इसे सामान्य कानून बनाने का माध्यम न बनायें: प्रणव   

नई दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सत्तारूढ़ एवं विपक्षी दलों से सोमवार को कहा कि आए दिन अध्यादेश जारी करने से बचने के लिए वे आपस में मिल बैठ कर कोई व्यवहारिक समाधान निकालें।

राजग सरकार द्वारा कई अध्यादेश जारी करने को लेकर चल रही बहस की पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान ने असाधारण परिस्थितियों में अध्यादेश जारी करने का प्रावधान किया है, लेकिन इसे सामान्य कानून बनाने का माध्यम नहीं बनाया जा सकता है और न बनाया जाना चाहिए।

केन्द्रीय विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के प्राध्यापकों तथा छात्रों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए उन्होंने ऐसी स्थितियों का हवाला दिया जब सत्तारूढ़ दल के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं होता लेकिन राय दी कि कानून पारित कराने के वास्ते संख्या जुटाने के लिए संसद का संयुक्त सत्र बुलाना ‘‘व्यवहारिक नहीं है।’’

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘यह पूरे राजनीतिक प्रतिष्ठान की जिम्मेदारी है कि वह मिल बैठ कर कोई व्यवहारिक समाधान निकाले।’’ उन्होंने कहा, ‘‘विपक्ष के पास अगर संख्याबल है तो वह विरोध, पर्दाफाश और संभवत: अपदस्थ भी कर सकता है। लेकिन हमेशा यह ध्यान रखें कि यह सदन के निर्वाचित सदस्यों की सामूहिक जिम्मेदारी है, चाहे वे लोकसभा के लिए सीधे निर्वाचित हुए हों या राज्यों के जरिए राज्यसभा के लिए।’’ कार्यपालिका द्वारा अक्सर अध्यादेश जारी करने के संबंध में उनकी राय पूछे जाने पर मुखर्जी ने कहा, ‘‘मैंने राजनीतिक प्रतिष्ठान से कहा है कि वे आपस में बातचीत करें और अपने मतभेदों का समाधान करें।’’ मोदी सरकार द्वारा नौ अध्यादेश जारी किए जाने के संदर्भ में राष्ट्रपति के विचार काफी महत्वपूर्ण हैं। संसद के शीतकालीन सत्र के ठप्प हो जाने पर सरकार ने जो अध्यादेश जारी किए हैं, उनमें बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने संबंधी अध्यादेश भी शामिल है।

एक अवसर पर राष्ट्रपति ने वित्त मंत्री अरूण जेटली सहित कई मंत्रियों को तलब करके उनसे सवाल किया कि भूमि अधिग्रहण संबंधी अध्यादेश को जारी करने की जल्दी क्या है। बाद में हालांकि, उन्होंने उसे अपनी अनुमति दे दी। अध्यादेश के बारे में समझाते हुए उन्होंने कहा कि सरकार अध्यादेश जारी करती है लेकिन साथ ही वह छह महीने की अधिकतम सीमा के भीतर दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा से मंजूरी अर्जित नहीं करवा पाने की स्थिति में उसके समाप्त होने का भी जोखिम लेती है।

उन्होंने कहा कि संविधान ने यह सुनिश्चित किया है कि ऐसे प्रावधान केवल ‘‘असाधारण परिस्थितियों’’ के लिए ही हैं।

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में राष्ट्रपति ने संसद और विधानसभाओं के काम काज में बार बार अवरोध पैदा करने को भी अस्वीकृत किया।

उन्होंने कहा, ‘‘व्यवधान डालना संसद के कामकाज का तरीका नहीं है। हंगामे के कारण अन्य अपनी बात नहीं रख पाते हैं। ..संसद को चलाने में सत्तारूढ़ दल की बड़ी भूमिका है और उसे इसकी पहल करनी चाहिए। साथ ही विपक्ष को सहयोग देना चाहिए क्योंकि केवल ज्ञानवर्धक चर्चा और समाहित करने की भावना से ही जनता के लिए कानून बनाने की अनुमति होनी चाहिए।’’ राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मैं सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों से आग्रह करता हूं कि वे अपनी चिंताओं को साझा करें और यह सुनिश्चित करें कि व्यवधान नहीं हों और संसद कार्य करना शुरू करे।’’