अमर को यकीन, सपा में अब नहीं मिलेगी पुरानी हैसियत
लखनऊ: राज्यसभा के लिए समाजवादी पार्टी से नामांकन करने के बाद अमर सिंह ने कहा कि समाजवादी पार्टी में उनकी बहुत बड़ी हैसियत थी, जो अब नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके वक्त जो लोग बहुत छोटे थे, अब बहुत बड़े हो गए हैं और वह खुद पहले जवान थे, लेकिन अब बूढ़े हो गए हैं। इसी वजह से अब वक्त का तकाजा है कि वह अपने 'बीते वक्त' को मौजूदा समय से टकराने न दें।
पूरे 6 साल बाद अमर सिंह की समाजवादी पार्टी में घर वापसी हुई है। एक दौर था जब वो पार्टी में मुलायम के बाद सबसे बड़े नेता थे। तब मुलायम ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि वह और अमर सिंह 'दो जिस्म-एक जान' हैं। अमर सिंह को पार्टी से निकाले जाने का सबसे ज्यादा मलाल मुलायम सिंह यादव को ही था। कुछ वक्त पहले एक सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि 'सिर्फ एक शख्स था, जो मुझे सबसे ज्यादा समझता था। मैं बोलता भी नहीं था कि वो समझ जाता था कि मैं क्या चाहता हूं।'
अमर सिंह की वापसी की मुलायम के भाई रामगोपाल यादव और अखिलेश सरकार के मंत्री आजम खान खुलकर मुखालफत कर रहे थे। यही नहीं अखिलेश यादव भी अंदर से उनकी वापसी के खिलाफ थे, क्योंकि अमर सिंह के जाने के बाद इन तीनों लोगों की पार्टी में हैसियत काफी बढ़ गई थी।
अमर सिंह से हमने पूछा कि समाजवादी पार्टी में उनकी कुछ वैसी ही हैसियत थी, जिस पर गुलजार साहब का वो गाना बिल्कुल फिट बैठता है कि 'जहां तेरे पैरों के कमल गिरा करते थे…हंसी तेरी सुन-सुनके फसल पका करती थी…' ऐसे में अब नए रोल में कैसे एडजस्ट करेंगे। इस पर अमर सिंह ने कहा, मुझे इसका एहसास है कि अब वक्त बदल गया है और मेरा रोल भी…और यह इतिहास में पहली बार नहीं हो रहा है। मिसाल के लिए इंदिरा गांधी जी के वक्त आरके धवन की बहुत बड़ी हैसियत थी, लेकिन उनके बाद राजीव गांधी ने उनके बजाय विंस्टन जॉर्ज के साथ काम करना पसंद किया। उनके बाद जब सोनिया आईं तो उन्होंने विंस्टन जॉर्ज के बजाय माधवन साहब के साथ काम करना पसंद किया। उसी तरह समाजवादी पार्टी में अब युवाओं का दौर है। अब अखिलेश नेता हैं, उनकी अपनी पसंद और काम करने का स्टाइल है, इसलिए मैं अपने पास्ट को प्रेजेंट से टकराने नहीं देना चाहता।
अमर सिंह ने कहा कि जीवन में और राजनीति में भी हर व्यक्ति को तय करना पड़ता है कि उसे अपने कदम कहां रोकने हैं। सचिन तेंदुलकर महान बल्लेबाज थे, लेकिन एक दिन उन्हें अपना बल्ला रोकना पड़ा। दिलीप साहब महान एक्टर थे, लेकिन एक अरसे से वो परदे पर नहीं आए। अगर देव साहब ने भी 'गाइड' और 'हरे राम हरे कृष्ण' के बाद फिल्म नहीं बनाई होती तो उनके लिजेंड्री स्टेटस को कोई चुनौती नहीं दे सकता था। मैं वो गलती नहीं करना चाहता। 'कल' गुजर गया है। अब मैं 'आज' में जी रहा हूं।