सुलतानपुर। सृजन पीठ साहित्य संस्था के बैनर तले कवि डा. डीएम मिश्र के संयोजन मंे स्थानीय होटल में उस्ताद शायर मरहूम यदुराज बलि ‘ऐश’ की पुस्तक ‘तूफाने गजलियात’ का विमोचन किया गया। मुम्बई से पधारे मशहूर गीतकार मुख्य अतिथि मनोज मुन्तशिर ने दीप प्रज्जवलन कर सरस्वती व ऐश के चित्र पर माल्यार्पण किया। अतिथियों का परिचय कवि डा. डीएम मिश्र ने कराया और स्वागत डा. राजीव श्रीवास्तव ने किया। मशहूर गायिका स्वाती सिंह ने सरस्वती वन्दना की। तूफाने गजलियात पर बोलते हुए साहित्यकार कमल नयन पांडेय ने कहा कि यदि ऐश की शायरी को सम्पर्णतः मंे देखा जाए तो वह परम्परा व आधुनिकता का मिलन बिन्दु है। ऐश अपनी शायरी में ऐसे सवाल खड़ा करते हैं जो पाठकों और श्रोताओं की सुप्त सोच को जगा देता है। श्री पांडेय ने कहा कि श्री ऐश जीवन भर बेचैन शायर रहे। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए इलाहाबाद से आए विद्वान एम अब्दुल कदीर ने कहा कि ऐश की शायरी मंे विविध रंग हैं जो जीवन से जुड़े हैं। यही शायरी ऐश को बड़ा शायर बनाती है। इलाहाबाद से आई अरबी फारसी एसोशिएट प्रोफेसर डा. सालेहा रशीद ने कहा कि जिस शायर की शायरी मंे अपने वक्त की आहट सुनाई देती है वही बड़ा सर्जक बन जाता है। ऐश की शायरी में जीवन की तमाम फिक्र है। वह प्रगतिशील शायरी के भी पक्षधर हैं। हिन्दी के एसोशिएट प्रोफेसर डा. राधेश्याम सिंह ने कहा कि ऐश मुख्य रूप से ऐश मुख्य रूप से प्रेम और सौन्दर्य के शायर हैं पर कहीं कहीं विद्रोह की चेतना भी दिखाई पड़ती है। हुस्न और इश्क का रंग उनकी कविताओं को बड़ा बना देता है। मुख्य अतिथि मनोज मुन्तशिर ने कहा कि फिल्म और अदब में बहुत अंतर होता है। फिल्म मंे पैसा तो है पर सुकून नहीं। अपने मन का हम वहां कुछ नही लिख सकते। ऐश जैसे शायरों को पढ़कर ही आज मैं इस मुकाम पर पहुंचा हूं। उन्होंने कहा कि अदब के क्षेत्र में सुलतानपुर की धरती बहुत उर्वरक है। शायर जाहिल सुल्तानपुरी ने स्मरण सुनाए। डा. राजीव श्रीवास्तव ने स्वाती सिंह व मल्लिका राजपूत की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि इन दोनों के फन में सुलतानपुर की खुशबू बसी हुई है। मुख्य अतिथि मनोज मुन्तशिर ने कहा कि आंधी मेरे नाम की जरूर चल रही है लेकिन तूफान तो ऐश साहब का ही चल रहा है। उन्हांेने कहा कि सुलतानपुर नक्शे मंे छोटा ही होगा लेकिन कद में बहुत बड़ा है। उन्हांेने अपने अंदाज मंे कहा कि ‘‘मैं तुझसे प्यार नही करता पर ऐसी कोई शाम नही जब मैं आवारा की तरह सड़कों पर न फिरता, सोचता हूं कि सन्नाटों से बागी हो लूं सांस जब तक न टूटे तब तक मैं बोलूं, ये कैसी कामयाबी है ये बरकत किस तरह की सजाए महल लेकिन खुद को खंड्हर कर दिया’’।