माँ –बाप को शिक्षक और शिक्षक को माँ-बाप बनना चाहिए: डॉ मोहन भागवत
लखनऊ । शिक्षा और विद्या का समन्वय करने वाला शिक्षक होता है । विद्या का अनुभव जीवन में उतारकर देखा है ऐसा शिक्षक चाहिए । माँ –बाप को शिक्षक और शिक्षक को माँ-बाप बनना चाहिए । आचार्य वह है जो आचरण करके दिखता है । शिक्षा देने में आत्मीयता जनि चाहिए ।शिक्षक को आत्मीयता और उदाहरण में खरा उतरना पड़ेगा ।
उक्त बाते समारोह केदार नाथ साहनी सभागार में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के 'शिक्षा भूषण' शिक्षक सम्मान, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविक सेण्टर नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के परम पूज्य सर संघचालक माननीय डॉ मोहन राव भागवत जी ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा । उन्होंने आगे कहा कि शिक्षक केवल पे-स्केल के लिए नहीं होना चाहिए । शिक्षक ठीक रहे उसकी योगक्षेम की व्यवस्था ठीक होनी चाहिए । शैक्षिक महासंघ दोनों की चिंता करता है । विद्यार्थी जो सुनते है वो नहीं सीखते, जो देखते है वही सिखते है । विद्यादान का ब्रतपालन जिन्होंने किया है उनके सम्मान का कार्यक्रम किया है । सामान्य शिक्षक वर्ग का हौसला बढ़ना चाहिए ।
प्रमुख अतिथि कुलाधिपति, देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार अवं अन्तराष्ट्रीय प्रमुख गायत्री परिवार के डॉ प्रणव पंड्या जी ने कहा की शिक्षक आदमी को भाग्य विधाता बनता है । अध्यापक है युग निर्माता, छात्र है भाग्य विधाता। विद्या वो है जो आदमी को जीवन जीना सिखा दे । जिनको भारत की गरिमामयी संस्कृति की जानकारी नहीं है वो छात्रों को योग्य नागरिक कैसे बना सकते है ? वर्तमान शिक्षा पैकेज कमाने वाली शिक्षा हो गयी है ।शिक्षा और विद्या का समन्वय होना चाहिए ।भारतीय संस्कृति के खिलाफ बहुत जोर से आक्रमण हो रहा है। तथाकथित बुद्धिजीवियों की मानसिकता ठीक करने की जरुरत है । सभ्यता जीवन को सही ढंग से जीने की तरीका सिखाती है ।डॉ केशव बलिराम हेडगवार, गोलवलकर –गुरूजी, रज्जू भैया , सुदर्शन जी के जीवन में भारतीय संस्कृति कूट-कूट कर समाहित थी । समुचित चिंतन से ही महामानव तैयार होगें ।शिक्षक आदमी को भाग्य विधाता बनाते है। शिक्षक आदमी को उस समय सभालता है जब फिसलने का बहुत अधिक चान्स होता है । दूषित वातावरण को सुधारने के लिए योग्य शिक्षको की संख्या बढ़नी चाहिए । आचरण से शिक्षा देने वाले शिक्षक तैयार किया जाना चाहिए । सरकार पर मत निर्भर रहिये । हर व्यक्ति को जीवन भर सीखना चाहिए । शिक्षा और विद्या के सार्थक समन्वय में लगे राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता शैक्षिक फाउण्डेशन के अध्यक्ष प्रो. के. नरहरि जी ने किया । जिसमें शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के अध्यक्ष श्री दीना नाथ बत्रा जी को उनके सेवा-सृजन एवम् प्रयोगधर्मिता के लिए, लोक चेतना लोक संस्कार को आत्मसात करने वाले डॉ प्रभाकर भानुदास मानडे एवं संस्कृत भारती की कृति स्तम्भ मन्जूश्री बलवंत राव बहालकरजी को शिक्षा के क्षेत्र में उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए एक-एक लाख रुपए की सम्मान राशि के साथ ही रजत पत्र व शाल श्रीफल से सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर आर. एस. एस. के सह सर कार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल जी, सुरेश सोनी जी, अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख प्रो. अनिरुद्ध देश पाण्डेय जी, महासंघ के महामंत्री एवं राजस्थान वि.वि. के कुलपति प्रो. जगदीश सिंघल जी, संगठन मंत्री महेन्द्र कपूर जी, सह संगठन मंत्री ओमपाल सिंह जी ,उच्च शिक्षा संवर्ग प्रभारी महेंद्र कुमार जी , संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव माननीय अतुल कोठारी जी, अखिल भारतीय विद्यारती परिषद् के राष्ट्रिय संगठन मंत्री सुनील आम्बेकर जी , श्री हरी बोरीकर जी सहित संवैचारिक संगठनो के राष्ट्रीय पदाधिकारि, गणमान्य व्यक्तियों व देश भर से पधारे संगठन के प्रमुख शिक्षकों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तराखंड कुमाऊ संभाग के संयोजक डॉ हरनाम सिंह ने समारोह में सहभागिता कर उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व किया ।