शीला दीक्षित से बेहतर हो सकता है बतौर सीएम राहुल गांधी का चेहरा
रविश अहमद
बेबाक किन्तु सभ्य टिप्पणियां, बात मुद्दों पर आधारित एवं सटीक, बातें तमाम विकास पर केन्द्रित एवं आधुनिक समाज के साथ संस्कृति को सहेज कर रखने की सोच, गरीबों दलितों के साथ समानता का संदेश एवं युवा आशावादी विचारधारा से ओतप्रोत व्यक्तित्व यें सब वें बिन्दु हैं जो राहुल गांधी को एक आशावादी युवा केन्द्रीय नेतृत्व क्षमता वाला भविष्य का राजनीतिज्ञ साबित करते हैं किन्तु बीच-बीच में राहुल का अदृश्य हो जाना, कभी अज्ञातवास में चले जाना जनता को आशंकित करता है कि राहुल का पूर्ण नेतृत्व उन्हे मिल पायेगा। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में अभी तक की तमाम सरकारों को कहीं पीछे छोड़ते हुए अखिलेश यादव की सरकार द्वारा जो बम्पर विकास कार्य कराये गये हैं तथा जिस प्रकार चुनावी मैनीफैस्टो को पूर्णतः लागू करने से भी आगे निकलते हुए योजनाओं को अमली जामा पहनाया गया इससे भी राहुल गांधी के समक्ष एक बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश में स्वयं अखिलेश यादव हैं।
राहुल गांधी के अभी तक सफल न होने का यह एक बड़ा कारण है। साथ ही साथ पूर्ववर्ती यूपीए सरकारों में अथवा उससे पूर्व की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकारों में अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म व ज़्यादती और भ्रष्टाचार की जो स्याह दास्तानें लिखी गयी, उसका भी कांग्रेस युवराज राहुल गांधी के असफल रहने में महत्वपूर्ण योगदान है।
फिर भी कांग्रेस पार्टी द्वारा अभी तक जितनी रैलियां, जनसभाएं अथवा आयोजन राहुल गांधी के नेतृत्व में किये गये वें अधिकतर सफलतम आयोजनों की श्रेणी में शुमार करते हैं। राहुल गांधी सभ्य भाषा में विपक्षियों पर कटाक्ष एवं टिप्पणियां करते हैं, विकास से सम्बन्धित उनकी सोच युवा वर्ग सराहने के साथ-साथ स्वीकार भी करता है।
उत्तर प्रदेश में राहुल का रोड षो और खाट सभाएं अन्य कांग्रेसी दिग्गजों की अपेक्षा अधिक सफल हो रहे हैं किन्तु शीला दीक्षित यहां कोई प्रभाव बना पायेगीं इसमें कोई संशय ही है। शीला दीक्षित दिल्ली की तर्ज पर विकास कराने का दावा कर रही हैं जबकि शीला दीक्षित की आम छवि एक पिछड़ी एवं भ्रष्टाचार में लिप्त सरकार की मुख्यमंत्री की है। शीला दीक्षित के मुख्यमंत्रित्व काल में दिल्ली में बटला हाऊस काण्ड हुआ जिसमें यूपी के छात्रों को पुलिस द्वारा एन्काउन्टर कर उन्हे आतंकवादी बताया गया था इसके अलावा पानी वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार पर अभी हाल ही में तत्कालीन मुख्यमंत्री के तौर पर शीला दीक्षित के विरूद्व मुकदमा कायम कराया गया है। कॉमनवेल्थ गेम्स का खेलगांव घोटाला और अंततः सरकार जाते-जाते दामिनी काण्ड ऐसे काले धब्बे हैं जो उनकी सफेद साड़ी को स्याह किये हुए हैं। ऐसे में शीला दीक्षित द्वारा विकास की बात करना बेमानी है, कानून व्यवस्था को लेकर उनका गुस्सा बनावटी है तथा भ्रष्टाचार पर हंगामा फिज़ूल है लिहाज़ा शीला दीक्षित किसी भी रूप में उत्तर प्रदेश के लिये पूरी तरह अयोग्य उम्मीदवार हैं।
जहां तक राहुल गांधी का सवाल है वह स्वयं आज तक न तो किसी सरकार में निजी रूप से शामिल रहे हैं, और न ही उनके द्वारा किसी भ्रष्टाचारी से सम्बन्ध उजागर हुए हैं। राहुल गांधी अभी तक अन्यों के मुकाबले अधिक प्रिय चेहरा हैं तथा निर्विवादित रूप से बेदाग़ छवि के स्वामी भी हैं। ऐसे में यदि कांग्रेस पार्टी द्वारा राहुल गांधी को उत्तर प्रदेष में बतौर सी.एम. कैण्डिडेट प्रोजेक्ट किया जाये तो उम्मीद से बेहतर परिणाम सामने आ सकने की गुंजाईष है। विशेषतः सर्वे द्वारा घोषित 5 से 13 विधायकों से आंकड़ा कहीं ऊपर जा सकता है। वैसे तो कांग्रेस पार्टी हर चुनाव में एवं लगभग हर राज्य में राहुल गांधी को प्रमुख प्रचारक के रूप में इस्तेमाल करती रही है किन्तु उन्हे यूपी में बतौर सी.एम. प्रत्याषी घोषित करना कांग्रेस के लिये शायद संजीवनी का काम कर सके।