जन्नत मानो या जहन्नम बनादो, जलकर ख़ाक हो गया, कशमीर हूँ मैं
सय्यद आलम शाज़ली
बचपन से हमेशा सुनते आया था जिस हसीन वादी के बारे में अब वह हसीन नहीं, बल्कि जलकर राख हो रही है। कशमीर जिसे लोग दुनिया की जन्नत मानते आये है वह जलकर नर्क हो गया है जिसमें सिर्फ खून की होली खेली जा रही है । पिछले २० साल का रिकॉर्ड उठाकर देखा जाये तो १ लाख से ज़्यादह लोग अपनी बलि दे चुके है । कभी आतंकवाद के नाम पर, कभी वोट बैंक के नाम पर तो कभी रक्षक के भक्षक बनने पर, खून पानी की तरह बहता जा रहा है। कोई राजनितिक पार्टी अपना हाथ बढ़ा कर इस नरसंहार को रोकने की कोशिश नहीं कर रही है , आखिर क्यों? क्या वहां जीवनयापन करने वाले लोगों का खून ए खून नहीं पानी है । या वह मुसलमान है । या कश्मीर को भारत में मिलने की सजा कश्मीरियों को दी जा रही है। ऐसे ढेरों सवाल है जो दिमाग में आते है मगर इनका सही जवाब नहीं मिल पाया।
भारत सरकार अक्सर ही इस तथ्य को छिपाती है कि पिछले बीस सालों में कश्मीर में करीब 1 लाख लोग मारे जा चुके हैं। एक लाख कोई मामूली संख्या नहीं होती। यदि कहीं और का मामला होता तो भारत सरकार भी पूरी बेशर्मी से 'मानव संहार का मुद्दा उछाल रही होती। लेकिन यहां तो कश्मीर में नर संहार उसका आंतरिक मामला है। भारत का पूंजीपति वर्ग जम्मू कश्मीर को किसी भी कीमत पर अपने से अलग नहीं होने देना चाहता।
जम्मू.कश्मीर की समस्या का बीज तभी पड़ा जब देश आजाद हुआ आजादी से पहले जम्मू.कश्मीर प्रदेश एक रियासत थी। इसका शासक था हरी सिंह। यह रियासत उन पांच सौ से ज्यादा रियासतों में एक थी जिन्हें आजादी के बाद भारत के पूंजीपति वर्ग ने अपने में मिलाया। 1947 में हस्तांतरण के समय अंग्रेज शासकों ने एक चाल के तहत तत्कालीन भारत की सभी रियासतों को यह अघिकार दे दिया कि वे चाहें तो हिन्दुस्तान में शामिल होंए चाहें तो पाकिस्तान में। नहीं तो स्वतंत्र रहें। 1947 में राजा हरी सिंह ने सोचा की वह अपनी रियासत अलग बनाए रखे लेकिन भारत. पकिस्तान बनने के बाद उसे जो खतरा महसूस हुआ वह तो था ही लेकिन नेशनल कांफ्रेंस एक तीसरा खतरा पैदा हो गया आखिरकार राजा हरी ने कश्मीर को भारत में विलीन कर दिया।
भारत सरकार और हरी सिंह के बीच जो सौदेबाजी हुयी उसके परिणाम स्वरूप भारतीय संविघान की घारा 370 अस्तित्व में आई हालांकि इसके पीछे नेशनल कांफ्रेेंस के दबाव का भी बड़ा हाथ था। उसकी सहमति के बिना यह समझौता अस्तित्व में नही आ सकता था। धारा.370 के तहत जम्मू कश्मीर को विशेष स्वायत्तता अघिकार मिले। उसकी अपनी अलग संविघान सभा होनी थीए उसका अलग संविघान व झण्डा होना था। उसका प्रघानमंत्री होना था। भारत सरकार का अघिकार वहां केवल कुछ ही क्षेत्रों में लागू होना था.सुरक्षाए संचारए मुद्रा इत्यादि में। विशेष बात यह थी कि भारतीय संविघान की घारा 370 में परिवर्तन का अघिकार भी जम्मू.कश्मीर की संविघान सभा को ही दिया गया, भारतीय संसद को नहीं। लेकिन पूंजीपति वर्ग ने इसे पूरा निगलने की कोशिश की और उसी का भयावह रूप यह है की आज कश्मीर कश्मीर नहीं बल्कि एक जलता हुआ आग का गोला और खुनी नरसहार का मैदान बन गया है ।
