जिंदगी में हम हर क्षण हम शरीअत से बंधे हैं: मौलाना उसामा क़ासमी
कानपुर: हम अल्लाह के बंदे हैं और बन्दगी(इबादत) में जहां नमाज, रोजा, हज और ज़कात बन्दगी(इबादत) है वहीं दुकान, मकान, शादी-ब्याह, शासन, व्यापार, डाक्टरी, वकालत, मजदूरी, अधिकारी, अमीर, गरीब, खुशी और गमी भी बन्दगी है । जिंदगी में हम एक मिनट और क्षण के लिए भी हम शरीअत से मुक्त नहीं हैं, हर समय अल्लाह के आदेश और हजरत मुहम्मद सल्ल0 की शिक्षाओं, सहाबा, और बुजुर्गों के पवित्र तरीके के पाबंद हैं। इन विचारों को जमीअत उलमा के प्रदेश अध्यक्ष मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक उसामा क़ासमी कार्यवाहक काजी ए शहर कानपुर ने नमाज़ जुमा से पहले बड़ी संख्या में आए नमाज़ियों के सामने व्यक्त किया। मौलाना ने बयान में कहा कि दुनिया किस रुख पर जा रही है इससे इस्लाम का कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि अदालत में बैठे न्यायधीश कानून के पाबन्द हैं, वह भी कानून से परे नहीं हैं और मुस्लिम पर्सनल ला भारत के कानून का हिस्सा है, न्यायाधीशों को भी अधिकार नहीं है कि वह कानून को बदल दें और उन्होंने सख्त अंदाज में आगे कहा कि सरकारें भी अपनी औकात में रहे और इस्लामी शरीअत में हस्तक्षेप की कोशिश भी न करें। इस मौके पर मौलाना ने मुसलमानों से कहा कि वह भी शैतान के कामों को छोड़कर अल्लाह और रसूल अल्लाह के मानने वाले हो जाएँ। अपनी कमियों की समीक्षा करें, गुनाहों पर तौबा करके अपने घर और समाज को सुधारें। घरों में नबी स0अ0व0 का तरीक़ा लाएँ। इस के साथ ही कहा कि हमें सरकारों को कोसने पहले अपना, अपने घर और समाज का जायजा लेना होगा, हक़ीक़त को मानना पड़ेगा। मौलाना ने कहा कि सारे इंसानों का मानवीय अधिकार देना ही बन्दगी(इबादत) है। शौहर के जिम्मे जो हक पत्नी के हैं वह अदा करें वैसे ही पत्नी के जिम्मे जो हक़ पति का है वह भी अदा करे। माता-पिता अपनी औलाद, औलादें अपने माता पिता और भाई बहनों के हक़ अदा करें। मजहब इस्लाम ने पड़ोसियों और देशवासियों तक के हक़ को अदा करने की जिम्मेदारी हम को दी है जिसके बारे में ज्यादातर लोगों मालूम ही नहीं और वह नकारात्मक सोच के शिकार हो जाते हैं, हमें इसे उलेमा से संपर्क करके जानना चाहिए। अपनी जीवन की समीक्षा करें कि हम खड़े कहाँ हैं? क्या हम इस्लामी शरीअत के अनुसार चल रहे हैं? अगर नहीं चल रहे हैं तो पहले अपने को संभालें फिर दुनिया को कहें कि तुम इस्लाम पर उंगली मत उठाओ और उसके खिलाफ किसी भी तरह का फैसला करने से पहले दस नहीं बल्कि हजार बार सोच लो कि इसका अंजाम क्या होगा। वैवाहिक जीवन भी इबादत वाला जीवन है, लड़का भी अल्लाह का बंदा है और लड़की भी अल्लाह की बंदी, दो शब्द बोल कर जो अब तक अजनबी थी सबसे करीबी हो गए, और दुर्भाग्य से दोनों केवल दो शब्द ही बोल कर फिर अजनबी हो गए, इसलिए शादी कितनी बड़ी जिम्मेदारी और तलाक कितना खतरनाक काम है इसे समझना होगा। आज दो शब्द बोल कर दुनिया में तो अलग हो गया लेकिन मरने के बाद उसे यह सोचना होगा कि क्यों अलग किया ? उसका जुर्म क्या था? वह कौन से काम थे जिनके आधार पर इतना बड़ा फैसला लेना पड़ा, हम ईमान वाले और नबी के उम्मती और कुरान को पढ़ने वाले थे जिसमें लिखा है कि अन्याय हराम है और अल्लाह अत्याचारियों को पसंद नहीं करता। आपने अपनी पत्नी पर यह धब्बा क्यों लगाया अगर कोई उचित कारण होगा तो बच कर निकल जाएंगे वरना दुनिया में तो अपनी चौधराहट दिखाकर बच जाएंगे लेकिन अल्लाह के पास कोई बच नहीं पाएगा। बुद्धिमान मनुष्य वही है जो यहीं मामला साफ कर ले वरना अल्लाह के पास सबको जाना है कोई बड़े से बड़ा पहलवान भी इनकार नहीं कर सकता। इसलिए अगर हमारे अंदर कमियां आ गई हैं तो अल्लाह ने ‘‘ तौबा’’ दिया है कि हम अपने पापों की माफी मांग सके और अगर किसी के साथ गलत किया है तो उससे अपना मामला साफ कर लें । आखिर में मौलाना ने कहा कि हम अपने मकान, दुकान और कारोबार अर्थात हर जगह अल्लाह के सच्चे बन्दे बनकर शरीअत को मानने वाले हो जाएं और अपने पूरे माहौल को इस्लामी सांचे में ढालने की कोशिश करें फिर कोई हमारे ऊपर उंगली उठाने वाला नहीं होगा।