मोदी का लखनऊ में दशहरा कार्यक्रम चुनावी स्वार्थ से प्रेरित कदम: मायावती
लखनऊ: बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने प्रधानमंत्री मोदी के लखनऊ में दशहरा मेले में शामिल होने को राजनीति और चुनावी स्वार्थ से प्रेरित कदम बताया। मायावती ने कहा कि मोदी के भाषण में पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर सेना की तारीफ में एक शब्द भी नहीं कहना बड़े दुख की बात है। मोदी रामलीला में शामिल होकर जो राजनीतिक और चुनावी संदेश देना चाहते थे, वह रामलीला मैदान के आस-पास लगे बड़े-बड़े पोस्टर, बैनर और होर्डिग में सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता के लिये सेना के बजाय उन्हें श्रेय देने की इबारतों से जाहिर था। यह ग़लत है और पार्टी की गलत नीयत को दर्शाता है।
मायावती ने आज यहाँ जारी एक बयान में कहा कि पूरे देश के लोगों को अवश्य ही बहुत अच्छा लगता अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘‘सर्जिकल स्ट्राइक‘‘ के लिये सुनियोजित तौर पर दूसरों से अपनी प्रशंसा करवाते रहने का शौक पालने के बजाय प्रतिपक्षी पार्टियों की तरह ही सीधे अपने मुँह से यहाँ उस सेना की प्रशंसा करते, जिन्होंने सरहद की सलामती का काफी कठिन ज़िम्मा अपने सर पर लिया हुआ है और जिन्होंने अपनी जान को हथेली पर रखकर नियन्त्रण रेखा के उस पार जाकर पाकिस्तान में आतंकी कैम्पों को तबाह किया व उन्हें काफी हताहत किया।
साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐशबाग रामलीला में शामिल होकर जो राजनीतिक व चुनावी संदेश देना चाहते थे वह इससे भी स्पष्ट था कि रामलीला मैदान के आस-पास जो बड़े-बड़े पोस्टर, बैनर व होर्डिंग आदि लगाये गये थे वे सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता के लिये सेना के बजाय उन्हें ही ज्यादातर श्रेय दे रहे थे, जो कि ग़लत है व पार्टी की गलत नीयत को दर्शाता हैं। इस अवसर पर अपनी तीर का निशाना बार-बार चूकने वाले प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अपने व अपनी पार्टी के लोगों के भीतर की आत्म-प्रशंसा की अभिलाषा व चुनावी स्वार्थ जैसे बुराई को नहीं रोक पाये और उनका उपदेश लोगां के दिलों में स्वाभाविक तौर पर बेअसर रहा।
इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कल के भाषण के सम्बन्ध में बी.एस.पी. का यही कहना है कि युद्ध से बुद्ध के रास्तों पर जाने के बजाय बेहतर होगा कि अपना देश व पूरी दुनिया पहले ही बुद्ध के रास्तों पर चलने का पूरा-पूरा सही प्रयास करे ताकि फिर युद्ध करने की जरूरत ही ना पड़े। गौतम बुद्ध का सन्देश सम्पूर्ण मानवता के लिये है और उसी के हिसाब से कर्म करने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। कर्म को ही धर्म बनायें, उपदेशों से देश व समाज की तकदीर संवरने वाली नहीं है।
सामाजिक बुराइयों से लड़ने की इस मानवतावादी व संवैधानिक कर्तव्यों को निभाने के लिये सूखे उपदेश नहीं बल्कि सरकारों के पास दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है, जो कि खासकर भाजपा की सरकारों के पास नहीं है, और यदि इनके पास दृढ़ इच्छाशक्ति होती, तो फिर गुजरात का बर्बर दलित ऊना काण्ड, हरियाणा का मेवात बिरयानी बलात्कार काण्ड, श्री रोहित वेमुला काण्ड, मरी गाय नहीं उठाने पर गुजरात का बनासकाँठा दलित उत्पीड़न काण्ड, दादरी काण्ड, दयाशंकर सिंह काण्ड आदि नहीं होता तथा गौरक्षा, लव-जेहाद, धर्म परिवर्तन, हिन्दू संस्कृति, हिन्दू धर्म व हिन्दू राष्ट्र आदि के नाम पर भी लोगों को ताण्डव करने की छूट नहीं मिली होती।
मायावती ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में व्याप्त जातिवाद व अन्य सामाजिक बुराइयों को भी समाप्त करने के लिये आयेदिन केवल किस्म-किस्म की जुमलेबाजी करते रहते हैं, परन्तु उससे थोड़ा भी काम चलने वाला नहीं है, बल्कि इसके लिये परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर द्वारा बताये हुये रास्तों पर सही नीयत व नीति के साथ काम करना होगा। इन मामलों में अपनी कथनी व करनी में अन्तर को खत्म करने की जरूरत है ताकि देश की विशाल आबादी रखने वाले उन करोड़ों शोषितों, पीड़ितों, उपेक्षितों का, संविधान की असली मंशा के अनुसार, भला हो सके। इस मामले में खासकर जातिवादी शोषण व उत्पीड़न को रोकने के लिये केन्द्र व राज्य सरकारों को भरपूर सरकारी शक्ति का भी प्रदर्शन करना होगा व साथ ही लोगों को कानून का सम्मान करने की जबर्दस्त सीख देनी होगी।