इज़रायल से सम्बन्ध बढ़ाना देश की छवि को कलंकित करना है : मौलाना उसामा क़ासमी
कानपुर।भारत ने हमेशा पीड़ित फिलिस्तीनियों का समर्थन और उनकी स्वतंत्रता के लिए आवाज बुलंद की, साम्रज्यवादी हिंसा, घृणा और शत्रुता का दर्द झेल चुके भारत आजादी के बाद से ही अन्याय के खिलाफ आवाज उठाता रहा और इज़रायल द्वारा किये जाने वाले जुल्म की निंदा करता रहा है, भारत की छवि दुनिया में मजलूमों व पीड़ितों की मदद और अत्याचारियों से दूरी बनाए रखने की रही है, लेकिन अब मानवता के दुश्मन इजरायल से भारत ने हाथ मिला लिया है और पीड़ित फिलिस्तीनियों की उसे कोई परवाह नहीं है, तानाशाह के साथ सम्बन्ध बढ़ाना भारत की छवि को कलंकित करना है, जमीयत उलेमा हिंद देश की गरिमा व संस्कृति को कलंकित करने की हर कोशिश का कड़ा विरोध करेगी। यह विचार व्यक्त जमीयत उलेमा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक उसामा कासमी ने किया।
मौलाना उसामा कासमी ने कहा कि जमीयत उलेमा हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने इज़रायल के राष्ट्रपति रोवेन रयूलन की भारत आगमन और पच्चीस वर्षीय राजनयिक संबंधों का जश्न मनाने की कड़ी आलोचना करते हुए इसे भारत की सदियों की सभ्यता व संस्कृति पर हमला करार दिया है । मौलाना मदनी ने कहा कि भारत साम्राज्यवादी शक्तियों के अत्याचार का दुख और दर्द झेल चुका है, यही वजह है कि देश के निर्माताओं ने स्वतंत्रता एंव विभाजन के बाद साम्राज्यवादी और जातिवाद शक्तियों से हमेशा पीड़ित लोगों का साथ दिया, लेकिन वर्तमान सरकार इन सभी नीतियों को बदलकर देश की ‘‘मानवता मित्र’’ छवि को कलंकित करने पर तुली हुई है। उन्होंने कहा कि आज से पच्चीस साल पहले 1992 में भारत ने शांति के प्रयास के उद्देश्य से इजरायल से राजनयिक संबंध स्थापित किए थे, लेकिन अब वह ज़ोरदार और नस्ल परस्त सरकार के समर्थन में परिवर्तित होते जा रहे हैं। इज़रायल के साथ जश्न में शरीक होना या आर्थिक संबंध स्थापित करना इस यौद्धिक जुनून, जातिवाद सोच और नरसंहार में वित्तीय व समर्थन द्वारा मदद करने के बराबर है। ऐसे कब्जे करने और जुल्म करने वाले देश के साथ संबंध का पच्चीस साल, जश्न का नहीं बल्कि संशोधन और खेद अभिव्यक्ति मौका है। हमें हमारी परंपरा और संस्कृति यह सोचने को कहती हैं कि पिछले पच्चीस वर्षों में इजरायल ने हजारों महिलाओं, बच्चों और मासूम इंसानों को बिना किसी कारण ही मारा है या उन्हें अपने ही देश में परेशान और भूमिहीन होने पर मजबूर किया है।
मौलाना उसामा क़ासमी ने मौलाना महमूद मदनी के बयान का समर्थन किया कि जमीयत उलेमा हिंद, भारत और इज़रायल के बढ़ते संबंधों की कड़ी निंदा करता है और देश के नीति निर्माताओं को चेतावनी दिया है कि ऐसे जालिम देश से संबंध बढ़ाना जिस पर युद्ध के अपराध साबित हो चुके हैं, हरगिज गांधी और नेहरू के देश को शोभा नहीं देता। मौलाना मदनी ने सच कहा है कि इज़रायल हमेशा अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों का उल्लंघन करता रहा है, हाल में अज़ान व इबादतों पर प्रतिबंध लगाने के कानून को मंजूरी इसकी एक ताज़ा उदाहरण है, इन्हीं परिस्थितियों के मद्देनजर जमीयत उलेमा हिंद ने अपने 33 वें अधिवेशन में एक प्रस्ताव भी पारित किया है जिसमें मांग की गई है कि ‘‘अगर अंतर्राष्ट्रीय संघ और संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों का इजरायल बाध्य नहीं है और वह मांग के बावजूद नाकाबंदी करके लाखों इन्सानों को कै़दी का जीवन जीने पर मजबूर कर रहा है, तो इसमें क्या देरी है कि इसराइल को एक आतंकवादी देश घोषित करने का प्रस्ताव लाया जाए और इस पर आर्थिक प्रतिबंध लागू की जाएं। ‘‘ मौलाना उसामा कासमी ने बताया कि मौलाना मदनी ने इस संबंध में 35 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और सौ प्रमुख हस्तियों की ओर से जारी निंदा बयान का पूरा समर्थन किया है जिसमें कहा गया है कि भारत, इजरायल के साथ अपने आर्थिक, सुरक्षा और सैन्य संबंधों को तुरंत निलंबित करे और प्रधानमंत्री भारत- इजरायल दौरे का अपना इरादा छोड़ दें। अगर इजरायल के साथ संबंधों पर पुनर्विचार नहीं किया गया तो जमीयत उलेमा हिंद देश के न्यायप्रिय लोगों के साथ सामूहिक विरोध करने पर मजबूर होगी।