मेरा कहना गलत न होगा की हिन्दुस्तान में जब से बीजेपी सरकार आई है तब से खून की होली पूरे हिन्दुस्तान में खेली जा रही है। कहीं दलित तो कहीं मुसलमान का। बीजेपी सरकार करना क्या चाहती है वह तो मोदी और शाह ही बता सकते है। जाट आंदोलन होता है तो खून नहीं बल्कि समझौते की बात होती है लेकिन जब कश्मीर में एक पत्थर फेंका जाता है तो फायरिंग होती है यह कौन सा इन्साफ है। ३० से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं , और न जाने कितने जखमी हुए, कितने मासूम और बेगुनाह बच्चों और नौजवानों ने अपनी आँखें खो दी है । कितने माताओं ने अपनी गोद उजाड़ दी है, कितनी बहनों से उनके भाई जुदा हो गए है। इस सबसे से अफसोस जनक बात यह है की सरकार खामोश, हिन्दुस्तान का मुसलमान खामोश, पूंजीपाति और शिक्षित वर्ग खामोश। इससे कुछ साबित हो या न हो एक बात ज़रूर साबित होती है कि इंसानियत हैवानियत में बदल रही है । खून और पानी में कोई फ़र्क़ नहीं समझा जा रहा है।
हमला और फायरिंग कश्मीर में ही नहीं बल्कि भोपाल में पढ़ाई करने वाले कश्मीरी पर भी हो रहा है, यह कौन सा हिंदुस्तान है। क्या अल्लामा इक़बाल का तराना 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा' ने इसी हिन्दुस्तान के बारे में खूबियां बयान की है । इंसानियत को दफ़न करके हैवानियत को बढ़ावा दिया जा रहा है। हमारे प्यारे मुल्क हिन्दुस्तान को अमन और सकूं की राह से मोड़कर, बरबरियत और हैवानियत में बदला जा रहा है । अफ़सोस जिसे आज़ादी के बाद से आज तक सारे धर्मों के मानने वालों ने सम्भाल कर रख था आज वह गंगा जमुनी तहज़ीब खत्म हो रही है । इसके पीछे सिर्फ पूंजीपति वर्ग और गन्दी राजनीती है।
मोदी सरकार बैठ कर तमाशा देख रही है और जवानों को नौजवानों पर गोलियां चलने के लिए मजबूर कर रही है। भारत सरकार को चाहिए का खून की होली खेलने के बजाये कश्मीरियों से बैठ कर बात करे उनके दर्द को समझे और उसका समाधान ढूंढे नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब भारत का एक खूबसूरत चमन रेत बनकर रह जायेगा जिसपे कोई फल भी न उग सकेगा। अपनी गंगा जमुनी तहज़ीब को मिटने से बचा लें । मेरी अपील हर उस पढ़े लिखे नौजवान धर्म गुरु और जाति वर्ग विशेष से है जो हिन्दुस्तान को दुनिया का सबसे प्यारा मुल्क देखना चाहते है। हम अनेकता में एकता के पैगाम को एक साथ मिलकर फैलाना चाहिए ए हमने जो जंग अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ी थी आज फिर से पूंजीपाति वर्ग और राजनितिक ढोंगियों के खिलाफ लड़नी पड़ेगी।
हम सभी लोगों को चाहिए की हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में खेली जा रही खून के होली के खिलाफ खड़े हों और अपने अधिकारों का भरपूर इस्तेमाल करते हुए अपने प्यारे हिन्दुस्तान को गांधी और नेहरू के सपनों को साकार करें।