सपा प्रमुख मुलायम सिंह स्वयं को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी दिखाने – बताने में कभी भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते है.यही हाल यूपी की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले आज़म ख़ान का भी है. वही आज़म ख़ान जो सपा प्रमुख मुलायम सिंह का शाही जश्न आयोजित कर अपने ट्रस्ट के लिए महज 9900/- में सरकार से अरबों खर्च  की कीमत की परिसंपत्तियाँ 99 साल के लिए रिटर्न गिफ्ट के रूप में पा लेते हैं और फिर से कोई और मँहगा रिटर्न गिफ्ट लेने के लिए अब मुलायम सिंह का मंदिर बनबाने की बात हवा में फैला देते है. बड़ा सवाल यह है  सपा सरकार द्वारा  एकमात्र  आज़म ख़ान को तुष्ट करदेने मात्र से ही अखिलेश आख़िर किस आधार पर यह मान रहे हैं कि उनकी सरकार ने पूरी यूपी के अल्पसंख्यकों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए बहुत कुछ कर दिया है जबकि उनकी सरकार सच्चर कमेटी की शिफारिशों पर अभी तक सोयी पड़ी है.

येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी शर्मा का कहना है कि मैं तो आश्चर्यचकित हूँ कि उच्च पदों पर आसीन ये नेता सार्वजनिक जीवन में कितना सफेद झूंठ बोलते है और जाने कैसे इतना सफेद झूंठ बोल  लेते हैं. जाने कैसे ये लोग  हर जगह जन सरोकार के मुद्दे नहीं बल्कि अपना व्यक्तिगत लाभ और अपने वोट ही  तलाशते रहते  है . जब मुसलमानों के बारे में सोचती हूँ और देखती हूँ तो पाती हूँ कि वैसे तो  मुलायम सिंह अपने आप को मुसलमानों का मसीहा कहते है और गाहे-बगाहे अयोध्या-बाबरी मस्जिद प्रकरण पर भोले भाले मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को भड़काकर उनको अपने पाले में करने का प्रयास करते हैं तो वही मायावती हैं जो जब तब मुस्लिम हितों को

सर्वोपरि बताते हुए विशाल रैलियां करते हुए मुसलमानों को  लुभाने का प्रयास करती हैं. लगभग 3 साल के अपने कार्यकाल में  अखिलेश ने तो अपने आपको वहाँ खड़ा कर दिया है जहाँ जनता ने उनसे कोई भी उम्मीद करना ही छोड़ दिया है. मेरा मानना है कि  पूर्व प्रधानमंत्री  मनमोहन सिंह भी अखिलेश से अधिक स्वतंत्र निर्णय ले लेते थे. पर इन सबमें मुसलमानों के जमीनी विकास के मुद्दे कही पीछे छूटते जा रहे हैं और सरकारें और विपक्ष अपने फायदे के लिए बेबजह की बयानबाजी से आगे नहीं आ पाया है |

गौरतलब है कि 9 मार्च 2005 को भारत के प्रधानमंत्री ने भारत में मुसलमानों के सामाजिक,आर्थिक और शैक्षिक स्थिति के आंकलन के लिए सात सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का कथन किया था| जस्टिस सच्चर की अध्यक्षता वाली इस समिति ने 17 नवम्बर 2006 को अपनी शिफारिशें प्रधान मंत्री को सौंप दीं जो 30  नवम्बर 2006 को लोक सभा के पटल पर रखीं गयीं | 403 पेज की इस रिपोर्ट में मुसलामानों की  सामाजिक,आर्थिक और शैक्षिक स्थिति में सुधार की बुनियादी शिफारिशें की थीं|

