वन विभाग ने मेरी जिन्दगी के 3 साल बर्बाद किये: मुज़फ्फर अली
विरासत और सम्मान की सुरक्षा के लिए स्टार एक्टिविस्ट सिद्धार्थ नारायण की मुहिम
लखनऊ: लखीमपुर खीरी एक वन्य क्षेत्र है पर यह केवल वन्य क्षेत्र ही नहीं बल्कि यहाँ अब भी नौकरशाही का जंगल राज चलता है । इस जंगल राज के शिकार गरीब और असहाय तो होते ही रहे हैं मगर यहाँ जिस व्यक्ति की बात हो रही है वह किसी परिचय का मोहताज नहीं है, न ही असहाय है । वह शख्स हैं कोटवारा राजघराने के चश्मो चिराग़ मशहूर फिल्म निर्माता निर्देशक मुजफ्फर अली जिनकी पुश्तैनी ज़मीन पर वन विभाग ने कब्ज़ा कर लिया है और श्री मुज़फ्फर अली की स्वर्गीय माताश्री पर जिनका देहांत 56 वर्ष पहले हो चूका है अनर्गल और बेबुनियाद आरोप भी लगाए जिससे मुज़फ्फर अली जैसे फनकार बेहद आहत हैं। मुज़फ्फर अली जिनकी पहुँच सरकार और शासन तक भी काफी ऊपर तक है पर अपनी लड़ाई आम नागरिक की तरह क़ानून के दायरे में ही लड़ रहे हैं और पिछले तीन वर्षों से अपनी कला सृजन को भूलकर अपनी पुश्तैनी विरासत और सम्मान बचाने में लगे हैं।
आज मज़बूर होकर श्री मुज़फ्फर अली ने लखनऊ में पत्रकारों से अपनी व्यथा बयान की और वन विभाग के उन आरोपों की सच्चाई को तथ्यात्मक रूप से सबके सामने रखा। पत्रकार वार्ता में मामले के सारे तथ्य सामने रखने के बाद मुज़फ्फर अली ने कहा कि कोटवारा राजघराने के ऊपर लगाए गए वन विभाग के सारे आरोप बेबुनियाद एवं हीनभावना से प्रेरित हैं । मुजफ्फर अली ने कहा कि ‘‘उत्तर प्रदेश वन विभाग उनकी जिन्दगी के 3 साल बर्बाद करने के पूर्णतः जिम्मेदार हैं और जो आर्थिक नुकसान राज्य को फिल्म निर्माण न होने के कारण हुआ, उसके लिए उत्तर प्रदेश वन विभाग दोषी है।’’
वरिष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता सिद्धार्थ नारायण पूरे मामले पर रौशनी डालते हुए कहा कि वर्ष 2013 में मुजफ्फर अली साहब ने राज्य सरकार से दरख्वास्त की थी कि एक जाँच वन विभाग के बेबुनियाद एवं तथ्यहीन पहलुओं पर बैठा दी जाय। राज्य सरकार ने मुख्य वन संरक्षक की अध्यक्षता में एक जांच आयोग बैठाया परन्तु वन विभाग के कुछ अधिकारी की वजह से यह जांच रिपोर्ट दबा दी गयी।
गोला गोकरननाथ के जिलास्तर के कुछ अधिकारियो ने मुजफ्फर अली के विरूद्ध एस0डी0एम0 न्यायालय गोला में एक प्रार्थनापत्र दाखिल कर उनकी पुश्तैनी जमीन का दाखिल-खारिज रद्द करने की फरियाद डाली थी। परिवार के ऊपर लांछन लगाकर झूठे तथ्य सामने लाकर पूर्णतरीके से मानसिक उत्पीड़न किया गया। मुलायम आवास योजना नाम की गरीबों के लिए आवासीय योजना के अंतर्गत बने भवनों को रेंजर रविशंकर वाजपेयी ने बिना किसी आदेश के ध्वस्त कर दिया। 80 साल के एक वृद्ध नौकर से रेंजर उमेश चन्द्र राय ने हाथापाई की एवं उसको चोटिल किया, दलित मजदूरों को बेरहमी से मारा पीटा गया। एक बिना दिनांक का प्रार्थनापत्र एस0डी0एम0 गोला गोकरननाथ में मुजफ्फरअली एवं उनके परिवारजनों के विरूद्ध वन विभाग (उमेश चन्द्र राय) द्वारा दाखिल किया गया।
21 अक्टूबर 2016 को मुजफ्फरअली का 72वां जन्मदिन था। वरिष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता सिद्धार्थ नारायण ने उनको उनकी पुश्तैनी जमीन, सरकारी इन्क्वायरी रिपोर्ट की सर्टिफाइड कापी जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत उपलब्ध कराई। सिद्धार्थ नारायण ने कहा कि ‘‘मुजफ्फर अली साहब मां को वह बहुत प्यार करते हैं और उनके दुनियां सेरूखसत होने के 56 साल बाद आज वह सारे पहलू इस आरटीआई से उजागर हुए हैं, जो कि स्व0 महारानी कनीज़ हैदर को पूरी तरीके से वन विभाग के आरोपों से बरी करते हैं जो विभाग ने उन पर और कोटवारा रियासत पर लगाए थे।