बवालियों की पदासीनता और जन-समस्या
‘भारतीय समाज के संचालन एवं नियन्त्रण में नैसर्गिक सिद्धान्तों का समावेश है। गांधी का ‘ट्रस्टीशिप’, अम्बेडकर के ‘स्व-अनुभव’, विनोबा की ‘सामाजिक ‘समरसता’, शास्त्रीजी की ‘नैतिकता’, शहीदों की ‘राष्ट्रनिष्ठा, भारतीयों की ‘इंसानियत’ आदि अनुकरण भारतीयजनों के लिए गौरवपूर्ण सौभाग्य है। जिसकी उपेक्षा देश-समाज हेतु घातक है।’
भारत कृषि प्रधान देश है जहाँ आज संवैधानिक व्यवस्था की जबरदस्त उपेक्षा के कारण वास्तविक परिश्रमी कृषक-मजदूर एवं उसके परिजन कंगालों और फकीरों जैसा जीवन यापन कर भूखें पेट सोने को मजबूर है। जिनकी कमजोरी का लाभ उठाकर रईस-बवाली जनसेवा का ढ़ोंग कर लोकतांत्रिक व्यवस्था के उच्च पदों पर मनमाने ढंग से पदासीन होकर जन-कल्याणकारी सरकारी योजनाओं का लाभ हड़पकर साधारण जनता को भेंड़ों की तरह हांक रहे हैं। भारतीय जनता का बड़ा भाग भोजन-पानी के लिए गुहार लगाते हुए दर-दर भटक रहा है। भूखीं भिखारियों के बच्चे बूँद-बूँद दूध के लिए तरस रहे हैं। मंदिर-मार्गों में भिखारियों की फौजें पपीहों की तरह चीख रही हैं। हजारों लहशें बिना कफन मुर्दा खानों में जा रहीं हैं। जबकि लोकतान्त्रिक देश-प्रदेश के मंत्री-अधिकारी और नेता देश के धन-सम्पत्ति एवं राष्ट्रीय सुविधाओं का बंदर-बाट कर मनमाना लाभ हड़पने में जुटे दिख रहे हैं। यह लोग बबाली-लुटेरों के साथ रंगमंचों पर जाकर एक-दूसरे के प्रति इसलिए प्रेम-लगाव प्रदर्शित करते हैं ताकि उनके कारनामों का विरोध दबा रहे। इनके द्वारा आयोजित समारोहों में सरकारी-सार्वजनिक धन-सम्पत्ति पानी की तरह बहाकर रहीस-बवालियों को महिमा मंडित किया जाता है। ताकि जिम्मेदार इनके विरूद्ध कार्यवाही करने की हिम्मत न जुटा सकें। जिसके कारण भारतीय जन-समाज की स्थिति दिनों-दिन बद् से बद्त्तर होती जा रही है।
केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा दरिद्रों एवं असहाय व्यक्ति-परिवारों के लिए अनेक जन-कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रहीं हैं। यथा दरिद्रों के लिए नगर-गांवों में सरकारी आवास, शौचालय, छात्रवृत्तियां, बीमा, अनुदान, निःशुल्क इलाज, निशुल्क शिक्षा, बिना ब्याज ऋण, कृषि अनुदन, पशु अनुदान, असहाय-वृद्धा-विधवा पेंशन, समाजवादी पेंशन, विकलांग पेंशन, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी तथा खाद्य सुरक्षा गारंटी-2013 के अन्तर्गत कंगालों को प्रति राशन कार्ड पर पूर्व की भांति 90 रूपए मात्र में 35 किलो अनाज, चीनी, किरोसिन और दरिद्र बी.पी.एल. राशनकार्ड धारियों को पूर्व की भांति राशन न देकर पात्र गृहस्थी में परिवर्तित कर ए.पी.एल.