जो कौम मैदान-ए-अमल में नहीं आती है अल्लाह भी उसकी मदद नहीं करता : कल्बे जव्वाद
लखनऊ : माहे रमजान उल-मुबारक के दूसरे जुमे के खुत्बे मैं हजारों नमाजियों को खिताब करते हुए मजलिसे ओलमाये हिन्द के जनरल सैक्रेटरी इमामे जुमा मौलाना सय्यद कलब जव्वाद नकवी ने रमजान उल मूबारक की एहमीयत पर रोशनी डालते हुए कहा कि ’रमजा’ के मानी जलाने के हैं यानी ये माह-ए-मुबारक रमजान इन्सान के गुनाहों को जलाकर खत्म कर देता है । मौलाना ने कहा कि अहादीस में माहे रमजान के 41 नाम बताए गए हैं । मौलाना ने कहा कि इस माहे रमजान उल-मुबारक में रोजादार को इफतार कराने का बहुत सवाब है ।किसी ने रसूल-ए-खुदा स0अ0 से सवाल किया कि जो इन्सान गरीब है वो किस तरह रोजादार का इफतार करा सकता है ?आपने इरशाद फरमाया कि वो कम से कम एक घूँट पानी के जरीये तो इफतार करा सकता है ।इस एक घूँट पानी से इफतार कराने का सवाब पूरी इफतारी के सवाब के बराबर होगा ।मौलाना ने अहादीस की रोशनी में माहे रमजान के तीस रोजों का फलसफा बयान करते हुए कहा कि किसी ने इमाम अ0स0 से सवाल किया था कि आखिर माहे रमजान के रोजों की तादाद 30 ही क्यों है ?तो आपने इरशाद फरमाया कि हजरत-ए-आदम ने जन्नत का जो मेवा मना करने के बावजूद खा लिया था उसका असर तीस दिनों तक रहा था और फिर जनाब आदम अ0स0 ने इस असर को खतम करने के लिए तीस रोजे रखे थे ।मौलाना ने कहा कि यही वजह है कि माहे रमजान उल-मुबारक के तीस रोजे हमारे तमाम गुनाहों की बखशिश का जरीया हैं।मौलाना ने रोजादार की एहमीयत पर तफसीली रोशनी डालते हुए कहा कि हर इबादत का सवाब उस वक्त मिलता है जब वो इखतियारी हालत में अदा की जाये ।मगर रोजा की खुसूसीयत ये है कि अगर रोजादार सो भी जाये तब भी उसे सवाब मिलता है यहां तक कि उसकी हर सांस जो उसके इखतियार में नहीं है सउ की आमद-ओ-रफत पर भी सवाब है ।माह-ए-मुबारक रमजान में दुआओं की एहमीयत बयान करते हुए इमाम जुमा ने कहा कि माहं रमजान उल-मुबारक दुआओं की कबूलीयत का महीना है ।इस महीने में ज्यादा से ज्यादा दुआ की जाये ।मौलाना ने इमाम अली रजा अ0स0 का कौल नकल करते हुए कहा कि आपने अपने एक सहाबी से फरमाया कि अगर मैं तुमसे कोई वादा करूँ तो क्या तुम्हें यकीन है कि मैं उसे पूरा करूंगा?सहाबी ने जवाब दिया के बेशक आप जमीन पर हुज्जते खुदा हैं हमें आप पर यकीन-ए-कामिल है कि आप अपना वादा जरूर पूरा करेंगे । इमाम ने इरशाद फरमाया कि एक बंदए खुदा तुमसे वादा कर रहा है तो तुम्हें यकीन है मगर खुदा तुमसे वाअदा कर रहा है कि तुम मुझसे दुआ करो में जरूर कबूल करूंगा तो क्या वो अपना वादा पूरा नहीं करेगा । मौलाना ने मजीद कहा कि अहादीस में वारिद हुआ है कि इफतार के वकत दुआ किया करो उस वक्त की दुआ को अल्लाह रद्द नहीं करता है ।
इमाम बाड़ों को तफरीहगाह बनाने की साजिश और इमाम बाड़े में फिल्म की शूटिंग के मसले पर सख्त रूख अपनाते हुए मौलाना सय्यद कल्बे जव्वाद नकवी ने कहा कि दो दिन तक फिल्म का सेट तैयार होता रहा ,सेट मामूली नहीं था बल्कि पूरे बाजार का सेट लगाया गया था मगर जिला मजिस्ट्रेट ,ट्रस्ट प्रशासन और यहां के गाइड कहते हैं कि उन्हें इसकी खबर नहीं थी । ये धोका दे रहे हैं । मौलाना ने मजीद कहा कि छोटे इमाम बाड़े में मौजूद 200 सौ साल पुराने खुबसूरत बेशकीमत खंबों को काट दिया गया है ।इन खंबों को इस लिए काट दिया गया कि पर्यटको को इमाम बाड़े की तस्वीरें लेने में दिक्कत पेश आती है ।ये भी कहा जा रहा है कि जिला मजिस्ट्रेट की फैमिली इमाम बाड़ा में घूमने के लिए आए थे , उन्हें तस्वीरें लेने में मुश्किल पेश आ रही थी इस लिए इन खंबों को काट दिया गया।मौलाना ने कहा कि मैंने मौके पर पहूंच कर मुआइना किया और कहा कि इन खंबों को दुबारा लगवाया जाये क्योंकि ये बेशकीमत और मजबूत हैं अगर ऐसा नहीं हुआ तो इमाम बाड़े में दाखलि होने पर पाबंदी लगा दी जाएगी । इसके बाद उन्होंने इन खंबों को दुबारा लगवाया जा रहा है मगर दुबारा लगवाने में वो खुबसूरती कहाँ पैदा हो सकती है । मौलाना ने कहा कि इमाम बाड़ों की शक्ल-ओ-सूरत को तबदील किया जा रहा है और खूबसूरती के नाम पर बेशकीमत आसारे-ए-कदीमा को खत्म किया जा रहा है मगर हर तरफ खामोशी है ।इस पर कार्रवाई होनी चाहीए ।मौलाना ने मजीद कहा कि जिस वक्त में नमाज मगरिब के बाद छोटे इमाम बाड़ा का दौरा कर रहा था उसी वक्त कुछ बच्चों ने आकर खबर दी कि बड़े इमाम बाड़ा पर फिल्म की शूटिंग हो रही है ।वहां से मैं मौके पर पहुँचा और उन्हें बुलाकर फिल्म की शूटिंग रोकने के लिए कहा और समझाया कि ये मजहबी मुकद्दस मुकाम है लिहाजा शूटिंग बंद की जाये ।वो लोग शूटिंग बंद करने पर राजी हो गए मगर जैसे ही में वहां से वापिस गया उन्होंने फिर फिल्म की शूटिंग शुरू कर दी ।इस पूरे मसले पर पुलिस खामोश रही जिस पर अवाम में गुस्सा पेदा हो गया और शूटिंग रुकवाई गई ।मौलाना ने कहा कि अगर इस फिल्म की शूटिंग पर एतराज ना किया जाता तो आइन्दा के लिए मिसाल बन जाती ।लिहाजा जरूरी है कि अवाम बेदार हो कर मैदान-ए-अमल में आएं । जो कौम मैदान-ए-अमल में आती है अल्लाह भी उसी की मदद करता है । खुतबे के अाखिर में मौलाना ने मुल्क-ओ-कौम की खुशहाली की दुआ की और वैश्विक स्तर पर जारी दहश्तगर्दी के खातमे के लिए भी दुआ की गयी।