महात्मा गाँधी नरेगा मे नयी सोशल आडिट व्यवस्था षडयन्त्र का संकेत
मुश्ताक अली अंसारी
महात्मा गाँधी ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना में ग्राम पंचायतों में कराये गये कार्यों की सोशल आडिट प्रक्रिया को कमजोर करने के षडयन्त्र की ओर आकृष्ट कर रहे हैं। महात्मा गाँधी नरेगा अधिनियम की धारा 17 के सफल क्रियान्वयन के लिए केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय, नई दिल्ली की अधिसूचना दिनांक 30 जून 2011, महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीमों की लेखा परीक्षा नियम 2011 के नाम से जारी की गयी। केन्द्र सरकार, भारत सरकार के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के परामर्श से मनरेगा अधिनियम 2005 (2005 का 42) की धारा-24 की उपधारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उपरोक्त नियमावली बनायी गयी राज्य स्तर पर स्वतंत्र सोशल आडिट संगठन की स्थापना के लिए मुख्य सचिव महोदय की अध्यक्षता में उ0प्र0 (मनरेगा) सोशल आडिट संगठन की स्थापना की गयी जिसके अन्तर्गत सोशल आडिट निदेशालय की स्थापना 2012 में की गयी जिसमें राज्य स्तर पर एक निदेशक (आई0ए0एस0), एक संयुक्त निदेशक, दो सोशल आडिट विशेषज्ञ एवं लेखा तथा प्रशासनिक स्टाफ की तैनाती की व्यवस्था की गयी। जिला स्तर पर जिला सोशल आडिट को-आर्डिनेटर, ब्लाक स्तर पर ब्लाक सोशल आडिट को-आर्डिनेटर की तैनाती की गयी तथा ग्राम पंचायत स्तर पर प्रत्येक 10 ग्राम पंचायतों पर एक पाँच सदस्यीय बहुवर्गीय सोशल आडिट टीम गठित की हैं। सोशल आडिट की प्रक्रिया निदेशालय द्वारा जारी रोस्टर के अनुसार सम्पन्न करा रहे हैं। प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास द्वारा शासनादेश संख्या-3124/38-7-2009/छत्म्ळ।/14.10.09 एवं दिनांक 04.10.2012 के अनुसार सभी जिलों में नियमानुसार जिला व ब्लाक सोशल आडिट को-आर्डिनेटरों की नियुक्ति की गयी जो पांँच वर्षों से लगातार सकुशल कार्य कर रहे हैं।
महात्मा गाँधी नरेगा कानून में ठेका प्रथा पर पूर्णतयः रोक है। अब सरकारी प्रणाली का निजीकरण करने की आउट सोर्सिंग नामक ठेका प्रथा की साजिश को लागू करने के लिए प्रमुख सचिव द्वारा शासनादेश संख्या-1496/30-7-2014-200 छत्म्ळ।/2009 दिनांक 21.07.2014 जारी करते हुए पिछले चार वर्ष से सकुशल कार्य कर रहे जिला व ब्लाक सोशल आडिट को-आर्डिनेटरों के स्थान पर नई भर्ती का आदेश जारी किया। जिसके विरूद्ध हम लोगों ने उच्च न्यायालय लखनऊ एवं इलाहाबाद में वाद दायर कर उपरोक्त शासनादेश को वापस लेने की मांग की थी। जिसमें अपनी हार देख निदेशक, निदेशालय सोशल आडिट ने वापस भी ले लिया है नवीन शासनादेश जारी कराकर शासनादेश संख्या-1294/38-7/2015-200 छत्म्ळ।/2009 दिनांक 09.09.2015 को उच्च न्यायालय में दाखिल किया जिससे प्रार्थीगणों द्वारा दायर वाद खत्म हो गया, परन्तु शासनादेश संख्या-1799/38-7-2015-200 छत्म्ळ।