राशन कार्ड की भांति 5 किलो मात्र प्रति राशन कार्ड के स्थान पर प्रति व्यक्ति राशन दिया जाना निर्धारित हैं जिसे जनवरी 2016 से दिखावा के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लागू किया गया है जब कि कुछ राज्यों में पूर्व से यह राशन व्यवस्था लागू हो चुकी है। यह नियम प्रत्येक तीन वर्ष बाद विचारोरान्त सुधार कर लागू किए जाने का प्रावधान है। केंद्र एवं प्रदेश सरकारें सरकारी एवं अनुदानित विद्यालयों में 1 से 8 तक के छात्रों को निःशुल्क पुस्तकें, पोशाकें, मध्यान्य भोजन, दूध, फल, वेतनिक कर्मचारी, 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों को पौष्टिक भोजन, दूध, खिलौने, स्वास्थ्य जांच, विद्यालय पूर्व की शिक्षा, तथा नारियों के मातृत्व धारण करने के उपरान्त पैष्टिक भोजन, दूध, फल, चिकित्सा, किश्तों में 6000 रूपए मुहैया करा रही है। परन्तु वास्तव में स्थिति कुछ और ही है।
केंद्र एवं उत्तर प्रदेश सरकारों द्वारा संचालित दरिद्रों के कल्याण के लिए योजनाओं के अध्ययन उपरान्त मैंने उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद फर्रूखाबाद के दरिद्र व्यक्तियों की समस्याओं के निरीक्षण हेतु 6 नगर क्षेत्रों एवं 7 ब्लाकों के 223 ग्राम सभाओं का भ्रमण-जनसम्पर्क कर अन्त्योदय-बी.पी.एल. राशनकार्ड धारकों, समाजवादी-विधवा-वृद्ध-बिकलांग पेंशन प्राप्त करने वालों से एवं सरकारी आवास-शौचालय पाने वालों के घर-घर जाकर तथा शिक्षण एवं स्वास्थ्य केंद्रों पर दरिद्रों की स्थिति का अवलोकन कर दरिद्रों और उनके परिवारीजनों से बातचीत की। जिसके फलस्वरूप समस्त अन्त्योदय राशन कार्ड एवं 75% से 95% तक बी.पी.एल. राशन कार्ड ऐसे व्यक्तियों के पास मिले हैं जिनके पास लेंटर-दो मंजिल मकान, बडे प्लाट-खेत, मोटर साइकिल, ट्रेक्टर, कार, व्यापार, आयुध लाइसेंस, नौकरी, पेंशन, रहीस परिवार, नगरों में बडी़ हवेलियां, कारखाने, उद्योगों एवं अकूत पैतिृक धन-सम्पत्ति का स्वामित्त्व है। यही स्थिति समाजवादी, असहाय, विधवा, वृद्धा एवं विकलांग पेंशन पाने वाले अधिकांश व्यक्तियों की मिली जिनमे मृतकों सहित अनेक लोग पति, पत्नी, पुत्र, बहू, बेटी सहित एक ही व्यक्ति-परिवार अनेक पेंशन प्राप्त करते मिले। इन रजिस्टर्ड दरिद्रों ने बताया कि उन्होंने धन देकर योजनाओं का लाभ प्राप्त किया है। इन फर्जी दरिद्रों द्वारा बड़ी मात्रा में दरिद्रों का राशन, तेल, चीनी, आवास, पट्टा, उद्योग, बीमा, समाजवादी-वृद्धा-असहाय-विधवा-विकलांग पेंशन, दान-अनुदान एवं राष्ट्रीय सम्मान आदि दरिद्र कल्याणकारी योजनाओं का लाभ हड़पा जा रहा हैं। सरकारी राशन दूकानों के अनेक कोटेदार अपने प्लाटों में आटा उद्योग चलाते मिले। सफाईकर्मी के पद पर पदासीन उच्च वर्ग लोग जांच समय बाल्मीकि व्यक्ति को दिहाडी मजदूरी देकर स्वयं बिना कार्य किए वेतन भुगतान लेते दिखे। सरकारी निधियों का धन सार्वजनिक स्कूलों की जगह निजी स्कूलों में लगा दिखा। गांव के सचिवालयों एवं सरकारी-सहकारी भवनों में दबंग-रहीसों ने ताले डाल अवैध कब्जा कर लिए है। अधिकांश