मैंने  उत्तर प्रदेश सरकार से आरटीआई के तहत यह जानना चाहा था कि आखिर मुसलमानों के हितों का ढोल पीटने बाली सरकारों ने इस अहम् रिपोर्ट पर अमल कर मुसलमानों का बुनियादी विकास कर उनको समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए क्या किया है.  आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि एक माह में सूचना देने की अनिवार्यता होने पर भी इस अहम्  मुद्दे पर उत्तर प्रदेश सरकार ने मुझे सूचना देने में 2 साल से भी अधिक लगा दिए और अब  सूचना आयोग के दखल के बाद उत्तर प्रदेश शासन के अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ अनुभाग-4  के उप  सचिव और जन सूचना अधिकारी आर. एन. द्विवेदी  ने बीते 11 फ़रवरी  के पत्र के माध्यम से जो  सूचना दी हैं वह बेहद चौंकाने वाली होने के साथ साथ उत्तर प्रदेश की सरकारों के कथित मुसलमान-प्रेम की ढोल की पोल भी उजागर करती है.

आर. एन. द्विवेदी   के इस पत्र के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सच्चर कमेटी की संस्तुतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु अभी तक कोई नियम /विनियम/शासनादेश आदि निर्गत नहीं किया गया है|आर. एन. द्विवेदी ने इस सम्बन्ध में शून्य सूचना का होना भी लिखा है.उर्वशी का कहना है कि  यह हाल उस सरकार का है जिसके सिपहसालार आज़म ख़ान अपने आपको मुसलमानों का झंडाबर्दार सिद्ध करने के लिए संवैधानिक पद पर आसीन राज्यपाल तक को भी गाहे-बजाहे ताल ठोंककर ललकारते  रहते हैं पर उत्तर प्रदेश के मुसलमानों की  सामाजिक,आर्थिक और शैक्षिक स्थिति में योजनाबद्ध सुधार लाने के लिए सच्चर कमेटी की शिफारिशों पर अपने महकमे से भी कोई भी कार्यवाही नही करा पाते हैं. अब आज़म ख़ान को मुसलमानों के विकास से तो कोई सरोकार है नहीं. उनको तो मतलब है बस अपने आप से और इन तीन सालों में उन्होने अपने हित तो खूब साधे हैं. जी हाँ, मेरा मतलब है अपनी पत्नी को लोकसभा में भेजना,रामपुर में अपने ट्रस्ट की माली हालत को ठीक करना, रामपुर में अपनी राजनैतिक ज़मीन को मजबूती देने को कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना आदि आदि. और फिर उनको फ़ुर्सत ही कहाँ है सस्ती लोकप्रियता पाने और खबरों में बने रहने के लिए बेबजह की बयानबाज़ी करने से  जो वह मुसलमानों के विकास के बारे में सोचें.

बड़ा सवाल यह भी है कि 30 नवम्बर 2006 से अब तक की आठ साल से ज्यादा की अवधि में मुलायम सिंह,मायावती और अखिलेश जैसे अपने आप को मुसलमानों का झंडाबरदार कहने वाले नेता सूबे के मुखिया रहे हैं जो जब-तब मुसलमानों के लिए लोक लुभावन घोषणाएं तो प्रायः ही करते रहे है पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रदेश के  मुसलमानों के बुनियादी मुद्दों को सम्बोधित करने बाली इस रिपोर्ट पर सिलसिलेवार अमल कर मुसलमानों को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से आत्मनिर्भर बनाकर उनको समाज की मुख्यधारा में लाने का कोई भी प्रयास  किया ही नहीं गया है. 

मैं इस सम्बन्ध में अखिलेश से अपील करती हूँ कि वे दिखावटी वादों से हटकर बुनियादी विकास के मुद्दों पर काम करें क्योंकि कमजोर बुनियादों पर बनी आलीशान इमारतें भी अधिक समय तक खड़ी नहीं रह पाती हैं. मैं अखिलेश को सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को सिलसिलेवार लागू करने के लिए ज्ञापन भी दे रही हूँ और जल्द ही इस सम्बन्ध में जन-आंदोलन भी चलाया जायेगा|

Urvashi Sharma
Secretary – YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
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