/2009 दिनांक 01.12.2015 जारी है जिसमें सेवायें 31.03.2016 तक रहेंगी, इसके बात स्वतः समाप्त कर दी जायेगी, जो औचित्यहीन और नैसर्गिक न्याय के विपरीत है जबकि सोशल आडिट प्रक्रिया मनरेगा/इन्दिरा आवास योजना रहने तक होती ही रहनी है। उपरोक्त के सम्बन्ध में अवगत कराना है कि 04 जुलाई 2012 को उ0प्र0 मनरेगा सोशल आडिट संगठन की स्थापना एवं सोशल आडिट प्रक्रिया हेतु कार्मिकों को तैनाती प्रक्रिया का आदेश दिनांक 04.10.2012 किया गया था जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि 14 अक्टूबर 2009 को जारी शासनादेश के अनुसार तैनात सोशल आडिट को-आर्डिनेटरों की सेवायें पुर्नउद्घाटित नहीं की जायेगीं। इसके बाद 24 मार्च 2014 को जारी शासनादेश संख्या-756/38-7-2014-200 छत्म्ळ।/2009 में कहा गया कि 04.10.2015 को एवं04.07.2012 तथा 16.12.2013 की ओर ध्यान आकर्षण करते हुए कहा गया कि जिला/ब्लाक सोशल आडिट को-आर्डिनेटरों की सेवायें 31.03.2014 को समाप्त हो रही हैं की सेवायें 01.04.2014 के आगे तीन माह तक विस्तारित की जाती हैं इसके बाद पुनः 31 जुलाई 2014 को शासनादेश संख्या-1413/38-7-2014-200 छत्म्ळ।/2009 जारी करके सेवायें 31.12.2014 तक विस्तारित की गयी इसके बाद पुनः दिनांक 03 फरवरी 2015 शासनादेश सं0 115/38-7-2015-200 नरेगा/2009 जारी करते हुए 31 मार्च 2015 तक सेवा विस्तार दिया गया। तदोपरान्त पुनः दिनषंक 26 जून 2015 को जारी शासनादेश संख्या-1253/38-7-2014-200 छत्म्ळ।/2009 के द्वारा 31.03.2016 तक अथवा उच्च न्यायालय में दाखिल विभिन्न रिट याचिकाओं में पारित निर्णय के अधीन होगी। अब जब निदेशक सोशल आडिट एवं शासनादेश दिनांक 09.09.2015 द्वारा दिनांक 21.07.2014 के शासनादेश को वापस ले लिया गया। ऐसी स्थिति में दिनांक 26 जून 2015 को जारी शासनादेश जिसमें कहा गया है कि यह सेवा विस्तार मा0 उच्च न्यायालय में दाखिल विभिन्न रिट याचिकाओं में पारित निर्णय के अधीन होगा दर्शाता है कि उपरोक्त शासनादेशों में जिला/ब्लाक सोशल आडिट को-आर्डिनेटरों के सेवाकाल की समय सीमा नियमित रूप से जारी रखनी चाहिए परन्तु निदेशक सोशल आडिट एवं निदेशालय में पदास्थिपित उच्चाधिकारीगण जो मूलतयः रिटायरमेन्ट अधिकारी हैं और एक साहब पी0डी0एस0 संवर्ग से एवं उसकी यूनियन से वरिष्ठ पदाधिकारी हैं जिनके द्वारा लगातार यह षडयन्त्र किया जा रहा है कि सोशल आडिट जैसी भ्रष्टाचार निवारक व्यवस्था को किसी निजी एन0जी0ओ0 अथवा सेवाप्रदाता कम्पनी में तब्दील करके अपने चहेते सेवाप्रदाता कम्पनी अथवा किसी एन0जी0ओ0 को उपकृत किया जा सके जिसमें उनका निजी स्वार्थ/लाभ निहित हो। चूंकि मनरेगा योजना में ठेकाकरण/निजीकरण की व्यवस्था का विरोध है इसीलिए निदेशक महोदय द्वारा सोशल आडिट को-आर्डिनेटरों द्वारा स्वयं को मनरेगा कर्मचारी बताये जाने का विरोध भी किया जा चुका है। इन सभी की दूरभिसंधि के चलते ऊर्जावान सोशल आडिट को-आर्डिनेटरों को अपने कर्तव्यों को पूरा करने के साथ-साथ मा0 उच्चतम न्यायालय की शरण में जाना पड़ता रहा है। दिनांक 09.09.2015 को जारी शासनादेश में नयी सोशल आडिट व्यवस्था इस नाम पर बनाई जा रही है कि इससे सभी ग्राम पंचायतों का सोशल आडिट कराया जाना सुगम होगा जबकि सच्चाई यह है कि ब्लाक सोशल आडिट को-आर्डिनेटरों 8000 रू0 मासिक मानदेय के स्थान पर मात्र 2000 रू0 देने की व्यवस्था की है जो श्रम कानूनों का भी उल्लंघन है। निदेशालय में पदास्थापित अधिकारीगणों को सोशल आडिट प्रक्रिया होने में कोई रूचि नहीं है इसीलिये जून से दिसम्बर तक सात माह पूरे प्रदेश में समग्रता से सोशल आडिट का कोई रोस्टर जारी ही नहीं किया वर्ष 2014-15 के लिये सोशल आडिट टीमें चयनित एवं प्रशिक्षित होकर बैठी रही और सात माह तक अधिकाशं जनपदों में बिना सोशल आडिट कराये सिर्फ प्रचार-प्रसार का काम कराया गया।
