प्रासंगिक विषयों पर लिखने में चिन्तन की आवश्यकता होती है
राज्यपाल ने हृदय नारायण दीक्षित की पुस्तक ‘सोचने की भारतीय दृष्टि’ का विमोचन किया
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज हिन्दी संस्थान में आयोजित एक कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार, नेता एवं पूर्व मंत्री, हृदय नारायण दीक्षित की पुस्तक ‘सोचने की भारतीय दृष्टि’ का विमोचन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व सांसद, लालजी टण्डन ने तथा संचालन पवन पुत्र बादल ने किया। विषय प्रवर्तन साहित्यकार, डा0 राम नरेश यादव द्वारा किया गया।
राज्यपाल ने इस अवसर पर अपने सम्बोधन में कहा कि हृदय नारायण दीक्षित पत्रकार, साहित्यकार, राजनेता और विभिन्न अन्य भूमिकाओं में काम करते हैं। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है। सरल भाषा में लिखना मुश्किल होता है, मगर दीक्षित गम्भीर विषय को भी बड़ी सहजता से करते है। उन्होंने कहा कि प्रासंगिक विषयों पर लिखने में चिन्तन की आवश्यकता होती है।
श्री नाईक ने कहा कि श्री दीक्षित द्वारा लिखित यह 23वीं किताब है। वे विद्वान के साथ-साथ अनुभवी भी हैं। किसी बात की जानकारी उनको प्राप्त करनी हो, वह अवश्य मिल जाती है, क्योंकि वे निरन्तर अध्ययन करते रहते हैं। लेखक के लिये नियोजन जैसी कोई शर्त नहीं ह,ै हां पाठक पढ़े यही शर्त मायने रखती है। उन्होंने कहा कि वाचक पुस्तक खरीद कर पढ़े।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व सांसद, श्री लालजी टण्डन ने कहा कि भारतीय चिन्तन की दिशा बहुत व्यापक है। उन्होंने कहा कि विश्व में जब कहीं चिन्तन नहीं था तब भी भारत में चिन्तन था।
श्री हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि सोचना मनुष्य का स्वभाव है। भारत में अलग-अलग विचारधाराओं के बावजूद समग्रता है। उन्होंने कहा कि सोचने की वृत्ति के कई आयाम होते हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की दृष्टि हमारी दृष्टि बने तो दुनिया का कोई विचार हमें पराजित नहीं कर सकता।