नोट बन्दी से हुए रूपये की किल्लत ने बिगाड़ा थाली का स्वाद
सुलतानपुर। घर रसोई में दाल, चावल और शक्कर के डिब्बों में छिपाकर रखे पाॅच सौ और एक हजार रूपये के नोटो के दिन क्या लदे, रसोई का पूरा बजट ही बिगड़ गया है। आर्थिक आपातकाल के कारण बिगड़े बजट में परिवार की गाड़ी को ढर्रे पर लाने के लिए किचन कैबिनेट ने घरेलू खर्चो में कटौती शुरू कर दी है। घर की महिलाएं इस समय मेहमानबाजी से भी तौबा कर रही है।
नीलम तिवारी ने कहा कि बैकों में रूपये न होे से अब गृहस्थी पर संकट आ गया है। दाल, चीनी और आटे से लेकर सब्जी तक के लिए रूपयों का जुगाड़ करना भारी है। घर पर सौ और पच्चास के जो नोट थे उनसे काम चलता रहा लेकिन अब स्थिति नियंत्रण के बाहर होने लगी है। पहले थाली में दो सब्जियां, दाल व सलाद आदि सजती थी। अग एक दिन दाल बनती है तो दूसरे दिन सब्जी। बच्चे भी मजबूरी समझ कर चुप है। यह समस्या किसी एक घर की नहीं हर किसी के यहां की है। चन्दा शर्मा ने कहा कि अचानक नोट पर पाबंदी लगने का फैसला अब सामान्य परिवारों के सामने परेशानियां पैदा करने लगा है। फुटकर रूपयों की किल्लत बढ़ने से खरीदारी में भी दिक्कत है। ऐसे में घर के अन्य खर्चो में कटौती कर बजट को नियंत्रित करना पड़ रहा है। शिखा तिवारी ने कहा कि रसोई हम महिलाओं को ही संभालनी है। इसलिए अनावश्यक खर्चो पर प्रतिबंध लगाकर ही रूपयों की किल्लत से जूझने का तरीका निकालता पड़ेगा। सब्जी व अन्य सामान बजट को देखकर ही मंगाई जा रही है। वहीं दूसरी ओर जयसिंहपुर ब्लाक की रहने वाली गृहणी महिला मीरा वर्मा ने कहा कि सरकार ने फैसला तो अच्छा लिया हैं लेकिन सामान्य परिवार की समस्याओं को दूर करने के उपाय नहीं तलाशे गए। बैकों में लम्बी लाइन लग रही है और एटीएम में रूपये नहीं है। ऐसे में महिलाएं घर का चैका-चूल्हा संभाले या फिर बैकों में रूपये की निकासी के लिए लाइन में लगे। गैस एजेन्सी वाले भी पाॅच सौ के नोट नहीं ले रहे है। गैस की किल्लत होने लगी है। वहीं शानू सिंह विवेकनगर ने कहा कि क्या करें सर मजबूरी है और आज जो परेशानी हो रही है उसका फायदा कुछ समय बाद देशवासियों को नजर आएगी, जो महंगाई दिखाई पड़ रही है आने वाले समय में वो दूर हो जाएगी।