मौजूदा दौर में बाजार पर माॅनसून का महत्वपूर्ण स्थान है। विगत दो वर्षों में माॅनसून सामान्य से कम रहने के कारण जहां बाजार में उठा पठक हुई वहीं इस बार माॅनसून के सामान्य से अधिक रहने के कारण वर्ष 2016-17 में आय वृद्धि दर 12-14 प्रतिशत और 2017-18 में 17-18 प्रतिशत रह सकती है। कैसा होगा बाजार का स्वरूप और गति इसे लेकर पेश हैं यूटीआई म्युच्युअल फण्ड के ईवीपी संजय डोंगरे की अपेक्षाएं, सलाह और निवेश नीति
आर्थिक विशलेषकों की मानें तो, अधिकांश लोग इस वर्ष सकल विकास दर (जीडीपी वृद्धि) पिछले साल से 0.10-0.20 प्रतिशत अंक ऊपर रहने और वर्ष 2016-17 में 8 प्रतिशत पहुंचने की उम्मीद कर रहे हैं। दो साल तक कमजोर माॅनसून की एक प्रमुख भूमिका रहने वाली है। दो साल तक कमजोर माॅनसून के बाद इस साल माॅनसून सामान्य से बेहतर लग रहा है। हमारी अर्थ व्यवस्था में 60-65 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों के हैं। माॅनसून बेहतर रहने से ग्रामीण क्षेत्रों में खपत में वृद्धि जिसका सीधा असर शहरी बाजारों पर पड़ेगा।
अगर हम निवेश या पूंजीगत खर्च को देखें तो निजी क्षेत्र अर्थव्यवस्था में नया निवेश करने में अनिच्छुक हैं, क्योंकि अभी क्षमता उपयोग का स्तर 72-74 प्रतिशत के आसपास चल रहा है। ऐसी स्थिति में निजी क्षेत्र नई क्षमता स्थापित करना नहीं चाह रहा है। इसके कारण (विकास दर बढ़ाने की) सारी जिम्मेदारी सरकार के कंधों पर टिकी है। पिछले एक दो वर्षों में सरकार ने बुनियादी ढांचा विकास पर पैसा खर्च किया है, जैसे कि सड़के, शहरी बुनियादी ढांचा, रेलवे वगैरह। इसका असर कुछ आंकड़ों मे ंझलक भी रहा है।
समग्र अर्थव्यवस्था के आंकडे़ पिछले एक दो वर्षों में अच्छे रहे हैं, खास कर कम ब्याज दर, कम महंगाई दर, और कम चालू खाता घाटा आदि के संदर्भ में। अभी जीडीपी में वृद्धि दिखनी शुरू हुई है। अगर आप पिछले 6-7 महीनों के कुछ खास संकेतक देखंेगे तो व्यावसायिक वाहनों की बिक्री 15-20 प्रतिशत की दर से बढ़ने लगी है। इन वाहनों की बिक्री तभी बढ़ती है, जब समानों की आवाजाही बढ़ती है। पेट्रोल और डीजल की खपत पिछले 9-10 महीनों में दो अंको में बढ़ रही है। इसका मतलब है कि औद्योगिक गतिविधियां बढ़ रही है। औद्योगिक उत्पाद सूचकांक (आईआईपी) बीते 3-4 महीनों में पहले से सपाट या शून्य से नीचे रहता था। अब यह सकारात्मक रहने लगा है। यह रुझान बना रहा तो आगे हम 5-6 प्रतिशत आईआईपी वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं। कृषि का भी योगदान होगा। इसलिए जीडीपी विकास दर बेहतर रहने की उम्मीद रहेगी।

जनवरी-मार्च 2016 से पहले लगभग आठ तिमाहियों में आमदनी और मुनाफे में वृद्धि सपाट या नीचे ही रही थी। जनवरी-मार्च 2016 के आंकडे़ पिछली नौ तिमाहियों में सबसे बेहतर आंकड़े थे और 8-9 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। अभी कमोडिटी के निचले भावों, बेहतर कामकाजी प्रदर्शन और ऊंची विकास दर का असर कम्पनियों की आय में दिखने लगा है। अपै्रल-जून 2016 की तिमाही में अब तक के जो नतीजे आए हैं उनमें निर्यात आधारित क्षेत्र अच्छा नहीं कर रहे क्यों कि वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमेपन के दौर में हैं आईटी क्षेत्र भी अच्छा नहीं कर रहा । ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर निर्भर कम्पनियों के नतीजे भी अच्छे नहीं आए हैं, लेकिन अच्छे माॅनसून के चलते आगे चल कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी तेजी आएगी। इस तिमाही में भी एक दो क्षेत्रों को छोड़ कर बाकी में आय में सुधार दिख रहा है।
पिछले 5-6 सालों में कंपनियों की आय में सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) 7-8 प्रतिशत निचले स्तर पर रही है, लेकिन अब उम्मीद है कि वर्ष 2016-17 में आय वृद्धि दर 12-14 प्रतिशत और 2017-18 में 17-18 प्रतिशत रह सकती है। आईएमएफ ने हाल में भारत की विकास दर के अनुमान जरूर घटाए हैं, पर यह इसलिए कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर उन्हें चिंताएं हैं। अगर वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं धीमी रहेंगी तो हमारे ऊपर उसका कुछ असर होगा ही। हम एकदम अलग नही ंतो रह सकते। हमारा मानना है कि निर्यात वाले क्षेत्रों पर दबाव रहेगा, जबकि घरेलू क्षेत्रों का प्रदर्शन अच्छा रहेगा।
शेयर बाजार की चाल आने वाले समय में इकतरफा ऊपर तो नहीं रहेगी। उतार चढ़ाव आते रहेंगे। बीच-बीच में बाजार गिरेगा भी, लेकिन गिरावटे ज्यादा गहरी नहीं होंगी। भारतीय बाजार में अगले दो सालों में आय में सुधार की उम्मीद है। इसे देखते हुए बहुत सारे लोग इस बजार में प्रवेश के लिए इंतजार कर रहे हैं। मोटे तौर पर मध्यम से लंबी अवधि में बजार में मिलने वाला प्रतिफल कंपनियों की आय में वृद्धि के आस-पास ही रहता है।
नए निवेश के लिए हम धरेलू क्षेत्रांें पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। इनमें आय में सुधार बाजार के औसत से ज्यादा रहने वाली है। हम चक्रीय क्षेत्रों, जैसे आॅटो, बैंकिंग, सीमंेट, इंजीनियरिंग, कन्स्ट्रक्शन आदि को चुन रहे हैं। इनमें आय वृद्धि दर एफएमसीजी और दवा जैसे रक्षात्मक क्षेत्रों में अपना निवेश कम कर रहे हैं।