विभिन जिलों में पार्टी दफ्तर के लिए खरीदी गई जमीन से सम्बंधित घोटाले पर नीतीश ने माना कि भले ही उनकी पार्टी इस मुद्दे पर हर दिन एक जांच की मांग करती है लेकिन इस मुद्दे पर उनका निबंधन विभाग देखेगा. लेकिन नीतीश ने यह कहते हुए कि यह मेरे लेवल की चीज नहीं है, बीजेपी से पूछा कि यह उनका भी उत्तरदायित्व बनता है कि वे लोगों को बताएं कि आखिर जमीन का पैसा कैसे और कहां से लाए.
नीतीश ने सोमवार से जनता दरबार की तर्ज पर एक नए लोक संवाद कार्यक्रम की शुरुआत की. इसमें विभिन्न विभागों से सम्बंधित पचास लोगों से सरकारी योजनाओं से जुड़े फीडबैक और परामर्श लेने की शुरुआत की. इस दौरान उस विभाग के मंत्री और सचिव भी मौजूद रहते हैं. राज्य में लोक शिकायत निवारण कार्यक्रम शुरू होने के बाद जनता दरबार की परंपरा इस साल के मई महीने में दस वर्षों के बाद खत्म कर दी गई थी.