लखनऊ। समान नागरिक संहिता पर भाजपा सरकार के द्वारा किए गए प्रयासों की जहाॅ चारों तरफ सराहना हो रही है वही कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी के इस बयान ‘‘ यह भाजपा की ओछी राजनीति है। जब भी किसी तरह के चुनाव आते हैं, भाजपा इस तरह के विवादास्पद मुद्दे उठाकर वोट की राजनीति करती है।’’ पर प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व सांसद और भाजपा के वरिष्ठ नेता रामनाराण साहू ने कहा कि भाजपा सरकार के हर अच्छे प्रयास का कांग्रेस बिना सोचे समझे विरोध शुरू कर देती है। जबकि वास्तविकता यह है कि इस मामले में स्वयं अप्रत्यक्ष रूप से तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार से कोई फैसला लेने के लिए कहा है। ऐसे में अगर एक राष्ट्र एक आचार संहिता की बात केन्द्र सरकार कर रही है तो इसमें बुराई क्या है। उन्होंनें कहा कि ’ ब्रिटिश राज के समय कानून बनाने को लेकर गठित समिति ने 1840 में इसकी जरूरत बताई थी। लेकिन अंग्रेजों ने इस तरह के प्रयास ही छोड़ दिए क्योंकि बांटो और राज करो की नीति उनके लिए मुफीद थी। आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू और बीआर आंबेडकर ने भी इसकी वकालत की।
उन्होंने कहा कि कानून मंत्री सदानंद गौड़ा स्पष्ट कह चुके है कि इस मामले में विधि आयोग से रिपोर्ट मांगी गई हैं। समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर विभिन्न पर्सनल लाॅ बोर्ड से व्यापक स्तर पर चर्चा की जाएगी अन्य पक्षकारों की राय ली जाएगी और इस पर अभी छह माह से अधिक का समय लगेगा।लेकिन कांग्रेस ने इस बहस की शुरूआत में ही बयान देकर यह सिद्द कर दिया है कि वह भाजपा सरकार के विरोध मंे बयान देने की आदी है। उन्हांेने कहा कि भारत की आजादी से अब तक कई कानून संशोधित किए गए है ऐसे में अगर समान नागरिक संहिता पर संशोधन पर जनता मोहर लगाना चाहती है तो कांग्रेस जनता की मांग का गला क्यो घोट रही है। उन्होंने कहा कि देश के सभी लोगों के लिए एक-सा कानून यानी समान नागरिक संहिता के लिए सरकार ने पहल शुरू की है। सरकार ने विधि आयोग से इस पर सुझाव मांगे हैं। पिछले साल अक्टूबर में पहली बार सरकार ने आयोग को इस मुद्दे पर विचार कर रिपोर्ट देने के लिए पत्र लिखा था। अभी हाल में सरकार ने आयोग को दोबारा पत्र लिखकर इसकी याद दिलाई है।यह हमेशा से संवेदनशील मुद्दा रहा है। इसी वजह से संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों केअनुच्छेद-44 में समान नागरिक संहिता की बात होने के बावजूद यह लागू नहीं हो पाया है। लेकिन भाजपा सरकार ने जनता का रूख भाॅपकर ही एक बेहतर प्रयास शुरू किया है। कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने दिसंबर, 2014 में भी संसद में इस बाबत कदम बढ़ाने की बात कही थी। दरअसल, पिछले साल अक्टूबर में एक ईसाई व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर ईसाइयों के तलाक अधिनियम को चुनौती दी थी। उसका कहना था कि ईसाई दंपति को तलाक लेने से पहले दो वर्ष तक अलग रहने का कानून है जबकि हिन्दू व अन्य कानूनों में यह अवधि छह-छह महीने मिला कर कुल एक वर्ष की है। ऐसे में एक राष्ट्र में अलग अलग कानून कैसे चल सकता है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार जनता के साथ है अगर जनता समान नागरिक संहिता चाहती है तो भाजपा सरकार जनता के साथ है।