देश के सुरक्षित भविष्य के लिए बाल अधिकारों को मजबूत करना ज़रूरी: जस्टिस सहाय
एमिटी लॉ स्कूल में बाल अधिकार पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
लखनऊ: एक कहावत है कि, बच्चे इंसान के पिता हैं, इस नजरिए से बच्चे ही देश और हमारा भविष्य हैं। अगर हमें देश का भविष्य बनाना है तो पहले देश के बच्चों का भविष्य सुरक्षित बनाना होगा। इसके लिए जरुरी है कि, हम बाल अधिकारों को प्रोत्साहित करें और उन्हें प्रभावी बनाएं।
उक्त विचार इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्वासीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विष्णु सहाय ने एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर में आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में छात्रों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। श्री सहाय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। ‘बाल अधिकार और भारत का भविष्य’ विषयक इस संगोष्ठी का आयोजन एमिटी ला स्कूल द्वारा किया गया था।
संगोष्ठी में अपने अभिभाषण के दौरान न्यायमूर्ति विष्णु सहाय ने कहा कि, भरतीय संविधान में दी गई अनुच्छेद 24 की व्यवस्था बाल अधिकार का मजबूत हथियार है। उन्होंने बताया कि, अपने कार्यकाल के दौरान अनुच्छेद 24 का प्रयोग करते हुए रोमन सर्कस में बच्चों को खतरनाक कामों में लगाए जाने को रोका था। उन्होने कहा कि, यदि कानूनों का समुचित जानकारी के साथ प्रयोग किया जाय तो बाल अधिकारों के हनन को रोका जा सकता है। श्री सहाय ने बाल अधिकारों के प्रति आशावादी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि, निराशावादी होकर मरने से अच्छा है कि, हम आशावादी बनें और अपना सर्वश्रेष्ठ समाज को दें।
इसके पूर्व मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति विष्णु सहाय ने दीप प्रज्जवलित कर संगोष्ठी का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रुप में राज्य बाल अधिकार आयोग की अध्यक्षा जूही सिंह, एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर के प्रति कुलपति सेवानिवृत्त मेजर जनरल केके ओहरी (एवीएसएम), उप-महानिदेशक एमिटी विवि. लखनऊ परिसर, नरेश चंद्र एवं एमिटी लॉ स्कूल की उप-निदेशिका डा. संगीता लाहा उपस्थित रहीं।
बतौर मुख्य वक्ता संगोष्ठी को संबोधित करते हुए जूही सिंह ने कहा कि, जहां 69 मिलियन बच्चे पांच वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही काल का ग्रास बन जाते हों, जहां 167 मिलियन अत्यंत गरीब बच्चों को गरीबी की वजह से निरक्षर रहना पड़ता हो वहां बाल अधिकार की बात समसामयिक और गंभीर चर्चा का विषय होने के साथ ही एक पेचीदा विषय भी है। उन्होने कहा कि, आज बच्चों को सुरक्षित भविष्य देने के लिए हमें रोज नये सिरे से प्रयास करने और सोचने की आवश्यकता है।
अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए उप-महानिदेशक, एमिटी विवि. लखनऊ परिसर, नरेश चंद्र ने कहा कि, बाल अधिकार न केवल आज के भारत की अपितु विश्व की सबसे ज्वलंत चिंताओं में से एक है। हम अपने रोजमर्रा के जीवन में अक्सर बाल अधिकारों का हनन होते देखते हैं और चुप रह जाते हैं, यह बाल अधिकारों को मजबूत करने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। उन्होनें कहा कि, सैकड़ों सालों की गुलामी ने हमारे देश का बहुत नुकसान किया। इसने जहां हमें दास मानसिकता में जकड़ दिया वहीं देश को निरक्षरता के गर्त में धकेला। निरक्षरता गरीबी के साथ कई अन्य विषमताओं की भी जननी है। इसी निरक्षरता ने बाल अधिकारों के हनन को बढ़ावा दिया। उन्होनें आशा जताई कि, संगोष्ठी में होने वाली चर्चा से अवश्य ही इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलेगें। संगोष्ठी में अतिथियों ने सेमिनार पुस्तिका का विमोचन भी किया।
संगोष्ठी में दो तकनीकि सत्रों आपराधिक न्याय व्यवस्था और बाल अधिकारों के प्रति संवैधानिक दृष्टिकोंण का भी आयोजन किया भी किया गया था। इन सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर विवि. की प्रोफेसर प्रीति मिश्रा, और लखनऊ विवि. के एसोशिएट प्रोफेसर डा. सीपी सिंह ने की। इन दोनों सत्रों के दौरान देश और विदेश से आए एक सैकड़ा प्रतिभागियों द्वारा लगभग 60 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए।