राष्ट्रीय पुस्तक मेले ‘गागर में सागर’ में मन की पुस्तकें तलाश रहे हैं कद्रदान
लखनऊ. मोतीमहल लॉन में 14 अक्टूबर को शुरू हुए राष्ट्रीय पुस्तक मेले ‘गागर में सागर’ में आज सन्डे की छुट्टी का असर देखने को मिला. लोग थोड़ा देर से घरों से निकले लेकिन हाल में ही खत्म हुए एक पुस्तक मेले के बावजूद यह अहसास हुआ कि लोगों की पुस्तकों के प्रति दिलचस्पी बहुत ज्यादा है.
गागर में सागर में हर वर्ग की पसंद की पुस्तकें मौजूद हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय ने भी इस पुस्तक मेले में अपना स्टाल लगाया है. इस स्टाल पर छात्रों को तमाम प्रतियोगिताओं से सम्बंधित वह पुस्तकें आसानी से मिल जायेंगी जो बाज़ार में आसानी से उपलब्ध नहीं होती हैं. नो प्राफिट नो लॉस के सिद्धांत पर चलने वाले इस स्टाल पर छात्रों को 15 फीसदी की छूट दी जा रही है. इस स्टाल पर कृषि पत्रकारिता पर भी पुस्तक है और गांधी का पंचायती राज का सिद्धांत भी समझना हो तो यह स्टाल मुफीद है. हिन्दी-उर्दू-अंग्रेज़ी शब्दकोष और बिजनेस लॉ की किताबें भी यहाँ मौजूद हैं.
गागर में सागर में सूफियों से सम्बंधित पुस्तकें भी आसानी से उपलब्ध हैं. संत दादू, रसखान, अमीर खुसरो, बुल्लेशाह, महावीर, मालिक मोहम्मद जायसी, कबीर, मीरा, दयानन्द सरस्वती, सूरदास, तुलसीदास, गुरुनानक, गुरु तेग बहादुर सिंह और रज्जब की पुस्तकें भी पाठकों के आकर्षण का केन्द्र बन रही हैं.
इस राष्ट्रीय पुस्तक मेले में कानपुर के अमन प्रकाशन ने हिन्दी के श्रेष्ठ साहित्यकारों की चुनी हुई कहानियाँ पेश की हैं. यहाँ पर विष्णु प्रभाकर, महीप सिंह, अमरेन्द्र मिश्र, नासिरा शर्मा, विशम्भर नाथ शर्मा कौशिक जैसे रचनाकारों की रचनाएं मौजूद हैं. इस स्टाल पर महेन्द्र भीष्म की नव प्रकाशित पुस्तक मैं पायल सबके आकर्षण का केन्द्र बनी है. लखनऊ की चिर परिचित किन्नर पायल के जीवन के संघर्ष की कहानी है यह पुस्तक. यहाँ पर अरुणा त्रिवेदी की पुस्तक रामायण समु की कसौटी पर भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र है.
राष्ट्रीय पुस्तक मेले गागर में सागर में एक तरफ पुस्तकों का आकर्षण है तो दूसरी तरफ मुख्य पंडाल में चल रही गतिविधियों की तरफ भी लोग आकर्षित हैं. आज यहाँ मनसा पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित वजाहत अली संदील्वी की हास्य-व्यंग्य पुस्तक ‘फ़सादी चाचा’ का लोकार्पण समारोह भी हुआ. राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष नवीन चन्द्र वाजपेयी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए इस लोकार्पण समारोह में हिन्दी संस्थान के अध्यक्ष डॉ. उदय प्रताप सिंह, डॉ. रमेश दीक्षित, वीरेन्द्र यादव, डॉ. सबीहा अनवर और डॉ. मनसा पाण्डेय ने अपने विचार व्यक्त किये.
पुस्तक मेले में आज डॉ. शेफाली भटनागर की पुस्तक कला संवाद का भी लोकार्पण संपन्न हुआ. डॉ. भीम राव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से एसोसियेट प्रोफ़ेसर पद से सेवा निवृत्त हुई डॉ. शेफाली लम्बे समय तक अध्यापन करने के बावजूद न तो अपनी कला साधना से दूर हो पाईं और न ही उन्होंने कला पर लेखन ही बंद किया. राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में भी उनकी भागीदारी लगातार बनी रही. आज उनकी पुस्तक का विमोचन हुआ तो आर्ट्स कालेज के पूर्व प्राचार्य और पप्रसिद्ध कला मर्मज्ञ प्रो. जय कृष्ण अग्रवाल, इतिहासकार योगेश प्रवीण और जी.बी. पटनायक लोकार्पण के लिए मौजूद थे.
राष्ट्रीय पुस्तक मेले के मुख्य पंडाल में आज अंशु टंडन लिखित नाटकों की श्रंखला पर चर्चा हुई. वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी की अध्यक्षता में हुई इस परिचर्चा में रंगकर्मी श्रीमती चित्रा मोहन, शायर मनीष शुक्ल ने अपने विचार व्यक्त किये. चित्रा मोहन ने कहा कि एतिहासिक और प्रख्यात चरित्रों को आज की अपनी काल्पनिक ज़मीन पर विकसित किया. मनीष शुक्ल ने कहा कि मंटो, कबीर और तुलसी साहित्य का वह स्तम्भ हैं जिन्हें हटा दिया जाए तो साहित्य भरभरा कर गिर पड़ेगा. लेखक ने मन में उठी वेदना को सामजिक संवेदना की ओर मोड़ने के लिए इन चरित्रों का सहारा लिया.
नवीन जोशी ने कहा कि मंटो की कहानी टोबा टेक सिंह एक भारी उद्घोषणा है. न बिशन सिंह को पकिस्तान स्वीकार है न हिन्दुस्तान. सामाजिक समस्याओं को समूल उखाड़ फेंकने के लिए कबीर, तुलसी और मंटो का पुनर्पाठ है. राष्ट्रीय पुस्तक मेले कानपुर से आई कवित्रियों का कविता व कहानी पाठ नारी शक्ति पर केन्द्रित रहा. इस कार्यक्रम को लोगों ने बड़े मनोयोग से देखा.