युद्ध नहीं, समाधान चाहिए
रिहाई मंच ने गांधी प्रतिमा पर दिया धरना
लखनऊ : उरी हमले के बाद से देश में जो युद्धोन्माद का माहौल निर्मित किया जा रहा है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार देश को युद्ध में झोंकने की तैयारी कर रही है। शासकों को युद्ध से फायदा हो सकता है किंतु कोई भी युद्ध आम जनता के हित में नहीं होता। भारत-पाकिस्तान युद्ध तो कतई नहीं हो सकता क्योंकि दोनों देशों के पास परमाणु शस्त्र हैं। जो लोग युद्ध की बात कर रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या वे दोनों देशों में कई शहरों को हिरोशिमा-नागासाकी में तब्दील होते देखना चाहते हैं? युद्ध की बात करना भी पागलपन है। भारत पाकिस्तान के बीच चार युद्ध हो चुके हैं। उनसे समस्या का कोई समाधान तो निकला नहीं। न ही कोई युद्ध ऐसा निर्णायक ही रहा कि आगे युद्ध की जरूरत न पड़े। यानी युद्ध से समाधान निकलने की सम्भावना क्षीण ही है। फिर युद्ध से क्या लाभ?
युद्ध की वजह कश्मीर समस्या का हल निकालने की जरूरत है ताकि भविष्य में न तो कोई भारतीय सैनिक शहीद हो और न ही कश्मीर का कोई नागरिक। सरकार की यह जिम्मेदारी है कि कश्मीर में माहौल सामान्य बनाए और पाकिस्तान के साथ वार्ता करे ताकि कोई स्थाई समाधान जो कश्मीर के लोगों को मंजूर हो निकाला जा सका। यह ठीक है कि हमारे सैनिक बहुत बहादुर हैं और वे देश के लिए हर वक्त कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते हैं किंतु उनकी जान कीमती है, खासकर उनके परिवार वालों के लिए। हमें उन्हें अनावश्यक नहीं मरने देना चाहिए। सरकार की नीतियां ही तय करती हैं कि सैनिक कितने सुरक्षित रहेंगे।
नरेन्द्र मोदी की सरकार को आए अभी दो वर्ष ही हुए हैं और भारत पर दो आतंकी हमले हो चुके। जम्मू व कश्मीर में भाजपा की गठबंधन सरकार है और आजादी के बाद से जम्मू व कश्मीर में सबसे खराब हालात हैं। आखिर क्या बात है कि भाजपा की सरकार आने के बाद से कश्मीर के अंदर और भारत की सीमा पर स्थिति ज्यादा तनावपूर्ण हो गई। इसमें कहीं भारतीय जनता पार्टी के नजरिए व उनके तरीके का दोष तो नहीं? इस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों को आत्मचिंतन करने की जरूरत है।
अभी तक भारत सरकार कश्मीर के मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीकरण करने से बच रही थी। किंतु बलूचिस्तान का मुद्दा उठा कर भारत खुद ही इस मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण कर रहा है। भारत को बलूचिस्तान का मुद्दा उठाने का पूरा हक है किंतु हमारी प्राथमिकता कश्मीर होनी चाहिए। यदि कश्मीर में दो माह में 80 के ऊपर लोग मर जाते हैं और हमें अपने ही नागरिकों पर छर्रे के बौछार वाली बंदूको का इस्तेमाल करना पड़ता है जिससे बच्चों तक की जानें चली जाती हैं या लोग अंधे हो जाते हैं तो यह दुनिया में कोई अच्छा संदेश नहीं देता है। भारत सरकार कश्मीर में होने वाली हरेक घटना के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराती है। यह सच है कि पाकिस्तान कई कश्मीरी नवजवानों को आतंकवादी प्रशिक्षण देता है किंतु जब कश्मीर के बच्चे और महिलाएं भी सुरक्षा बलों के सामने पत्थर लेकर खड़े हो जाते हैं तो वह हमारी नीतियों का दोष है। बिना अपने घर को ठीक किए बाहर वाले को दोष देने से भारत की विश्वसनीयता नहीं बनेगी।
भारत पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र के रूप में चिन्हित करवाना चाहता है। किंतु अमरीका की भूमिका पर हम कोई सवाल नहीं उठाते। मुम्बई हमले में एक अमरीकी डेविड हैडली की भूमिका की बात क्यों नहीं की जाती? आखिर अमरीका पाकिस्तान को आज भी क्यों हथियार मुहैया करा रहा है? यदि हम पाकिस्तान के खिलाफ पूर्वाग्रह के कारण अन्य कारणों को नजरअंदाज करेंगे तो आतंकवाद थमने वाला नहीं।
हम मांग करते हैं कि सरकार युद्ध की बात करना बंद कर कशमीर की समस्या का स्थाई हल ढूढ़ने की दिशा में पहल करे। तब तक के लिए अपनी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करे ताकि देश में बार-बार घुसपैठ न हो।
हमें युद्ध नहीं, समाधान चाहिए इस बात को लेकर 23 सितम्बर, 2016, शुक्रवार को गांधी प्रतिमा, हजरतगंज, लखनऊ पर शाम साढ़े चार से छह बजे तक एक प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इसमें संदीप पाण्डेय, प्रो0 रमेश दिक्षित, अमित अम्बेडकर, शकील कुरैशी, राजीव यादव, अनिल यादव, किरन सिंह, अतहर हुसैन, केके वत्स, डा0 राघवेन्द्र प्रताप सिंह, रवीन्द्र कुमार, एएम नकवी, जनचेतना से लाल चन्द्र, रिफत फातिमा, शम्स तबरेज खान, राबिन वर्मा, विनोद यादव, लक्ष्मण प्रसाद, लवलेश चैधरी, असगर मेंहदी, डा0 अली अहमद कासमी, शरद पटेल, प्रवीण श्रीवास्तव, योगेश कुमार पाण्डेय, जय प्रकाश, आदि ने भाग लिया।