अपनी अलग परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध है सुल्तानपुर की दुर्गापूजा
सुल्तानपुर: उत्तर-प्रदेश के सुल्तानपुर की ऐतिहासिक एवम् अनूठी दुर्गापूजा महोत्सव देश भर से अलग परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध है। सांप्रदायिक सौहार्द्र अौर सद्भावना की मिसाल और देश भर से अनूठी परम्पराओं वाली दूर्गापूजा महोत्सव में एक तरफ जहां मोहर्रम की मजलिसों में सदाये गूँज रहीं है वहीं दूसरी तरफ भव्य दुर्गाजी के पंडाल में जयकारों के बीच आरती-पूजन हो रहा है। यही नहीं दुर्गा पूजा महोत्सव में मुस्लिमों की सक्रिय भागीदारी देखने को भी मिलती है जो सद्भावना और सांप्रदायिकता की एक बेहतर मिसाल है। यहां की अनूठी दुर्गापूजा का जोरदार आगाज सद्भावनापूर्ण माहौल में विजयादशमी (दशहरा) से होगा। विजयादशमी को जब देश भर में दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन हो जाता है। उसी दिन से सुल्तानपुर में दुर्गापूजा महोत्सव की शुरुआत होती है।
पूर्णिमा की शाम को भव्य शुभारम्भ के साथ करीब 170 दुर्गा प्रतिमाओं की सामूहिक झॉकियाँ निकलती है। जिसमें विभिन्न प्रदेशों एवं जिलों की नाट्य झाकियाँ एवं बैण्डपार्टियॉ शामिल होती है। जिनके सुर और लय पर दुर्गाभक्त बिना थके करीब 48 घण्टे तक नाचते- थिरकते रहते है। करीब 48 घण्टे तक अनवरत चलने वाली शोभायात्रा नगर के विभिन्न मार्गो से होकर करीब 36 घंटे बाद पहली दुर्गा प्रतिमा आदि गंगा गोमती के पावन तट सीताकुंड घाट पर पहुँचती है। जिसका विसर्जन करीब 12 घंटे लगातार तक चलता है। इस व्यवस्था में लगे सुरक्षा कर्मी, चिकित्सा टीम और प्रशासनिक अधिकारी इस लम्बे समय से थक जाते है किन्तु मां दुर्गा के भक्तों का जज्बा और भक्ति देखने लायक होता है। दुर्गापूजा महोत्सव में प्रतिदिन शहर तथा आसपास के जिलों से लाखो दर्शनार्थी आते है। जिनके रहने, खाने, चिकित्सा और सुविधाओं का ध्यान समाजसेवी तथा स्वयं सेवी संस्थाये रखती हैं। इनमें मुस्लिम भाइयों की भागीदारी उल्लेखनीय है। कई पूजा समितियों में मुस्लिम बंधु पदाधिकारी तथा सदस्य है।