मैंने पंकज कपूर से बहुत कुछ सीखा है: दीपा साही
‘वो ज़माना करे दीवाना’ के अपने सूत्र वाक्य के साथ ज़ी क्लासिक भारत का एकमात्र ऐसा हिन्दी मूवी चैनल है, जो भारतीय सिनेमा को नई दिशा देने वाली महान क्लासिक फिल्मों के साथ-साथ न्यू एज सिनेमा का जादू जगा रहा है। राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम के साथ मिलकर ज़ी क्लासिक इस समय ‘इंडियाज़ फाइनेस्ट फिल्म्स’ नाम का एक खास फिल्म फेस्टिवल दिखा रहा है, जिसमें वैकल्पिक सिनेमा की बेहतरीन फिल्में दिखाई जा रही हैं। इस फेस्टिवल के चैथे हफ्ते में ज़ी क्लासिक पर शनिवार 6 अगस्त को रात 10 बजे ‘एक डॉक्टर की मौत’, का प्रीमियर होगा।
‘एक डॉक्टर की मौत’ में पंकज कपूर, शबाना आजमी, दीपा साही, विजयेन्द्र घाटगे और इरफान खान महत्वपूर्ण भूमिकाओं में हैं। तपन सिन्हा के निर्देशन में बनी यह फिल्म डॉ. दीपांकर रॉय (पंकज कपूर) की कहानी है, जो सालों की समर्पित रिसर्च के बाद अंततः कुष्ठ रोग का इलाज ढूंढ़ने में सफल हो जाता है लेकिन वे जलन और सत्ता के दुरुपयोग के शिकार हो जाते हैं, जिसके चलते उन्हें वह मान्यता नहीं मिल पाती है। उनके वरिष्ठ उन्हें दबाते हैं और उनके सहयोगी उनसे ईष्र्या करते हैं जिससे वे काफी विचलित हो जाते हैं। उनके दिमाग पर इस बात का गहरा असर होता है। इससे उनके अपनों से उनके रिश्ते भी प्रभावित हो जाते हैं।
फिल्म में लीड भूमिका निभा रहीं दीपा साही पंकज कपूर के साथ काम करने के अपने अनुभव बताते हुए कहती हैं, ‘‘मैंने अपना पहला वीडियो केतन मेहता के साथ शूट किया था और इसी पर काम करने के लिए स्थापित अभिनेता पंकज कपूर को इंडियन स्कूल आॅफ ड्रामा में आमंत्रित किया गया था। मैं उन्हें देखकर हैरान रह गई। उनके काम करने की एक खास प्रक्रिया होती है। उन्होंने मुझे एक खास सीख दी कि अंत में दर्शक स्क्रीन पर आपका फाइनल शॉट ही देखते हैं। कोई यह नहीं देखता कि पर्दे के पीछे आपने क्या किया। इसलिए अपने परिणाम पर ध्यान रखें भले ही इसके लिए आपको घंटों तक रिहर्सल क्यों न करनी पड़े या वह परफेक्ट सीन देने के लिए आपको 25 रीटेक ही क्यों न देने पड़े, कोई यह नहीं कहेगा कि यह एक्टर मूर्ख था या इसने इतनी रिहर्सल की। यह बहुत बड़ी बात थी जो मैंने उनसे सीखी।’’
उत्कृष्ट परफॉर्मेंस के साथ ‘एक डॉक्टर की मौत’ ने 1990 में दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार अपने नाम किए थे। इसे दूसरी सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया और सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का पुरस्कार तपन सिन्हा को मिला था। वर्ष 1992 में भी तपन सिन्हा को बेस्ट स्क्रीनप्ले का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला।