नई दिल्ली: राहुल गांधी की ताजपोशी को लेकर कांग्रेस में चर्चा तेज हो गई है। वजह साफ है कि पांच राज्यों में विधानसभा के नतीजों और उत्तर प्रदेश में चुनाव के पहले कांग्रेस की रणनीति क्या होगी इस पर पार्टी में कोई संदेह नहीं होना चाहिए। वैसे भी उत्तर प्रदेश और पंजाब में राहुल गांधी ने प्रशांत किशोर को लगा रखा है।
पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी हाल में कहा कि राहुल गांधी को अब कमान सौंप देनी चाहिए। अब सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर राहुल को कांग्रेस का अध्यक्ष कब बनाया जाए। इसके लिए कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाना जरूरी होता है, फिर उसके फैसले पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की बैठक में मुहर लगवानी होती है। इसमें सभी राज्यों के करीब दस हजार डेलीगेट आते हैं।
यानि अधिक से अधिक अगले महीने तक कांग्रेस कार्यसमिति के फैसले पर मुहर लग जाने की संभावना है क्योंकि गांधी परिवार में यह लगभग तय हो गया है कि राहुल को कांग्रेस की जिम्मेवारी सौंप देनी चाहिए। हाल के विधानसभा चुनाव में खासकर असम में हार के बाद यह भी चर्चा जोरों पर है कि कांग्रेस को अपने अल्पसंख्यक हितैषी होने की रणनीति पर विचार करना चाहिए। क्योंकि जिस ढंग से बदरूद्दीन अजमल ने मुसि्‌लम वोटों पर अपनी पकड़ बनाए रखी उससे बीजेपी को फायदा हुआ और कांग्रेस बीजेपी से अधिक वोट पाने के बावजूद भी हार गई।
असम में लोग बीजेपी और अजमल के बीच सांठगांठ की बात कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही ओवैसी बिहार में करने की कोशिश कर चुके हैं मगर उत्तर प्रदेश में ओवैसी ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है। उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के हितैषी के रूप में पीस पार्टी को कुछ सीटें मिली हैं। यानि राज्यों और देश भर में गठबंधन की क्या शक्ल होगी इस पर भी एक चिंतन शिविर बुलाने पर विचार किया जा रहा है।
इससे बहुत साल पहले शिमला में इसी तरह का एक चिंतन शिविर हुआ था और उसके बाद कांग्रेस ने बाकी दलों के लिए अपने दरवाजे खोले थे। फिर जयपुर के चिंतन शिविर में राहुल को उपाध्यक्ष बनाया गया था। यानि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की अग्नि परीक्षा होगी। वैसे तो बीजेपी की भी वहीं अग्नि परीक्षा होनी है और वही चुनाव तय करेगा कि देश की राजनीति की अगली दिशा क्या होगी।
राहुल के करीबियों की मानें तो राहुल हार का ठीकरा अपने ऊपर लेने के लिए तैयार हैं। उन्हें चुनाव में फ्री हैंड मिले यानि प्रदेश अध्यक्ष से लेकर उम्मीदवार चुनने तक। कई लोगों को हैरानी होगी कि उपाध्यक्ष और गांधी होते हुए क्या उनकी इतनी भी नहीं चलती। सच्चाई यह है कि शायद नहीं चलती। कई ऐसे मौके आए हैं जब राज्यों में राहुल ने प्रदेश अध्यक्ष के लिए जिसके नाम का सुझाव दिया उसे नियुक्त नहीं किया गया।
दूसरा बड़ा सवाल है कि वामदलों और अन्य दलों के साथ गठबंधन पर राहुल क्या करेगें। क्योंकि वाम नेताओं का मानना है कि बंगाल में वे नुकसान में रहे हैं तो क्या लोकसभा स्तर पर चुनाव बाद गठबंधन होगा या पहले। और सबसे अहम फैसला राहुल को करना होगा कि उत्तर प्रदेश की बागडोर किसको सौंपी जाए। क्या राहुल खुद कमान संभालेगें या प्रियंका राजनीति में खुले तौर पर आएंगी। कांग्रेस में सबको पता है कि प्रियंका उनके लिए एक ऐसा तुरूप का इक्का है जिस पर एक बड़ा दांव तो लगाया ही जा सकता है। हाल के दिनों में पहले वेस्टलैंड हेलीकॉटर सौदे में सोनिया गांधी और फिर वाड्रा पर लंदन में एक बेनामी जायदाद का मामला उछला है।
गांधी परिवार को लगता है कि इनसे लड़ाई अब लंबी चलेगी और कमान अब बच्चों को सौंप देनी चाहिए क्योंकि परिवार और पार्टी दोनों पर संकट है। कांग्रेस के नेताओं को भी मालूम है गांधी किसी को प्रधानमंत्री भले बना दें मगर सत्ता की सीढ़ी उन्हीं के जरिए खुलती है।