स्वास्थ्य कंेद्रांे पर चिकित्साधिकारी ड्यूटी से गायब और के सफाई कर्मी रोगियों का इलाज करते मिले हैं जबकि चिकित्सक एवं कर्मचारी केंद्रों पर यदाकदा जाकर उपस्थित खानापूर्ति करते बताए गए हैं। बेसिक स्कूलों के शिक्षकों का फर्जीबाड़ा अत्यन्त गंभीर है। अनेक बेसिक स्कूलों में छात्र संख्या अत्यंत निम्न होने के बावजूद शिक्षकों की पदासीनता अत्यधिक है। अनेक शिक्षक शिक्षण कार्य किए बिना वेतन ले रहे हैं। मिड-डे-मील का राशन-धन दुरूपयोग हो रहा है। अनेक शिक्षक ठेकेदारी, दलाली, व्यापार, राजनैतिक दलों के झंडे-बैनर लगाकर नेतागीरी कर रहे हैं। अधिकांश विद्यालयों की पंजीकृत छात्र संख्या अधिक एवं वास्तविक छात्रों की संख्या अत्यन्त कम है। पता चला कि अधिकांश छात्र प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के बावजूद उनके नाम शिक्षक नौकरी कायम रखने के उद्देश्य मात्र से दर्ज की गई है इन स्कूलों की प्रबंध समिति के अधिकांश अध्यक्षों-रसोइयों की पदासीनता-चयन अमानक मिला है। बेसिक स्कूलों में पढ़ाई का स्तर अत्यन्त निम्न एवं फर्जीबाड़ा से सार्वजनिक धन-सम्पत्ति का घोटाला अत्यन्त उच्च मिला है। इस प्रकार फर्जी दरिद्र सुख में तथा वास्तविक दरिद्र ए.पी.एल.धारक या कार्ड विहीन होने से बुरी तरह दरिद्रता ग्रसित मिले।
हमारा भारतीय समाज मंहगाई, बेरोजगारी, गरीबी, दरिद्रता, भ्रष्टाचार एवं उपेक्षा की मार से बुरी तरह तबाह हो रहा है। हमारे नायक सरकारी धन-सम्पत्ति एवं सार्वजनिक साधनों का प्रयोग अपने निजी कार्यों में कर रहे हैं। ये वेतन, भत्ते एवं कमीशन लेकर स्वलाभ कमाते हैं। देश, समाज, जन, क्षेत्र चरागाह के रूप में प्रयोग हो रहे हैं। जहाँ तरह-तरह के शातिर जबरस्त कब्जा कर इन्हें बेंच रहे है। ऐसी स्थिति में हमारे भारतीय समाज की कायाकल्प तब तक संभव नहीं है जब तक हमारे योग्य, सभ्य, शिष्ट, कर्मठ, सच्चे जनसेवक पवित्र भाव से अवैतनिक देश एवं समाज सेवा में भागीदार नहीं होंगे। जिसके लिए आवश्यक है कि पदों की चयन प्रक्रिया में हमारे सर्व जन-समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर प्राप्त हो एवं चयन प्रक्रिया वर्ग, दल, जाति, धर्म, वाद, शुल्क, धन एवं दबाव मुक्त हो। सत्ता-पद धारक की पुनरावृत्ति न हो।
हम अपनी सामाजिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर विचार करने पर पाते है कि, हमारी स्थिति दिन प्रतिदिन बद् से बद्त्तर होती जा रही है। जिसके कारणों में हम स्वयं को दोषी मान मौन धारण कर लेते हैं। हमारा यह मौन सामाजिक जीवन को बुरी तरह समस्या ग्रसित कर रहा है। अतः हमें समस्याओं के कारणों के प्रति और निराकरण हेतु गंभीरता से विचार करना होगा। अन्यथा हम अपने महापुरूषों की उपलब्धियों एवं समाज की भावी पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित रखने में असफल रह जाएंगे।