महोदय निदेशालय द्वारा सोशल आडिट रोस्टर न जारी करने और ऐन-केन प्रकारेण वर्तमान कार्यरत सोशल आडिट को-आर्डिनेटरों को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाने में लगे हुए हैं एक तरफ निदेशालय के अधिकारी ज्यादा से ज्यादा पंचायतों में सोशल आडिट कराने की नवीन व्यवस्था के माध्यम से कराने की लफ्फाजी कर रहे हैं वहीं पूर्व में चयनित और प्रशिक्षित सोशल आडिट टीमों से काम न कराकर चयन और प्रशिक्षण की कार्यवाही पर भारी सरकार धन को बर्बाद किया जा चुका है। नयी व्यवस्था के नाम पर उनका एक मात्र उद्देश्य पाँच वर्षों से कार्यरत सोशल आडिट को-आर्डिनेटरों के स्थान पर सेवाप्रदाता के माध्यम से नयी भर्ती प्रक्रिया से धन कमाना है।
उपरोक्त के बावजूद अनावश्यक रूप से पिछले 5 वर्षों से कार्यरत (जब सोशल आडिट निदेशालय गठित भी नहीं हुआ था) जिला/ब्लाक सोशल आडिट को-आर्डिनेटर को नियमित करते हुए निदेशक सोशल आडिट एवं उनके सहयोगियों द्वारा सेवाप्रदाता लाने के कुत्सित प्रयासों पर रोक लगायी जाय तथा सरकारी कार्यां का कम्पनीकरण एवं एन0जी0ओ0 करण पर रोक लगायी जाय।
अतः आपसे सादर अनुरोध है कि जनहित में निकृष्ट श्रम विरोधी आउट सोर्सिंग व्यवस्था बनाने वाले शासनादेश को तत्काल रद्द कराने की कृपा करें। साथ ही उल्लेख करना चाहेंगे कि सेवाप्रदाता कम्पनियों का चरित्र भ्रष्ट होता है, रामा इन्फोटेक प्रा0लि0 इसका उदाहरण है। जिसने सुविधा शुल्क वसूल कर तैनाती की थी जिसकी जाँच तत्कालीन अपर आयुक्त मनरेगा श्री अनुराग यादव द्वारा की गयी थी और भर्ती प्रक्रिया में भ्रष्टाचार के लक्षण मिले थे।
भारतीय संविधान की धारा 19 व 21 में दी आजादी व रोजी-रोटी की सुनिश्चितता की अवधारणाओं का निदेशालय और उच्चाधिकारियों द्वारा उल्लंघन किया जा रहा है हम और हमारे परिवार के सदस्य पीड़ित हैं, क्योंकि 31 मार्च 2016 के बाद नौकरी की संविदा स्वतः समाप्त कर दी गयी है सेवा विस्तार भी नहीं दिया गया है। निदेशालय और उ0प्र0 शासन के मनमाने रवैया के कारण जीविका का अधिकार छीन लिया गया है ऐसी वंचना ने न केवल रोजी-रोटी छीनी है बल्कि जीवन को निर्रथक बना दिया है और ऐसे में जीवन जीना असंभव बना दिया गया है।
संविदा कर्मियों के संबंध में दिनांक 05 जनवरी 2015 को प्रमुख सचिव वित्त के आदेशानुसार ग्रेड पे के अनुसार वेतन निर्धारण की व्यवस्था की जाये तथा नई सोशल आडिट व्यवस्था का शासनादेश वापस कराकर पूर्व की सफल सोशल आडिट व्यवयस्था बनाये रखने का व जिला/ब्लाक सोशल आडिट को-आर्डिनेटर के पद पर पिछले 4-5 वर्षों से कार्यरत जिला/ब्लाक सोशल आडिट को-आर्डिनेटरों को निरंतर कार्यरत रहने के लिए शासनादेश जारी कराने की कृपा करें ताकि सोशल आडिट के लिए अनुभवी कर्मचारियों की उपलब्धता भी बनी रहे तथा हम लोगों का रोजगार भी बच जाये।